14 नवंबर 2025 |✍🏻 Z S Razzaqi | अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार
परिचय
अमेरिका के कुख्यात अरबपति और यौन अपराधी जेफ़्री एप्स्टीन से जुड़ी नई ईमेल श्रृंखला ने अमेरिकी राजनीति, पत्रकारिता की नैतिक सीमाओं और मीडिया–सत्ता संबंधों पर बड़ा प्रश्नचिह्न लगा दिया है। इन अभूतपूर्व खुलासों ने न केवल डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन पर दबाव बढ़ाया है, बल्कि यह भी उजागर किया है कि शीर्ष पत्रकार और लेखक किस तरह से स्रोतों के साथ जटिल रिश्ते बनाते हैं — और उसके नतीजे में पत्रकारिता की निष्पक्षता कहाँ खड़ी रह जाती है।
ट्रम्प और एप्स्टीन: फाइल्स जारी करने की बढ़ती मांग
नई ईमेल्स के सामने आने के बाद अमेरिकी कांग्रेस अगले हफ्ते एप्स्टीन से जुड़ी सभी सरकारी फाइलें सार्वजनिक करने पर मतदान कर सकती है।
ट्रम्प सरकार पर सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं क्योंकि:
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ये ईमेल्स संकेत देते हैं कि ट्रम्प और एप्स्टीन के रिश्ते पहले अनुमान से अधिक गहरे हो सकते हैं।
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विपक्ष का दावा है कि ट्रम्प प्रशासन जनता से जानबूझकर कई महत्वपूर्ण दस्तावेज छिपा रहा है।
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ट्रम्प ने फिर कहा कि वो “एप्स्टीन को जानते थे, पर शुरुआती 2000 के बाद संबंध खत्म हो गए”।
लेकिन डेमोक्रेट्स का कहना है कि उपलब्ध ईमेल्स इस बयान को कमजोर करते हैं और बड़ी सच्चाई छुपी हुई है।
माइकल वोल्फ की भूमिका: क्या पत्रकारिता की सीमा लांघी गई?
सबसे बड़ा विवाद प्रसिद्ध लेखक माइकल वोल्फ की भूमिका को लेकर है — जो ट्रम्प प्रशासन पर अपने बेस्टसेलर एक्सपोज़ के लिए जाने जाते हैं।
ईमेल्स में वोल्फ क्या करते दिखे?
नई ईमेल्स बताती हैं कि:
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वोल्फ दिसंबर 2015 की CNN राष्ट्रपति बहस से पहले एप्स्टीन को यह बता रहे थे कि ट्रम्प से उनके रिश्तों पर सवाल पूछा जाएगा।
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वोल्फ सलाह देते दिखते हैं कि एप्स्टीन इस स्थिति को कैसे “ट्रम्प के खिलाफ या उनके पक्ष में” इस्तेमाल कर सकता है।
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वोल्फ ने लिखा:
“अगर ट्रम्प अपना रिश्ता नकारते हैं, तो यह आपके लिए राजनीतिक और PR पूंजी बन सकती है।”
यह संवाद यह संकेत देता है कि एक अनुभवी लेखक निजी स्रोत के लिए रणनीति बनाने में शामिल थे — जो पत्रकारिता की परंपरागत नैतिक रेखाओं का स्पष्ट उल्लंघन माना जा सकता है।
मीडिया नैतिकता के विशेषज्ञ क्या कहते हैं?
