20 अक्टूबर 2025::कविता शर्मा | पत्रकार
भूमिका: प्रकाश की वह लौ जो हर दिल को रोशन करती है
दीवाली — या दीपावली — केवल एक पर्व नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति का उज्ज्वल प्रतीक है। यह उत्सव उस रोशनी का प्रतीक है जो अंधकार को मिटाकर जीवन में आशा और विश्वास जगाती है। हर वर्ष जब दीवाली आती है, तो पूरा देश दीपों की माला की तरह चमक उठता है — गलियाँ, छतें, मंदिर, घर और दिल सब एक समान उजाले से भर जाते हैं।
परंतु दीवाली का अर्थ केवल दीपक जलाना नहीं है। यह आत्मा के भीतर के प्रकाश को जगाने, नफरत और कटुता के अंधकार को मिटाने और नई शुरुआत का प्रतीक है।
दीवाली का इतिहास: युगों से चली आ रही रोशनी की परंपरा
दीवाली का इतिहास हजारों वर्षों पुराना है, और इसकी कथाएँ भारत की सभ्यता के हर कोने में अपनी छाप छोड़ चुकी हैं। यह उत्सव केवल एक घटना नहीं बल्कि अनेक युगों की कहानियों का संगम है।
1. भगवान श्रीराम का अयोध्या आगमन
दीवाली की सबसे प्रसिद्ध कथा त्रेतायुग से जुड़ी है। जब भगवान श्रीराम 14 वर्ष का वनवास पूरा कर रावण का वध करके अयोध्या लौटे, तब नगरवासियों ने दीपक जलाकर उनका स्वागत किया। उस दिन से यह परंपरा हर वर्ष प्रकाश पर्व के रूप में मनाई जाने लगी। यह सत्य, धर्म और मर्यादा की विजय का प्रतीक बन गया।
2. देवी लक्ष्मी का प्राकट्य
पुराणों के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान इसी दिन देवी लक्ष्मी प्रकट हुई थीं। इसलिए इस दिन को लक्ष्मी पूजन दिवस भी कहा जाता है। लोग मानते हैं कि लक्ष्मी माता उसी घर में आती हैं जहाँ स्वच्छता, सद्भावना और सकारात्मक ऊर्जा हो।
3. भगवान विष्णु और बलि की कथा
एक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर असुर राजा बलि को पाताल लोक भेजा। उसी दिन से यह विजय दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
4. जैन परंपरा में दीवाली
जैन धर्म में दीवाली का विशेष महत्व है, क्योंकि इसी दिन भगवान महावीर को मोक्ष प्राप्त हुआ था। इस दिन जैन अनुयायी दीप जलाकर आत्मज्ञान की साधना करते हैं।
5. सिख परंपरा – बंदी छोड़ दिवस
सिख धर्म में दीवाली का अर्थ स्वतंत्रता का पर्व है। गुरु हरगोविंद जी ने जब 52 राजाओं को मुग़ल कैद से मुक्त कराया, तब अमृतसर के स्वर्ण मंदिर को दीपों से सजाया गया। इसीलिए सिख दीवाली को बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाते हैं।
इस तरह दीवाली का इतिहास केवल धार्मिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और मानवीय एकता का दर्पण है।
दीवाली का सांस्कृतिक महत्व: भारतीय एकता का जीवंत प्रतीक
भारत विविधता में एकता का देश है, और दीवाली उस एकता का सबसे सुंदर उदाहरण है। यह पर्व हर जाति, धर्म, भाषा और क्षेत्र की सीमाओं को मिटाकर पूरे समाज को जोड़ देता है।
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लोग आपसी मतभेद भूलकर एक-दूसरे को मिठाइयाँ और शुभकामनाएँ देते हैं।
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बाजारों में रौनक, घरों में सफाई, गलियों में रोशनी — यह सब सामाजिक उत्साह का प्रमाण है।
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गरीब और अमीर सभी के चेहरे पर मुस्कान एक जैसी होती है, जो बताती है कि खुशियाँ बाँटने से बढ़ती हैं।
दीवाली के दौरान गाँवों से लेकर महानगरों तक एक ही भावना गूंजती है — भाईचारा, प्रेम और सद्भावना।
दीवाली का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व
दीवाली केवल भौतिक प्रकाश का नहीं, बल्कि आध्यात्मिक जागरण का प्रतीक है। जब हम दीप जलाते हैं, तो हम अपने भीतर की अंधकारपूर्ण भावनाओं को दूर करने का संकल्प लेते हैं।
“दीपक की लौ केवल रोशनी नहीं देती,
वह हमें यह सिखाती है कि जलकर भी मुस्कुराना क्या होता है।”
