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CJI सूर्यकान्त नियुक्त: उनके महत्वपूर्ण फैसलों और विवादों को समझिए एक विस्तृत विश्लेषण में

 नई दिल्ली | 16 नवंबर 2025  |✍🏻 Z S Razzaqi |वरिष्ठ पत्रकार 

भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा 30 अक्तूबर को लिए गए ऐतिहासिक निर्णय के साथ, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ जज जस्टिस सूर्यकान्त को भारत का अगला मुख्य न्यायाधीश (CJI) नियुक्त किया गया है।

24 नवंबर 2025 को वे देश की न्यायिक प्रणाली की सबसे ऊँची कुर्सी संभालेंगे। हाल के मुख्य न्यायाधीशों के अपेक्षाकृत छोटे कार्यकाल की तुलना में उनका कार्यकाल लगभग 15 महीनों का होगा, जो फ़रवरी 2027 तक चलेगा।

सुप्रीम कोर्ट का चीफ़ जस्टिस न केवल न्यायिक मामलों में निर्णय देने वाला सर्वोच्च अधिकारी होता है, बल्कि वह शीर्ष अदालत के प्रशासनिक ढाँचे, बेंच गठन से लेकर मामलों की लिस्टिंग तक, हर महत्वपूर्ण व्यवस्था का केंद्र होता है। इसलिए न्यायपालिका में अक्सर कहा जाता है कि

  “हर बड़े निर्णय में चीफ़ जस्टिस का एक अदृश्य लेकिन निर्णायक हाथ होता है।”


हाल के चर्चित मामलों में उनकी भूमिका

पिछले कुछ वर्षों में जस्टिस सूर्यकान्त ने कई महत्वपूर्ण और सुर्खियों में रहे मामलों में निर्णायक भूमिका निभाई है—

  • बिहार में ‘स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन’ प्रक्रिया की वैधता

  • कॉमेडियन समय रैना के ‘इंडियाज़ गॉट लेटेंट’ शो से जुड़ा मामला

  • अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली ख़ान महमूदाबाद की गिरफ्तारी

  • नूपुर शर्मा मामला, जिसमें उनकी टिप्पणियों ने व्यापक बहस छेड़ी

  • यूएपीए मामलों में देरी पर ज़मानत का ऐतिहासिक फैसला

इन मामलों की वजह से उनके फैसले कई विचारधाराओं के गुटों में चर्चा, समर्थन और आलोचना — दोनों का कारण बने।


वकालत से लेकर देश की सर्वोच्च कुर्सी तक: एक लंबा सफ़र

हरियाणा में शुरुआत

सिर्फ 22 वर्ष की उम्र में वकालत शुरू करने वाले सूर्यकान्त ने 1985 में पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट, चंडीगढ़ में प्रैक्टिस शुरू की।
16 वर्षों की वकालत के बाद, 38 वर्ष की आयु में उन्हें हरियाणा का एडवोकेट-जनरल नियुक्त किया गया — यह उस पद के लिए बेहद कम आयु मानी जाती है।

वे अभी सीनियर एडवोकेट भी नहीं थे, और 2001 में उन्हें यह पद सम्मानस्वरूप दिया गया।

न्यायिक पदों की ओर बढ़ते कदम

  • 2004 – पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के जज

  • 2019 – हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश

  • 2019 – सुप्रीम कोर्ट के जज

इन पदों पर रहते हुए उन्होंने कई संवैधानिक और राष्ट्रीय महत्व के मामलों में न्यायिक नेतृत्व दिखाया।


विवाद और लगाए गए आरोप: एक पुराना सवाल, जो अब भी अधूरा

जस्टिस सूर्यकान्त के नाम के साथ कुछ पुराने आरोप भी बार-बार चर्चा में रहे हैं।

2012 की शिकायत

समाचार पत्रिका कारवां की रिपोर्ट के अनुसार, 2012 में व्यापारी सतीश कुमार जैन ने तत्कालीन CJI को पत्र लिखा था जिसमें आरोप था कि जस्टिस सूर्यकान्त ने कई संपत्ति लेन-देन में ‘अंडरवैल्यूएशन’ दिखाया और लगभग 7 करोड़ रुपए के ट्रांजेक्शन पर टैक्स से बचा।

2017 में एक कैदी का आरोप

पंजाब के कैदी सुरजीत सिंह ने दावा किया कि जस्टिस सूर्यकान्त ने रिश्वत लेकर ज़मानतें दीं।

इन आरोपों पर क्या कार्रवाई हुई—यह साफ़ नहीं है। इंडियन एक्सप्रेस और कारवां की रिपोर्टों के अनुसार, जस्टिस आदर्श गोयल ने तत्कालीन CJI दीपक मिश्रा को पत्र लिखकर स्वतंत्र जांच की मांग भी की थी।

लेकिन बाद में क्या हुआ?

