नई दिल्ली | 17 नवंबर 2025 |✍🏻 Z S Razzaqi |वरिष्ठ पत्रकार
देश में बेरोज़गारी, विदेश जाने की बढ़ती चाह और ग़रीब-मज़दूर वर्ग की मजबूरियाँ—इन तीनों ने मिलकर एक ऐसा भूमिगत उद्योग खड़ा कर दिया है, जो हर साल हज़ारों युवाओं की मेहनत की कमाई को निगल रहा है। यह उद्योग कोई और नहीं, बल्कि फर्जी इमिग्रेशन एजेंटों और हवाला भर्ती कंपनियों का संगठित नेटवर्क है।
सबसे अधिक मामले आज भी चंडीगढ़, मोहाली, दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहरों से सामने आते हैं, जहाँ यह पूरा कारोबार खुलेआम, बिना किसी भय के, सक्रिय है।
कैसे बनता है एक आम नागरिक शिकार? पूरा ‘इमिग्रेशन स्कैम मॉडल’ समझिए
हमारी टीम ने कई पीड़ितों, एजेंटों और स्थानीय सूत्रों से बात कर पूरे फ़्रॉड मैकेनिज़्म को समझा। इसकी शुरुआत बड़े ही सधे हुए तरीके से होती है—और अंत में पीड़ित कई लाख रुपये गँवाकर भी विदेश जाना तो दूर, पुलिस रिपोर्ट तक दर्ज नहीं कर पाता।
1. शुरुआत होती है मीठी बातों और ‘नो पेमेंट’ वाले झांसे से
अधिकांश एजेंट कहते हैं—
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“हम अग्रिम पैसा नहीं लेते।”
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“सारा खर्चा विदेश में नौकरी लगने के बाद देना होगा।”
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“पहले वीज़ा, फिर पेमेंट।”
यहीं से मनोवैज्ञानिक खेल शुरू होता है।
2. पहला हथकंडा: पासपोर्ट जमा करने का दबाव
एजेंट पासपोर्ट को “वेरिफिकेशन” के नाम पर जमा करवा लेते हैं ताकि पीड़ित बीच में भाग न सके।
यही सबसे बड़ा संकेत है कि खेल शुरू हो चुका है।
3. डॉक्यूमेंट इवैल्यूएशन के नाम पर 10–15 हजार की वसूली
ग्राहक को भरोसा दिलाया जाता है कि यह “इंटरनेशनल प्रोसेस” है।
हकीकत:
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असल में इस नाम से कोई आधिकारिक प्रक्रिया ही नहीं होती।
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लिया गया पैसा सीधा एजेंट की जेब में जाता है।
4. फर्जी ऑफर लेटर का ‘ब्लैक मेलिंग टूल’
एजेंट एक बनावटी ऑफर लेटर दिखाता है, लेकिन—
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ऑफर लेटर हाथ में नहीं देता
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फोटो लेने नहीं देता
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ईमेल कॉपी नहीं देता
ताकि ग्राहक कभी क्रॉस-वेरिफिकेशन ही न कर सके।
यहाँ से धोखाधड़ी कानूनी रूप ले लेती है।
5. मेडिकल टेस्ट के नाम पर 8–10 हजार की नई ठगी
एजेंट कहता है—
“ऑफर लेटर मिल चुका है, अब मेडिकल करा लो।”
लेकिन सच्चाई यह है:
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आवश्यक जाँच की वास्तविक लागत 1000–1500 रुपये होती है
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8–10 हजार की वसूली का बड़ा हिस्सा एजेंट और कुछ निजी क्लीनिक बाँट लेते हैं
6. फर्जी ‘वर्क परमिट’—सबसे बड़ा जाल
वर्क परमिट की कॉपी कभी नहीं दी जाती।
इसके नाम पर वसूली:
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1 से 1.5 लाख रुपये अग्रिम
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वीज़ा और टिकट के समय 50 हजार से 1 लाख तक
इस समय तक एजेंट ग्राहक से 2–3 लाख रुपये तक उगलवा चुका होता है।
7. अंत में ‘वीज़ा कैंसिल’ का खेल
कुछ महीने बाद एजेंट कहता है—
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फाइल रिजेक्ट हो गई
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एम्बेसी ने वीज़ा रोक दिया
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कंपनी ने हायरिंग बंद कर दी
और इसी बहाने सम्पर्क तोड़ देता है—कॉल ब्लॉक, व्हाट्सऐप ब्लॉक, ऑफिस बंद।
जमीनी जांच: चंडीगढ़ और मोहाली में 95% एजेंट फर्जी पाए गए
हमारी टीम की सदस्य कविता शर्मा ने चंडीगढ़ के सेक्टर 37, सेक्टर 17 और मोहाली के सेक्टर 11, 12 और 66 में कई दिनों तक जमीनी जांच की।
नतीजा चौंकाने वाला था:
लगभग 95% एजेंट पूरी तरह फर्जी पाए गए।
कई ऐसे एजेंट भी मिले जिन्हें विदेश जॉब प्रोसेस के बेसिक नियम तक नहीं पता थे।
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वास्तविक पीड़ितों की कहानियाँ: दर्द, ठगी और टूटे सपनों का सच
1. संभल निवासी मोहम्मद फ़ैज़ान—‘शिवाए ओवरसीज़’ का बड़ा धोखा
फ़ैज़ान और उसके साथी से:
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30–30 हजार रुपये सर्विस चार्ज
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8 हजार मेडिकल
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कुल 38 हजार प्रति व्यक्ति लूटे गए
बाद में एजेंट ने कहा:
“जिस लड़की के खाते में भुगतान किया था, वह अब यहाँ काम नहीं करती।”
उसका नंबर भी बंद मिला।
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2. कोमल ठाकुर का Singapore Scam—मुस्तफ़ा सेंटर में मैनेजर की फर्जी नौकरी
एक शिक्षित व्यक्ति को “सिंगापुर मैनेजर जॉब” का झांसा दिया गया।
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डॉक्यूमेंट इवैल्यूएशन
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8000 का मेडिकल
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ऑफर लेटर का वादा
इसके बाद—
कोमल ठाकुर ने फोन उठाना बंद कर दिया, व्हाट्सऐप ब्लॉक कर दिया।
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फर्जी इमिग्रेशन नेटवर्क: क्यों बढ़ रहा है यह काला कारोबार?
1. बेरोज़गारी और विदेश में अच्छी नौकरी का लालच
2. गरीब और कम पढ़े-लिखे लोगों को आसानी से शिकार बनाना
3. सरकारी निगरानी की कमी
4. सोशल मीडिया पर खुलेआम फर्जी विज्ञापन
5. लोग शिकायत दर्ज कराने से डरते हैं या कानूनी प्रक्रिया नहीं जानते
हमारी अगली रिपोर्ट: फर्जी एजेंटों की पूरी लिस्ट सार्वजनिक करेंगे
हमारी टीम ने कई एजेंटों के—
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नाम
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कंपनी के नाम
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फोन नंबर
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ऑफिस लोकेशन
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सबूत
इकट्ठा कर लिए हैं।
अगली रिपोर्ट में हम पूरे नेटवर्क को निष्पक्षता से उजागर करेंगे, ताकि कोई और परिवार इस ठगी का शिकार न बने।