इस दिन लक्ष्मी जी के साथ भगवान गणेश की भी पूजा की जाती है। गणेश जी बुद्धि और विवेक के देवता हैं, और लक्ष्मी जी धन और समृद्धि की देवी — अर्थात् बुद्धि और धन का संतुलन ही सच्ची सफलता का सूत्र है।
दीवाली के पांच दिन: एक त्योहार, पांच पर्व
दीवाली केवल एक दिन का नहीं, बल्कि पाँच दिनों तक चलने वाला भव्य उत्सव है।
1. धनतेरस – समृद्धि का शुभारंभ
धनतेरस के दिन लोग नए बर्तन, गहने और वाहन खरीदते हैं। यह दिन धन और आरोग्य का प्रतीक है।
2. नरक चतुर्दशी – बुराई पर विजय का दिन
इस दिन श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया था। लोग प्रातः स्नान, सुगंधित तेलों का प्रयोग और दीपदान करते हैं।
3. दीवाली – मुख्य उत्सव
यह दिन देवी लक्ष्मी की पूजा और दीप सजाने का दिन है। लोग अपने घरों को सजा-धजा कर, मिठाइयाँ बाँटकर और दीप जलाकर आनंद का अनुभव करते हैं।
4. गोवर्धन पूजा – प्रकृति का सम्मान
यह दिन भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने की याद में मनाया जाता है। यह हमें सिखाता है कि प्रकृति की रक्षा ही सच्चा धर्म है।
5. भाई दूज – स्नेह और रक्षा का बंधन
भाई-बहन के प्रेम का यह दिन रक्षा बंधन जितना ही पवित्र है। यह रिश्तों में अपनापन और सुरक्षा की भावना को मजबूत करता है।
दीवाली की खुशियाँ: उजाले में छिपा अपनापन
दीवाली के समय का उत्साह अवर्णनीय होता है।
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बच्चे पटाखों की चमक से खुश होते हैं,
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महिलाएँ रंगोली और मिठाइयों से घर सजाती हैं,
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पुरुष दीप जलाकर लक्ष्मी पूजन की तैयारी करते हैं।
हर कोई अपनी-अपनी तरह से इस पर्व को मनाता है, लेकिन सबका उद्देश्य एक ही होता है — खुशियाँ बाँटना और प्रेम फैलाना।
दीवाली का सामाजिक और मानवीय संदेश
दीवाली हमें यह सिखाती है कि अंधकार चाहे कितना भी गहरा क्यों न हो, एक दीपक उसे मिटाने के लिए पर्याप्त है।
यह संदेश केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक भी है —
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हमें समाज में नफरत की जगह सद्भाव फैलाना चाहिए,
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निराशा की जगह उम्मीद जगानी चाहिए,
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और द्वेष की जगह प्रेम का दीप जलाना चाहिए।
“दीवाली मनाना मतलब –
अपने भीतर की अच्छाई को जगाना,
दूसरों के जीवन में उजाला फैलाना।”
दीवाली पर भेजे जाने वाले संदेश और शुभकामनाएँ
यह पर्व शुभकामनाओं और प्रेम से भरे शब्दों का भी उत्सव है। कुछ संदेश जो आप इस दीवाली पर भेज सकते हैं:
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दीप जलाओ, मुस्कान बाँटो,
यह दीवाली हर दिल को रोशन कर दे। -
लक्ष्मी जी का आशीर्वाद और गणेश जी का स्नेह,
आपके जीवन को समृद्धि से भर दे। -
इस दीवाली हर अंधकार को मिटा दीजिए,
और अपने भीतर की लौ को जगाइए। -
खुशियों की यह रौशनी आपके जीवन में नई सुबह लेकर आए।
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दीवाली का दीप हर हृदय में प्रेम का उजाला फैलाए।
दीवाली का भाईचारा और राष्ट्रीय एकता
दीवाली का सबसे बड़ा सौंदर्य यह है कि यह भारत को एक सूत्र में बाँध देती है।
यह पर्व हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध सभी समुदायों द्वारा अपने-अपने तरीके से मनाया जाता है। इससे यह सिद्ध होता है कि प्रकाश का संदेश सार्वभौमिक है — धर्म से परे, इंसानियत के लिए।
जब हर घर में दीप जलता है, तो यह केवल दीवारें नहीं, रिश्ते भी रौशन करता है। यही कारण है कि दीवाली को “संपूर्ण मानवता का उत्सव” कहा जाता है।
दीवाली और पर्यावरण: जिम्मेदार रोशनी की ओर कदम
