नई दिल्ली | अक्टूबर 27, 2025 |✍🏻 Z S Razzaqi | वरिष्ठ पत्रकार
देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया की “एक व्यक्ति-एक मत” की आधारशिला पर आज एक चिंताजनक सवाल खड़ा है: क्या मतदाता सूचियों एवं मतदान प्रक्रिया में व्यापक अनियमितताएँ — जिन्हें आम जनभाषा में ‘मत चोरी’ कहा जा रहा है — हो रही हैं? इस लेख में हम विभिन्न स्रोतों, सार्वजनिक अभियोगों तथा पूर्वी अनुभवों के माध्यम से यह विश्लेषण प्रस्तुत कर रहे हैं कि यह समस्या कितनी बड़ी है, किन मॉडलों पर आधारित हो सकती है, और इसके लोकतंत्र पर क्या असर पड़ रहा है।
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कौन-कौन से आरोप सामने आए हैं?
• विधानसभा/लोकसभा चुनावों में कथित फर्जी मतदाता और दोहरे नामांकन
केंद्रीय विपक्ष के शीर्ष नेता Rahul Gandhi ने 2024 लोकसभा चुनाव व उसके बाद-वाले विधानसभा क्षेत्रों में बड़ी संख्या में फर्जी, दोहरे एवं अवैध नामों को मतदाता सूची में शामिल किए जाने का आरोप लगाया है। उदाहरण के लिए, कर्नाटक के बेंगलुरु-सेंट्रल संसदीय क्षेत्र की महादेवपुरा विधानसभा सीट में उन्होंने दावा किया कि लगभग 1 लाख से अधिक फर्जी मतदाता किए गए हैं।
• सूक्ष्म-परीक्षणों में पाए गए ‘न त्रेसबल’ नाम
उदाहरण के लिए, पूर्वी-प्रदेश बिहार में Election Commission of India (ईसीआई) द्वारा चलाए जा रहे SIR-अभ्यास के दौरान लगभग 11,000 से अधिक नाम ऐसे पाए गए हैं जिन्हें “ट्रेस नहीं किया जा सका” — अर्थात् वे मतदाता सूची में दर्ज थे लेकिन उनका पता नहीं मिल पा रहा था।
• पुरानी नमूने: ‘साइंटिफिक रिगिंग’ और बूथ कैप्चरिंग
भारत में बूथ कैप्चरिंग, ‘साइंटिफिक रिगिंग’ जैसे शब्द वर्षों से चलते आए हैं। ऍतिहास का पहला मामला 1950-60 के दशक में दर्ज हुआ था।
• आयोग की प्रतिक्रिया
ईसीआई ने इन आरोपों को खारिज किया है और कहा है कि यदि ऐसे प्रमाण हैं तो उन्हें शपथपत्र के साथ प्रस्तुत करें।
समस्या का स्वरूप — कितनी बड़ी ‘वोट चोरी’ हो सकती है?
सटीक आंकड़े सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं हैं कि प्रत्येक राज्य-संघ-क्षेत्र में कितनी संख्या में फर्जी व नामान्तरित मतदाता हैं या कितने मत ‘कट’ रहे हैं। फिर भी विभिन्न प्रमाण और ट्रेंड से कुछ दिशा मिलती है:
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महादेवपुरा सीट के उदाहरण में ~1 लाख नामांकन की दावा की गई।
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बिहार के SIR प्रक्रिया में ट्रेस न होने वाले नामों की संख्या 11,000 से अधिक मिली।
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पूर्व-मध्य प्रदेश में एक सियासी नेता ने दावा किया कि राज्य के मतदाताओं का ~8-10 % “फेक वोटर” हो सकते हैं।
इन संकेतों से यह निष्कर्ष निकलता है कि यदि सूची बड़ी है — उदाहरण के लिए लाखों मतदाता वाले राज्य में — तो हजारों से लेकर लाखों तक नामांकन की अनियमितता संभव है। इससे यह सवाल उठता है कि ऐसी संख्या में अनियमितता होने पर निष्पक्ष चुनाव की अवधारणा कितनी सुरक्षित है।
किन कारकों ने इस समस्या को बढ़ावा दिया है?
