21 अक्टूबर 2025 | पत्रकार :कविता शर्मा | पत्रकार
I. भूमिका : डिजिटल जगत की चमक और फ़न का असली सरमाया
परन्तु इस चमकदार वातावरण के पीछे एक गहरी सच्चाई छिपी है—
यह लेख इसी तनाव—डिजिटल लोकप्रियता बनाम वास्तविक रचनात्मकता—के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास है।
UMDS ढाँचा
नीचे पूरा लेख UMDS—Understanding, Meaning, Depth, Solution के ढाँचे में प्रस्तुत है, ताकि युवा रचनाकार केवल प्रेरित ही नहीं हों, बल्कि एक ठोस दिशा भी प्राप्त कर सकें।
II. Understanding : समस्या का वास्तविक रूप
1. लोकप्रियता को ही रचनात्मकता का मानदण्ड मान लेना
डिजिटल मंचों पर तेज़ी से मिलने वाली लोकप्रियता ने कई युवा शायरों को यह भ्रम दे दिया है कि—
“लोकप्रिय होना ही श्रेष्ठ रचना होना है।”
परन्तु यह समझ आधी-अधूरी है।
वायरल सामग्री अकसर क्षणिक होती है, और उसका प्रभाव सतही।
2. भाषा और अलंकार का गहन ज्ञान न होना
उर्दू और हिन्दी—दोनों ही भाषाएँ गहरी परम्परा रखती हैं।
परन्तु आज के कई नवयुवा—
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छन्द, बहर, वज़्न, लय
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रदीफ़-क़ाफ़िया
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शेर और नज़्म की मूलभूत संरचना
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बिंब, अलंकार, रस, प्रतीकवाद
इन सबका गहरा अध्ययन किए बिना ही लेखन आरम्भ कर देते हैं।
परिणामस्वरूप, पंक्तियाँ तो बन जाती हैं,
परन्तु अर्थ की गहराई और भाषा की नफ़ासत पीछे छूट जाती है।
3. अनुभूति और जीवनानुभव से दूरी
फ़न केवल शब्दों का ताना-बाना नहीं;
वह जीवन की खुशियों, पीड़ाओं, संघर्षों और अनुभवों से बनता है।
जब रचनाकार जीवन को छूता नहीं,
तो रचना जीवन को छू नहीं पाती।
4. डिजिटल नकल और त्वरित उत्पादन की प्रवृत्ति
Copy-paste संस्कृति, चोरी किये हुए शेर, और AI से जनरेटेड सामग्री—
इन सबने रचनात्मक ईमानदारी को चुनौती दी है।
असली फ़नकार वह है जो—
कहता वही है जो उसके भीतर जलता है।
III. Meaning : इन समस्याओं का रचनात्मक अर्थ
इन समस्याओं का मूल सार यह है कि—
**रचना को केवल अभिव्यक्ति नहीं,
बल्कि ज़िम्मेदारी माना जाए।**
एक शायर या रचनाकार भाषा का अमानती होता है।
वह केवल भाव नहीं लिखता;
वह इतिहास, संस्कृति और विचार की विरासत को आगे बढ़ाता है।
इसलिए—
लोकप्रियता क्षणिक है, परन्तु फ़न स्थायी।
अनुयायी बदलते हैं, परन्तु विचार अमर रहते हैं।
IV. Depth : रचनात्मकता का गहन विश्लेषण
1. फ़ॉलोअर्स बनाम फ़न की स्थिरता
फ़ॉलोअर्स बढ़ते-घटते रहते हैं;
प्लेटफॉर्म बदलते रहते हैं;
ट्रेंड हर सप्ताह नया होता है।
लेकिन—
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ग़ालिब का अंदाज़
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फ़ैज़ की गहराई
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मीर की सरलता
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फ़िराक़ की तन्मयता
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अमृता की कोमलता
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निराला की विद्रोहशीलता
—सदियों बाद भी जहाँ की तहाँ खड़ी है।
क्यों?
क्योंकि उनका फ़न ट्रेंड पर आधारित नहीं था—
वह अनुभव, अध्ययन और मनुष्य की आत्मा पर आधारित था।
2. भाषा की तहों को समझना
उर्दू और हिन्दी दोनों भाषाएँ केवल शब्दों का समूह नहीं,
बल्कि सभ्यता का इतिहास हैं।
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एक शेर में सौ वर्षों की संस्कृति छिपी हो सकती है।
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एक रूपक में मनुष्य के संघर्षों का सार हो सकता है।
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एक प्रतीक में पूरी सभ्यता का बोध समाया हो सकता है।
इस भाषा को समझे बिना शेर कहना
ऐसा ही है जैसे बिना समुद्र को जाने उसकी लहरों की तस्वीर बनाना।
3. रचनाकार की सामाजिक-मानवीय भूमिका
एक रचनाकार समाज का दर्पण होता है।
वह केवल देखता नहीं—वह दिखाता है।
उसका शब्द किसी के भीतर—
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उजाला जगाता है
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सुकून देता है
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प्रश्न उठाता है
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मार्ग खोजता है
रचनाकार का कार्य सौन्दर्य ही नहीं;
चेतना भी है।
V. Solutions : ठोस और प्रभावी समाधान
अब समाधान—जो नवयुवा रचनाकार को वास्तविक मज़बूती देंगे।
1. प्रतिदिन अध्ययन (Daily Literature Immersion)
रोज़ पढ़ें:
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मीर, ग़ालिब, ज़ौक़, मोमिन
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निराला, महादेवी, दिनकर, तुलसी, मीरा
अध्ययन रचना की मिट्टी को उर्वर बनाता है।
2. भाषा और छन्द का व्यवस्थित अभ्यास
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उर्दू शायरी के लिए — बहर, वज़्न, रदीफ़-क़ाफ़िया
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हिन्दी कविता के लिए — छन्द, लय, रस, अलंकार
इनका अभ्यास सृजन को ताक़त देता है।
3. अनुभूति और जीवनानुभव को प्राथमिकता
लिखने से पहले
जीएँ, देखें, सुनें, महसूस करें।
रचना अनुभव से जन्म ले,
तभी वह अनुभव दे सकेगी।
4. ईमानदार रचना-संस्कृति (Creative Integrity)
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किसी का शेर कॉपी न करें
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AI को सहायक रखें, सृजनकर्ता नहीं
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अपना स्वर खोजें
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अपनी सोच विकसित करें
फ़न का सबसे ऊँचा आदर्श — मौलिक ( असलीपन )
5. डिजिटल प्लेटफॉर्म को साधन समझें, साध्य नहीं
Instagram, YouTube, X—
ये माध्यम हैं, लक्ष्य नहीं।
लक्ष्य है —
एक ऐसी रचना, जो समय की धूल में भी चमकती रहे।
VI. निष्कर्ष :
फ़नकार वही, जो फ़न की इज़्ज़त समझे
युवा शायरों और रचनाकारों के लिए यह समय स्वर्णिम भी है और चुनौतीपूर्ण भी।
इसलिए—
पेश हे डॉ ताहिर रज़ज़ाक़ि साहब का एक क़तआ
माना के ज़माने में हुए हो मशहूर
खुश फ़हमियों ने करदिया तुमको मग़रूर
शोहरत कोई मेयआर नहीं हे ताहिर
फ़नकार को लाज़िम हे फ़न का भी शाउर