1. “दो मालिक नहीं होते”: जेन कर्टली
जेन कर्टली, यूनिवर्सिटी ऑफ मिनेसोटा, प्रोफेसर —
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“रिपोर्टर, कमेंटेटर और बुक ऑथर — तीनों की भूमिकाएँ अलग हैं।”
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“अगर कोई पत्रकार PR सलाह देने लगे, तो वह स्वतंत्र पत्रकार नहीं रह जाता।”
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“जनता को विश्वास होता है कि पत्रकार किसी के हित में नहीं, बल्कि जनहित में काम करता है — और वोल्फ का व्यवहार इस भरोसे को तोड़ता है।”
2. “नज़दीकी रिश्ते खतरनाक हो सकते हैं”: एडवर्ड वॉसरमैन
एडवर्ड वॉसरमैन, यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफ़ोर्निया, बर्कले —
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“स्रोतों से संबंध बनाना ज़रूरी है, पर उसकी कुछ सीमाएँ होती हैं।”
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“वोल्फ सिर्फ जानकारी नहीं ले रहे थे, बल्कि एप्स्टीन को रणनीतिक सलाह दे रहे थे — और बाद में वही लेखक इन घटनाओं पर रिपोर्ट भी करता है, यह विश्वसनीयता पर बड़ा सवाल खड़ा करता है।”
पत्रकार–स्रोत संबंध: ज़रूरी लेकिन ख़तरों से भरा
पत्रकार अक्सर अपने स्रोतों से नज़दीकी बनाकर ही बड़ी खबरें निकालते हैं, लेकिन ऐसे रिश्ते कई बार उलझ जाते हैं।
इस मामले ने तीन बड़े खतरे उजागर किए:
1. स्रोत पर अत्यधिक निर्भरता
जब पत्रकार अपने स्रोत को “फ़ायदा पहुँचाने” लगे, तो निष्पक्ष रिपोर्टिंग असंभव हो जाती है।
2. सत्ता केंद्रों के साथ अनैतिक निकटता
एप्स्टीन, ट्रम्प और मीडिया — तीनों की त्रिकोणी कड़ी अमेरिका की सत्ता संरचना पर गहरे सवाल उठाती है।
3. पत्रकारिता का उद्देश्य भटक जाना
वॉसरमैन के अनुसार:
“वोल्फ ने कहीं भी यह नहीं पूछा कि ट्रम्प एप्स्टीन की यौन शोषण वाली गतिविधियों में शामिल थे या नहीं — जबकि जनता का मुख्य सवाल यही है।”
एक और केस: न्यूयॉर्क टाइम्स रिपोर्टर की एप्स्टीन से नज़दीकी
ईमेल्स से यह भी पता चला कि Landon Thomas Jr, जो NYT के वित्त संवाददाता थे, एप्स्टीन को PR जैसी जानकारी देते थे।
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उन्होंने एप्स्टीन से एक सांस्कृतिक केंद्र के लिए $30,000 दान की भी मांग की।
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बाद में यह नैतिक उल्लंघन माने जाने पर वह NYT से बाहर हो गए।
यह घटना बताती है कि एप्स्टीन की पहुँच मीडिया तक कितनी गहरी थी।
क्या वोल्फ का एप्स्टीन से रिश्ता किसी बड़े खुलासे का कारण बना?
अब तक उपलब्ध दस्तावेज़ यह नहीं बताते कि माइकल वोल्फ ने एप्स्टीन के साथ संबंध से कोई बड़ा जनहितकारी खुलासा किया हो।
बल्कि ईमेल्स से यह उल्टा संकेत मिलता है कि:
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वोल्फ ने एप्स्टीन से जुड़े संभावित यौन अपराधों पर कोई तीखा सवाल नहीं उठाया,
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और न ही ट्रम्प की उन गतिविधियों पर प्रकाश डाला जिनके बारे में जनता जानना चाहती है।
इससे उन पर “चयनात्मक चुप्पी” बरतने का आरोप लगाया जा रहा है।
निष्कर्ष:-
एक खुलासा जो पत्रकारिता और सत्ता—दोनों पर सवाल छोड़ गया
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पत्रकारिता, नैतिकता और सत्ता के बीच की सीमा बेहद पतली है,
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और जब पत्रकार स्रोत से ज़रूरत से ज़्यादा जुड़ जाते हैं, तो जनता का भरोसा सबसे पहले टूटता है।