समय के साथ दीवाली का स्वरूप बदलता गया है। आज आवश्यकता है कि हम पर्यावरण-संवेदनशील दीवाली मनाएँ।
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मिट्टी के दीयों का प्रयोग करें, प्लास्टिक से बने सजावट से बचें।
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इलेक्ट्रॉनिक लाइट्स की जगह पारंपरिक दीपक जलाएँ।
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पटाखों से होने वाले प्रदूषण को कम करें और पेड़ लगाएँ।
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जरूरतमंद बच्चों के साथ मिठाई और कपड़े बाँटें — यही सच्ची दीवाली है।
“सच्ची दीवाली वह नहीं जो आसमान में आतिशबाज़ी करे,
सच्ची दीवाली वह है जो किसी के चेहरे पर मुस्कान लाए।”
दीवाली का दार्शनिक अर्थ: आत्मा का प्रकाश
दीवाली केवल बाहरी जगमगाहट का पर्व नहीं, यह अंतर की रोशनी का प्रतीक है।
जब हम दीप जलाते हैं, तो वह केवल मिट्टी का नहीं, बल्कि हमारे भीतर के सत्य और आत्मज्ञान का दीप होता है।
भारतीय दर्शन में प्रकाश का अर्थ ब्रह्मज्ञान से जोड़ा गया है — वह ज्ञान जो आत्मा को मुक्त करता है।
इसलिए दीवाली का हर दीप हमें याद दिलाता है कि अज्ञानता का अंत ही मोक्ष का आरंभ है।
दीवाली और अर्थव्यवस्था: समृद्धि का पर्व
दीवाली का आर्थिक महत्व भी अत्यंत बड़ा है।
यह त्यौहार भारत की GDP में मौसमी वृद्धि का प्रतीक बन गया है।
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व्यापार, सोना-चाँदी, वस्त्र, इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल और मिठाइयों का कारोबार इस समय चरम पर होता है।
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छोटे दुकानदारों से लेकर बड़े उद्योगों तक, सभी के लिए यह “उम्मीद और उन्नति का मौसम” होता है।
इस तरह दीवाली आर्थिक पुनरुत्थान और सामाजिक समृद्धि दोनों की दिशा में योगदान करती है।
दीवाली और कला-संस्कृति
दीवाली के अवसर पर कला का भी एक नया रूप देखने को मिलता है।
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रंगोली, मिट्टी के दीये, तोरण, बंधनवार, सजावट, लोकगीत, नृत्य और नाटक — सब मिलकर इस पर्व को सांस्कृतिक उत्सव बना देते हैं।
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अनेक क्षेत्रों में दीवाली मेलों का आयोजन होता है, जहाँ लोक कलाकार अपनी प्रतिभा प्रस्तुत करते हैं।
यह केवल धार्मिक नहीं, बल्कि भारतीय कला और परंपरा के पुनर्जागरण का भी अवसर है।
दीवाली और विज्ञान: प्रकाश का वैज्ञानिक दृष्टिकोण
दीपक जलाने के पीछे वैज्ञानिक तर्क भी हैं।
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सरसों के तेल के दीपक से निकलने वाली सुगंध वातावरण को शुद्ध करती है।
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घर की सफाई और नए वस्त्र पहनने से स्वास्थ्य और स्वच्छता में सुधार होता है।
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दीयों की रौशनी मन को शांत करती है और सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाती है।
इसलिए कहा जाता है — दीवाली आध्यात्मिक ही नहीं, वैज्ञानिक रूप से भी उपयोगी पर्व है।
दीवाली का भविष्य: तकनीक और परंपरा का संगम
आज डिजिटल युग में दीवाली के स्वरूप में आधुनिकता का रंग जुड़ गया है।
लोग सोशल मीडिया के माध्यम से शुभकामनाएँ भेजते हैं, ई-गिफ्ट कार्ड्स और ऑनलाइन पूजा की परंपराएँ भी लोकप्रिय हो रही हैं।
परंतु आधुनिकता के साथ परंपरा का संतुलन बनाए रखना आवश्यक है।
क्योंकि दीवाली की असली आत्मा स्नेह, परिवार और एकता में ही है, न कि केवल दिखावे में।
निष्कर्ष:-
दीवाली – प्रकाश का अनंत संदेश
“एक दीप अंधकार मिटा सकता है,एक मुस्कान दुःख भुला सकती है,और एक प्रेमपूर्ण हृदय पूरी दुनिया को रोशन कर सकता है।”
