19 अक्टूबर 2025 ✍🏻 Z S Razzaqi |वरिष्ठ पत्रकार
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का दीपावली से पहले दिया गया वक्तव्य इन दिनों राजनीतिक बहस का केंद्र बन गया है।
अखिलेश की बात: दिखावे से ज़्यादा व्यवस्था की रोशनी ज़रूरी
अखिलेश यादव ने कहा था —
“मैं कोई सलाह नहीं देना चाहता, लेकिन एक बात भगवान राम के नाम पर कहना चाहूंगा। दुनिया के तमाम देश क्रिसमस पर महीनों तक सुंदर रोशनी में डूबे रहते हैं। हमें भी उनसे सीखना चाहिए। दीयों और मोमबत्तियों पर इतना पैसा खर्च करने से अच्छा है कि हम स्थायी और खूबसूरत प्रकाश व्यवस्था करें। जो सरकार दिखावे में उलझी है, उसे जनता को असली विकास देना चाहिए।”
उनकी यह बात फिजूलखर्ची, प्रदूषण और सरकारी धन के दुरुपयोग के खिलाफ थी — लेकिन भाजपा ने इसे धार्मिक विरोध का रूप देकर राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश की।
भाजपा और विहिप की प्रतिक्रिया: विकास पर नहीं, विवाद पर ध्यान
विहिप के प्रवक्ता विनोद बंसल और भाजपा नेताओं ने अखिलेश पर हमला बोलते हुए कहा कि “दीयों की रोशनी ने उनका दिल जला दिया है।”
परंतु यह सवाल जनता पूछ रही है कि –
क्या कोई भी व्यक्ति अगर व्यावहारिक और विकासपरक सुझाव दे, तो उसे भी अब धर्म-विरोधी कह दिया जाएगा?
भाजपा का यह रवैया दर्शाता है कि वह समाज में बहस या सुधार नहीं चाहती, बल्कि हर मुद्दे को धर्म और नफ़रत की राजनीति में बदलना उसकी पुरानी आदत बन चुकी है।
अखिलेश का दृष्टिकोण: पर्यावरण, जनता और कारीगरों का सम्मान
दीपावली पर करोड़ों दीये जलाने से प्रदूषण और संसाधनों की बर्बादी बढ़ती है — यह बात कई पर्यावरण विशेषज्ञ भी कह चुके हैं।
अखिलेश यादव ने केवल यह कहा कि सरकारी स्तर पर दिखावे के कार्यक्रमों में अरबों रुपये खर्च करने के बजाय,
– उस धन से गरीब परिवारों को बिजली,
– कारीगरों को स्थायी काम,
– और शहरों को सुंदर स्थायी प्रकाश व्यवस्था दी जा सकती है।
यह सोच संतुलित और समाजहितकारी है, न कि किसी धर्म के विरोध में।
वास्तव में, यही विचार भगवान राम के आदर्शों के अनुरूप है — जहाँ सादगी, विवेक और लोककल्याण को सर्वोपरि माना गया है।
भाजपा की राजनीति: हर रोशनी को अंधकार में बदलने की कला
अखिलेश के इस वक्तव्य को भाजपा ने ‘धर्म बनाम धर्म’ का रूप देकर जिस तरह प्रचारित किया,
वह दिखाता है कि यह पार्टी जनहित की बातों से नहीं, केवल टकराव से फलती-फूलती है।
जब कोई नेता जनता से जुड़ी, समझदारी भरी सलाह देता है, तो भाजपा उसे ‘विवाद’ बना देती है।
उनकी राजनीति के लिए नफ़रत और अराजकता ही ऑक्सीजन है — क्योंकि शांत, सोचने वाला समाज उन्हें कभी स्वीकार नहीं करेगा।
सारंग का हमला: नाम बदलकर सवाल से बचना
मध्य प्रदेश के मंत्री विश्वास सारंग ने भी इस मुद्दे पर विवादास्पद टिप्पणी करते हुए कहा कि “अखिलेश नहीं, एंथनी या अकबर कहना चाहिए।”
ऐसे बयान बतलाते हैं कि भाजपा के कुछ नेता विचारों से नहीं, नामों और धर्मों से राजनीति करते हैं।
जब कोई व्यक्ति तर्क और विवेक से बात करता है, तो वे उसकी बात का जवाब नहीं देते — बल्कि उसे धर्म, नाम या पहचान के आधार पर निशाना बनाते हैं।
वास्तविकता: दीपावली का अर्थ केवल दीया नहीं, उजाला है
अखिलेश यादव का संदेश साफ़ था – उजाला सिर्फ तेल के दीये से नहीं, समझदारी और समानता से भी फैलता है।
उन्होंने यह याद दिलाया कि दीपावली का असली उद्देश्य अंधकार का अंत है,
और आज के दौर में सबसे बड़ा अंधकार अज्ञान, नफ़रत और राजनीतिक स्वार्थ है।
यदि सरकार सच्चे अर्थों में लोककल्याणकारी दीपोत्सव चाहती है,
तो उसे दिखावे की रोशनी नहीं, जनजीवन में स्थायी उजाला लाना चाहिए।