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प्रवासन व शहरीकरण – लोगों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना, नए पते पर पंजीकरण व पुराने पते पर नाम बने रहने से डुप्लिकेट व फेक नाम बन सकते हैं।
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दस्तावेज-और-पहचान की चुनौतियाँ – कई राज्यों में मतदाता पंजीकरण के लिए सामान्य पहचान दस्तावेज नहीं होने, पुरानी सूची-डेटा की उपलब्धता न होने या डिजिटल रूपांतरण की कमी होने से त्रुटियाँ बढ़ रही हैं।
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राजनीतिक संवेदनशीलता – जो राज्य विधानसभा-चुनाव या लोकसभा चुनाव के लिए समसय में हों, वहाँ सूची का पुनरीक्षण या गहन मान्यकरण (जैसे Special Intensive Revision) जल्दी करना, सहज-तौर पर राजनीतिक आरोपों को आमंत्रित करता है।
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लोकसीमा-पारदर्शिता की कमी – मतदाता सूची का डिजिटल/मशीन-पठनीय रूप में उपलब्ध न होना, और विरोधी दलों को सूची-डेटा तथा प्रक्रियाओं में शामिल होने का अवसर न मिलना, विश्वास-घाटे का कारण बनता है। (ईसीआई ने इसके सम्बन्ध में आलोचना झेली है)
प्रक्रिया-निर्देश व सुधार-संकेत
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आयोग ने व्यापक रूप से मतदाता सूची को रीबिल्ड करने के लिए SIR योजना लागू करने का निर्णय लिया है — जिसमें पुरानी सूची को मिलान किया जाएगा और नए/सक्रिय मतदाताओं को फिर से पंजीकृत किया जाएगा।
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सूची में डुप्लिकेट, मृतक या विदेश गय मतदाताओं की पहचान व नामांकन हटाना उद्देश्य है। इसी संदर्भ में बिहार में SIR का पहला परीक्षण हुआ है।
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बेहतर पारदर्शिता, शिकायत-निवारण तंत्र, और दस्तावेज-मान्यता को मजबूत करने की दिशा में चिन्हित सुधारों पर चर्चा चल रही है।
लोकतांत्रिक खतरे और सामाजिक प्रभाव
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जब मतदाता सूची में भरोसा उठ जाता है, तब लोकतंत्र की वैधता पर प्रश्न उठने लगते हैं। नागरिक यह पूछने लगते हैं कि “मेरा एक वोट क्या वाकई गिना गया?”
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‘वोट चोरी’ की आशंका केवल राजनीतिक विवाद नहीं, बल्कि सामाजिक विभाजन को भी जन्म दे सकती है, विशेष रूप से उन समुदायों में जहाँ जागरूकता व पहुँच कम है।
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यदि सूची-अनियमितता व्यापक हो जाए, तो यह असहाय नागरिकों (उदाहरण के लिए प्रवासी मजदूर, दलित-आदिवासी, स्थिर पता न रखने वाले) को मतदान प्रक्रिया से बाहर कर सकती है — जो लोकतंत्र की समावेशिता को कमजोर करती है।
निष्कर्ष और आगे की दिशा
विश्लेषण से स्पष्ट हुआ है कि भारत में मतदाता सूची एवं मतदान प्रक्रिया में संभावित बड़े पैमाने पर अनियमितताओं के संकेत मौजूद हैं। यद्यपि पूर्ण प्रमाणिक कुल संख्या नहीं मिली है, लेकिन हजारों-लाखों तक नामांकन त्रुटियों व “फर्जी वोटर” के दावे राजनीतिक व मीडिया विमर्श में गंभीरता से सामने आ रहे हैं। इसलिए:
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आयोग को उच्च पारदर्शिता के साथ आगे बढ़ना चाहिए — मतदाता सूची को डिजिटल-मशीन पठनीय रूप देना, त्रुटियों का खुला डेटा जारी करना, प्रत्याशी/पार्टी को समय-समय पर विश्लेषण की सुविधा देना।
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राजनीतिक दलों को आरोप-प्रस्ताव में प्रमाण देना होगा और प्रक्रिया-विरोधी भ्रम फैलाने से बचना होगा, ताकि लोकतंत्र-विरोधी माहौल न बने।
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नागरिकों को जागरूक होना होगा — अपने नामांकन की जांच करना, शिकायत-विकल्प जानना और त्रुटि पाई जाने पर कार्रवाई करना।
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भविष्य में, प्रौद्योगिकी-सहायता (जैसे बायोमेट्रिक मिलान, मशीन-पठनीय सूची, पहचान व सत्यापन तंत्र) को शीघ्रता से लागू होना चाहिए ताकि जोखिम सीमा पर आए।
भारत की चुनावीय प्रक्रिया की गरिमा हम सब की साझा जिम्मेदारी है। यदि हमें “एक मत, एक व्यक्ति” का सिद्धांत सुदृढ़ रखना है, तो अब सिर्फ प्रक्रिया के नाम पर नहीं बल्कि उसकी विश्वसनीयता पर काम करना होगा।