  • 2019 – बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने एक पत्र में आरोपों को निराधार बताया।

  • सुप्रीम कोर्ट तथा जस्टिस सूर्यकान्त से इन आरोपों पर BBC के प्रश्नों का कोई जवाब अब तक नहीं मिला।


संपत्ति का खुलासा: चर्चा और पारदर्शिता

मई 2025 में सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर जजों की संपत्ति पहली बार सार्वजनिक की गई।
जस्टिस सूर्यकान्त के खुलासे में—

  • 8 संपत्तियाँ

  • कई करोड़ रुपये के निवेश
    शामिल थे, जिसके बाद यह मुद्दा व्यापक चर्चा में रहा।


सुप्रीम कोर्ट में अहम फैसले: संवैधानिक प्रश्नों के निर्णायक

पिछले छह वर्षों में जस्टिस सूर्यकान्त कई अत्यंत महत्वपूर्ण मामलों की बेंच में शामिल रहे—

1. अनुच्छेद 370 को हटाने को चुनौती

2. राजद्रोह कानून की वैधता

3. पेगासस स्पाइवेयर मामले में स्वतंत्र जांच

4. असम में नागरिकता प्रश्न

5. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का अल्पसंख्यक दर्जा

इन सभी मामलों ने भारत की राजनीति, संघीय ढांचे और नागरिक अधिकारों पर बड़ा प्रभाव डाला।


नूपुर शर्मा मामला: एक टिप्पणी जिसने बहस बदल दी

2022 में टीवी बहस के दौरान की गई टिप्पणियों पर नूपुर शर्मा के खिलाफ देशभर में FIRs दर्ज हुईं।
जस्टिस सूर्यकान्त की बेंच ने:

  • गिरफ्तारी पर रोक लगाई

  • सभी केस दिल्ली में ट्रांसफर किए

  • मौखिक टिप्पणी में कहा कि “एक व्यक्ति की टिप्पणी के कारण देश में हिंसा हुई और एक हत्या हुई।”

यह टिप्पणी राजनीतिक हलकों, मीडिया और कानूनी समुदाय में व्यापक चर्चा का कारण बनी।


UAPA पर प्रगतिशील दृष्टिकोण: एक मिसाल

2021 के एक उल्लेखनीय फैसले में उन्होंने कहा कि—

“यदि मुकदमे में देरी हो रही हो, तो UAPA जैसे कठोर कानूनों में भी आरोपी को ज़मानत दी जानी चाहिए।”

यह निर्णय देश में आतंकवाद विरोधी कानूनों के उपयोग और दुरुपयोग पर महत्त्वपूर्ण बहस का आधार बना।

डेल्ही दंगों के आरोपियों सहित कई प्रकरणों में इस निर्णय का हवाला देकर ज़मानतें मिलीं।


मुख्य न्यायाधीश बनने के बाद सामने आने वाली बड़ी चुनौतियाँ

जब वे सुप्रीम कोर्ट की कमान संभालेंगे, उनके सामने कई राष्ट्रीय महत्व के लंबित मामले होंगे—

1. बिहार सहित देशभर में ‘स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन’ की संवैधानिकता

2. नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ याचिकाएँ

3. वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने की मांग

4. मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति की प्रक्रिया

5. मनी लॉन्ड्रिंग कानून (PMLA) की वैधता

6. भारत में रह रहे रोहिंग्या शरणार्थियों का भविष्य

इन सबके बीच सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह होगा कि क्या वे सुप्रीम कोर्ट में संवैधानिक पीठों की सक्रियता को फिर से बढ़ाएंगे—जैसा जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ के कार्यकाल में देखने को मिला था।


निष्कर्ष: एक प्रभावशाली लेकिन विवादों से घिरी यात्रा

जस्टिस सूर्यकान्त का करियर असाधारण उपलब्धियों, साहसिक फैसलों, आलोचनात्मक टिप्पणियों और कुछ विवादित आरोपों का अनूठा मिश्रण रहा है। आने वाले 15 महीने यह तय करेंगे कि:

  • वे संवैधानिक मामलों को किस प्राथमिकता पर रखते हैं,

  • न्यायपालिका में पारदर्शिता को कितनी मजबूती देते हैं,

  • और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, नागरिक अधिकारों एवं राज्य की शक्ति—इनके संतुलन को किस दिशा में ले जाते हैं।

भारत के अगले मुख्य न्यायाधीश के रूप में उनकी भूमिका देश की कानूनी और लोकतांत्रिक यात्रा में निर्णायक साबित होगी।

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