नई दिल्ली | 13 नवंबर 2025 |✍🏻 Z S Razzaqi |वरिष्ठ पत्रकार
प्रस्तावना
भारत के राजनीतिक मानचित्र पर आज एक ऐसा मोड़ आया हुआ है जहाँ सिर्फ पार्टियों की शक्ति या वर्य़-निर्भर वोट बैंक ही नहीं, बल्कि युवाओं की आकांक्षाएँ, सोशल-मीڈیا-सक्रियता और नई पीढ़ी की असंतुष्टि भी निर्णायक बनी है। इसी संदर्भ में, देश का सबसे युवा राज्य—बिहार—में चल रहे विधानसभा चुनाव (243 सीटें) अच्छे-खासे मायने रखते हैं। न केवल राज्य के भविष्य के लिए, बल्कि केंद्र में मोदी-नेतृत्व वाले गठबंधन के लिए भी यह एक महत्वपूर्ण परीक्षा है।
जेन ज़ेड का बिहार में उभार
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बिहार की जनसंख्या में लगभग 58 % युवा (25 वर्ष से कम उम्र) हैं।
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इसके चलते “पहली बार वोटर”, सोशल-मीडिया-सक्रिय युवक-युवतियाँ और रोजगार-उम्मीदों से जुड़े प्रश्न राज्य की राजनीति में नए सिरे से प्रवेश कर रहे हैं।
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लेकिन यह जेन ज़ेड ऐसा एक-समान समूह नहीं है जिसमें पारंपरिक जात-धर्म-परिवारवादी राजनीति सीधे काम करे। एनजीओ Association for Democratic Reforms और मीडिया विश्लेषण बताता है कि “युवा वोट बैंक” अधिक सक्रिय, प्रश्न-उठाने वाला और पुरानी राजनीति से निराश समूह बनता जा रहा है।
युवा-असंतुष्टि और राजनीतिक विमर्श
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रोजगार का संकट: बिहार में पिछले वर्षों में सरकारी भर्ती परीक्षा घोटाले, पेपर लीक, भर्ती रद होने जैसी घटनाओं का सामना युवा-वर्ग ने किया है।
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शिक्षा-आवश्यकता एवं अवसर-वंचना: ग्रामीण एवं अंचल जिलों में न्यून-शिक्षा-सुविधाएँ, कोचिंग-लागत बढ़ना, श्रम-उपलब्धि में कमी, ये सभी जवानों के भीतर असंतोष का भाव जगा रहे हैं।
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प्रवास एवं पहचान-विभाजन: बिहार से अन्य राज्यों में काम-खोज के लिए जाना और वहाँ सामाजिक-सामाजिक दुर्व्यवहार से उबरना अक्सर एक यथार्थ है, जिसे युवा वोटर अब राजनीतिक एजेंडा में रख रहा है।
केंद्र-राज्य गठबंधन के लिए परीक्षा
Bharatiya Janata Party (भाजपा)-नेता नरेंद्र मोदी व उनका गठबंधन National Democratic Alliance (एनडीए) बिहार में काफी समय से सक्रिय है। लेकिन इस चुनाव की ओर संकेत कर रहा है कि:
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क्या वे युवा-मतदाताओं की बदलती सोच को समझ पाए हैं?
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क्या वास्तविक रोजगार-विकास के वादे युवा-उम्मीदों को पूरा करने वाले हैं?
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क्या पुरानी जात-धर्म-आधारित राजनीति अब युवा-चाहत के अनुरूप है या पीछे छूट रही है?
विश्लेषक मानते हैं कि अगर मोदी-गठबंधन युवा-उत्तेजना तथा असंतुष्टि को शांत नहीं कर पाता, तो राज्य-स्तर पर नतीजे के साथ-साथ राष्ट्रीय राजनीति पर भी असर पड़ सकता है।
प्रतिद्वंदी की रणनीति: युवा-उम्मीद और चुनौतियाँ
मुख्य विरोधी गठबंधन Rashtriya Janata Dal (आरजेडी)-कांग्रेस-सम्बंधी Indian National Congress महागठबंधन ने युवा-केंद्रित घोषणाएँ की हैं—जैसे “प्रति परिवार सरकारी नौकरी” वादा। लेकिन मीडिया-रिपोर्ट्स बताते हैं कि इन वादों की व्यवहार्यता व विश्वसनीयता पर युवक-वर्ग लगातार प्रश्न उठा रहा है।
क्या पुरानी राजनीति अब काम नहीं करेगी?
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बिहार में परंपरागत जात-आधारित वोट बैंक अब कई युवा वोटरों के लिए निर्णायक नहीं रह गया। उदाहरण के लिए, एक 18 वर्षीय युवा कहती है कि “मैं अपने परिवार के दक्षिणपंथी वोट बैंक को नहीं मानने वाली; मैं अपने भविष्य पर वोट दूँगी।”
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परन्तु यह भी देखा गया है कि शासी-नेताओं को अप्रचलित मानना आसान है, लेकिन बदलाव की दिशा में रणनीति एवं संरचना अभी कमजोर है — युवाओं के मुद्दे गूंज रहे हैं लेकिन समाधान अभी कम दिख रहे हैं।
चुनावी परिदृश्य का विश्लेषण
| बिंदु | विवरण |
|---|---|
| मतदाता-उम्र व जनशक्ति | लगभग 58 % आबादी 25 वर्ष से कम उम्र की। |
| प्रमुख राजनीतिक प्रश्न | रोजगार की कमी, शिक्षा-सुविधाओं में कमी, युवा-प्रवास, पदावली-भ्रष्टाचार। |
| जेन ज़ेड-मनोविज्ञान | सोशल-मीडिया-सक्रिय, आकांक्षावान, पुरानी राजनीति से निराश। |
| रणनीतिक गरम-बिंदु | युवा-विप्लव की संभावना, पुराने वोट बैंक का टूटना, नई पार्टियों-फ्रंट्स का उभार। |
| मोदी-गठबंधन के लिए संकेत | यदि युवा-वोट नहीं मिले, तो गठबंधन की राजनीति पर प्रश्न चिन्ह। |
| विपक्ष के लिए संकेत | युवा-उम्मीदों की दिशा में glaubwürdige प्रस्ताव देने होंगे, नहीं तो असफलता-खतरा। |
निष्कर्ष:-
बिहार का यह चुनाव सिर्फ एक राज्य-व्यापी मुकाबला नहीं है, बल्कि यह भारत के राजनीतिक भू-मानचित्र पर युवा-उम्मीदों, विकास-वास्तविकताओं और पुरानी राजनीति के टकराव का प्रतिनिधि बनकर उभरा है। युवा-पीढ़ी, खासकर जेन ज़ेड, अब केवल वोट देने वालों के रूप में नहीं, बल्कि प्रश्न उठाने वालों, नागरिक-सक्रियता के प्रतीक बनती जा रही है।
यदि मोदी-गठबंधन इस बदलाव को समझकर समय पर समृद्धि-विकास-योजनाओं को मूर्त रूप देने में सफल हो जाता है, तो वह अपनी मजबूती कायम रख सकता है। परंतु यदि यह अवसर चूक गया, तो बिहार में नया राजनीतिक अध्याय खुलने-का-संकेत मिलेगा — जहाँ युवाओं ने तय किया होगा कि वे पुरानी राजनीति और पुरानी सहयोग-असहयोग व्यवस्था को नहीं दोहराएँगे।
