19 अक्टूबर 2025 ✍🏻 Z S Razzaqi | अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार
‘No Kings’ आंदोलन के बीच आया यह वीडियो
यह वीडियो उस समय सामने आया जब पूरे अमेरिका में “No Kings” नामक आंदोलन जोरों पर है। इस आंदोलन में करीब 70 लाख से अधिक लोगों ने हिस्सा लिया है, जिनका मुख्य उद्देश्य ट्रंप की बढ़ती राजनीतिक शक्ति और उनके ‘राजशाही जैसे व्यवहार’ का विरोध करना है।
प्रदर्शनकारियों का कहना है कि ट्रंप अब लोकतांत्रिक व्यवस्था से ऊपर खुद को ‘राजा’ के रूप में पेश कर रहे हैं — और यही प्रतीकात्मकता इस AI वीडियो में भी झलकती है।
AI वीडियो में ‘भूरे तरल’ का प्रतीकवाद
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि वीडियो में दिखाया गया भूरा तरल पदार्थ (brown liquid) प्रतीकात्मक रूप से ‘गंदगी’ या ‘राजनीतिक विषाक्तता’ को दर्शाता है — यानी ट्रंप अपने आलोचकों पर डिजिटल माध्यम से ‘हमला’ कर रहे हैं।
कई पर्यवेक्षकों के अनुसार, यह दृश्य ट्रंप की उस विचारधारा को प्रतिबिंबित करता है जिसमें वे विरोध को अपमान और उपहास का विषय बना देते हैं।
रिपब्लिकन खेमे की प्रतिक्रिया: ‘देशद्रोही’ करार दिया गया आंदोलन
ट्रंप समर्थक रिपब्लिकन नेताओं ने इस आंदोलन को लेकर तीखी प्रतिक्रिया दी है।
हाउस स्पीकर माइक जॉनसन ने ‘No Kings’ रैलियों को “Hate America” अभियान बताया, जबकि परिवहन मंत्री सीन डफी ने प्रदर्शनकारियों को Antifa और Pro-Hamas संगठनों से जुड़ा बताया।
इन आरोपों ने विरोध प्रदर्शन को और अधिक राजनीतिक बना दिया है।
‘राजा ट्रंप’ की छवि पर डिजिटल मुहिम
ट्रंप के समर्थकों ने भी ‘किंग’ इमेज को अपनाते हुए सोशल मीडिया पर कई AI निर्मित तस्वीरें और वीडियो साझा किए हैं, जिनमें ट्रंप को ताज पहने और शाही परिधान में दिखाया गया है।
उपराष्ट्रपति जे.डी. वांस ने खुद एक वीडियो पोस्ट किया जिसमें ट्रंप को क्राउन और केप पहने दिखाया गया, जबकि डेमोक्रेट नेताओं जैसे नैन्सी पेलोसी को उनके सामने झुकते हुए दिखाया गया है।
यह ट्रेंड इतना तेज़ी से बढ़ा कि Time Magazine की नकली कवर इमेजेस और AI एनीमेशन क्लिप्स इंटरनेट पर वायरल होने लगे — जिसमें ट्रंप व्हाइट हाउस की बालकनी से ‘शाही अंदाज़’ में हाथ हिलाते नज़र आ रहे हैं।
AI प्रचार की राजनीति: नया हथियार या लोकतंत्र के लिए खतरा?
राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार, ट्रंप इस तरह के AI प्रचार अभियानों से अपने समर्थकों के बीच ‘शक्तिशाली और अविनाशी नेता’ की छवि बनाने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि आलोचकों का कहना है कि यह डिजिटल मिथ्याचार (digital disinformation) का नया रूप है, जो लोकतंत्र के लिए ख़तरनाक साबित हो सकता है।
