19 नवंबर 2025 |✍🏻 Z S Razzaqi | अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार
सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (MBS) की व्हाइट हाउस यात्रा ने अमेरिका–सऊदी संबंधों को एक नई गति दे दी है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने जिस भव्यता और गर्मजोशी से उनका स्वागत किया—लाल कालीन, सैन्य बैंड, घुड़सवार दस्ते और फ्लाई-पास्ट—उसने यह दिखा दिया कि वॉशिंगटन अब रियाद को अपनी मध्य–पूर्व रणनीति के केंद्र में देखना चाहता है।ओवल ऑफिस में दोनों नेताओं ने व्यापार, रक्षा, निवेश, आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और क्षेत्रीय शांति पर विस्तृत बातचीत की। साथ ही कई बड़े ऐलान भी हुए, जिनका असर आने वाली दशकों तक मध्य–पूर्व और वैश्विक भू-राजनीति पर पड़ेगा।
1. इज़राइल–सऊदी सामान्यीकरण पर ‘सकारात्मक संकेत’, मगर शर्तें बरकरार
ट्रम्प लंबे समय से चाहते हैं कि सऊदी अरब अब्राहम अकॉर्ड्स में शामिल होकर इज़राइल के साथ औपचारिक रिश्ते स्थापित करे। मुलाकात में दोनों नेताओं ने इस दिशा में “अच्छी बातचीत” होने की पुष्टि की।
लेकिन MBS ने दो-टूक कहा कि बिना स्पष्ट और समयबद्ध फ़िलिस्तीनी राष्ट्र के रास्ते के, इज़राइल से सामान्यीकरण संभव नहीं।
उन्होंने कहा:
“हम मध्य–पूर्व में सभी देशों के साथ अच्छे संबंध चाहते हैं, और अब्राहम अकॉर्ड्स का हिस्सा बनने में रुचि रखते हैं। लेकिन दो-राष्ट्र समाधान का स्पष्ट मार्ग सुनिश्चित होना ज़रूरी है।”
यह रुख दर्शाता है कि सऊदी—भले ही अमेरिका के दबाव में हो—लेकिन फिलिस्तीन मुद्दे पर अपनी ऐतिहासिक स्थिति छोड़ने के लिए तैयार नहीं।
2. अमेरिका ने सऊदी अरब को दिया ‘मेजर नॉन-NATO एलाय’ का दर्जा, बड़ा रक्षा समझौता भी
व्हाइट हाउस डिनर के दौरान ट्रम्प ने घोषणा की कि अमेरिका सऊदी अरब को “मेजर नॉन-NATO एलाय” (MNNA) का दर्जा दे रहा है।
इससे सऊदी को उन्नत अमेरिकी हथियारों, प्रौद्योगिकियों और रक्षा सहयोग में प्राथमिकता मिलेगी।
इसके साथ ही दोनों देशों ने एक रणनीतिक रक्षा समझौते पर भी हस्ताक्षर किए, जिसमें—
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साझा सुरक्षा
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अमेरिका की मध्य–पूर्व रक्षा उपस्थिति
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सऊदी द्वारा अमेरिकी रक्षा लागत में आर्थिक हिस्सेदारी
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उन्नत सैन्य तकनीक तक आसान पहुँच
जैसे प्रावधान शामिल बताए जा रहे हैं।
ट्रम्प ने यह भी पुष्टि की कि F-35 लड़ाकू विमान सऊदी को बेचे जाएंगे, और वे “किसी भी प्रकार से डाउनग्रेड नहीं होंगे।”
यह पहली बार है जब अमेरिका इज़राइल की ‘क्वालिटेटिव मिलिट्री ऐज’ नीति में लचीलापन दिखा रहा है।
3. ईरान को लेकर ट्रम्प नरम पड़े—MBS ने भी ‘शांति वार्ता’ का समर्थन किया
ट्रम्प ने जून में ईरान के परमाणु ठिकानों पर अमेरिकी हमले को “असाधारण सफलता” बताया, लेकिन इसके साथ ही उन्होंने कहा कि ईरान अब कूटनीतिक समाधान चाहता है।
ट्रम्प बोले:
“अगर ईरान समझौता चाहता है, तो मैं पूरी तरह तैयार हूं। हम बातचीत कर रहे हैं।”
सऊदी क्राउन प्रिंस ने भी अमेरिका–ईरान समझौते का स्वागत किया:
“हम पूरे क्षेत्र के लिए ऐसा समाधान चाहते हैं जो सभी पक्षों को संतुष्ट करे।”
विशेष रूप से, MBS की यात्रा से पहले ईरान के राष्ट्रपति ने उन्हें एक निजी, हस्तलिखित पत्र भेजा था—जिससे दोनों देशों के बीच बैकचैनल संवाद की पुष्टि होती है।
4. अमेरिका में सऊदी निवेश 1 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँच सकता है
ट्रम्प ने बैठक में सबसे ज़्यादा उत्साह सऊदी निवेश को लेकर दिखाया।
उनके अनुसार—
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सऊदी ने अमेरिका में 600 अरब डॉलर निवेश का वादा किया है
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जिसे बढ़ाकर 1 ट्रिलियन डॉलर तक ले जाने की संभावना है
AI, टेक्नोलॉजी, रेयर मिनरल्स, मैग्नेटिक मटेरियल्स और उभरती तकनीकों में संयुक्त परियोजनाएँ इस निवेश का बड़ा हिस्सा होंगी।
MBS ने कहा:
“अमेरिका आज दुनिया का सबसे आकर्षक बाज़ार है। हम उभरती तकनीकों की नींव में भागीदार बनना चाहते हैं।”
यह अमेरिकी अर्थव्यवस्था, वॉल स्ट्रीट और टेक उद्योग के लिए बेहद बड़ा अवसर माना जा रहा है।
5. दोस्ती, प्रशंसा और राजनीतिक संकेत: ट्रम्प–MBS की केमिस्ट्री सुर्खियों में
पूरी यात्रा में ट्रम्प ने MBS की खुलकर सराहना की।
उन्होंने MBS को “बेहतरीन नेता”, “अद्भुत” और “मेरे पुराने मित्र” कहा।
एक समय तो ट्रम्प ने MBS का हाथ पकड़ते हुए मजाक किया:
“मैं किसी को फिस्ट बम्प नहीं देता। मैं हाथ पकड़ता हूँ—मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता हाथ कहाँ रहा है।”
उन्होंने एक पत्रकार के सवाल पर गुस्सा दिखाते हुए ABC न्यूज़ को “टेरिबल” तक कह दिया।
यह पूरा वातावरण दर्शाता है कि—
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ट्रम्प MBS को अपने प्रमुख वैश्विक साझेदार के रूप में देखते हैं
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दोनों देशों की व्यक्तिगत और राजनीतिक निकटता नई ऊँचाइयाँ छू रही है
यही वह केमिस्ट्री है जिसने इस यात्रा को सिर्फ एक राजनयिक मुलाकात नहीं, बल्कि रणनीतिक संधि में बदल दिया।
निष्कर्ष:-
मध्य–पूर्व में एक नया गठबंधन आकार ले रहा है
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इज़राइल–सऊदी सामान्यीकरण
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ईरान वार्ता
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अरब–अमेरिका रणनीति
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बड़े सैन्य सौदे
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1 ट्रिलियन डॉलर तक निवेश
ये सभी मिलकर मध्य–पूर्व के भविष्य की नई संरचना तैयार कर रहे हैं, जिसका असर पूरी दुनिया की राजनीति और अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा।
