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उर्दू साहित्य का एक अहम दस्तावेज़: “आबिद हुसैन हैदरी के तहक़ीक़ी व तनक़ीदी मबाहिस” का विमोचन

 18 दिसम्बर 2025 संभल | उर्दू साहित्य समाचार | ज़िआउस सहर रज़ज़ाक़ी वरिष्ठ पत्रकार 

उर्दू अदब और अकादमिक शोध के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण साहित्यिक उपलब्धि के रूप में प्रोफेसर अब्बास रज़ा नय्यर की नवीनतम पुस्तक “आबिद हुसैन हैदरी के तहक़ीक़ी व तनक़ीदी मबाहिस” का भव्य अनावरण समारोह 18 दिसंबर 2025 को उर्दू विभाग, एमजीएम पीजी कॉलेज, संभल के तत्वावधान में अत्यंत गरिमामय वातावरण में सम्पन्न हुआ। यह आयोजन न केवल एक पुस्तक विमोचन था, बल्कि समकालीन उर्दू आलोचना, शोध और शिक्षण परंपरा का एक जीवंत साहित्यिक संवाद भी बन गया।


इस महत्वपूर्ण समारोह की अध्यक्षता कॉलेज के प्रिंसिपल प्रोफेसर योगेंद्र सिंह ने की। मुख्य अतिथि के रूप में प्रोफेसर नाशिर नक़वी (पूर्व विभागाध्यक्ष, उर्दू व फारसी, पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला) तथा विशिष्ट वक्ता के रूप में प्रोफेसर असलम जमशेदपुरी (विभागाध्यक्ष, उर्दू विभाग, चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी, मेरठ) की गरिमामयी उपस्थिति ने कार्यक्रम की शैक्षणिक ऊँचाई को और सुदृढ़ किया।

किताब और लेखक पर गंभीर विमर्श

अपने वक्तव्य में प्रोफेसर असलम जमशेदपुरी ने लेखक प्रोफेसर अब्बास रज़ा नय्यर और पुस्तक के केंद्रीय व्यक्तित्व प्रोफेसर आबिद हुसैन हैदरी—दोनों को “इल्म का मीनार” करार देते हुए कहा कि यह किताब प्रोफेसर आबिद हुसैन हैदरी के साहित्यिक, शोधात्मक और आलोचनात्मक आयामों को अत्यंत संतुलित और गहन दृष्टि से सामने लाती है। यह कृति उर्दू आलोचना में एक मानक संदर्भ के रूप में देखी जाएगी।

प्रोफेसर योगेंद्र सिंह जी डॉ नय्यर जलालपुरि साहब को सम्मानित करते हुए 

लेखक प्रोफेसर अब्बास रज़ा नय्यर ने अपने विशिष्ट आत्मीय अंदाज़ में सभी वक्ताओं, अतिथियों और आयोजकों का आभार प्रकट करते हुए कहा कि यह पुस्तक एक व्यक्ति नहीं, बल्कि उर्दू अदब की सामूहिक बौद्धिक विरासत का दस्तावेज़ है। वहीं, प्रोफेसर आबिद हुसैन हैदरी ने इस अवसर को अपने लिए अत्यंत भावुक बताते हुए कहा कि यह किताब उनके लिए प्रेम, विश्वास और प्रेरणा का प्रतीक है, जो उन्हें निरंतर रचनात्मक बने रहने की शक्ति देती है।

अकादमिक शोध, कविताएँ और सम्मान

मुख्य अतिथि प्रोफेसर नाशिर नक़वी ने प्रस्तुत किए गए शोध पत्रों पर टिप्पणी करते हुए दोनों विद्वानों की अदबी सेवाओं की प्रशंसा की और इस पुस्तक को समकालीन उर्दू शोध की एक सशक्त कड़ी बताया।
कार्यक्रम में मुहम्मद यासीन रामपुरी और डॉ. मुहम्मद आसिफ हुसैन ने पुस्तक और लेखक के बौद्धिक योगदान पर शोध पत्र प्रस्तुत किए, जबकि सुल्तान मुहम्मद ख़ान कलीम, सैयद हुसैन अफ़सर और तनवीर हुसैन अशरफ़ी ने अपनी कविताओं के माध्यम से लेखक के साहित्यिक व्यक्तित्व को रेखांकित किया।

शहर संभल के वरिष्ठ पत्रकार एवं शायर मीर शाह हुसैन साहब ने श्री नय्यर जलालपुरि की शान में कुछ यूँ कहा 

जैसे ग़ालिब के रु बा रु हे दाग़ 

शेर की फ़िक्र शायरों का दिमाग़ 

देखने में वो कितना सादा हे 

शायरों में वो शेह्ज़ादा हे 

फ़िक्रों फन में बहुत रसाई हे 

शायरी उसको रास आयी हे 

शायरी में वो बांकपन उसका 

और खिताबत में देखो फन उसका 

खुश नसीबो में नाम उसका हे 

फ़िक्र ए आबिद पे काम उसका हे 

ज़िक्र उसका हे अब फ़सानो में 

लख़नऊ के निगार खानो में 

ये सुना हे बड़ा मुखययर हे 

दस्ते फैज़ान का नाम नय्यर हे 

इल्म इंसां की ढाल हे आरिफ 

इल्म को कब ज़वाल हे आरिफ 

इस अवसर पर डॉ. किश्वर जहाँ ज़ैदी ने कंज़ा फ़ुरोग़-ए-उर्दू सोसाइटी और हकीम बुरहान संभली ने अंजुमन बुरहान-ए-सुख़न की ओर से प्रोफेसर अब्बास रज़ा नय्यर को सिपास-नामा भेंट किया। इसके अतिरिक्त डॉ. मिस्बाह अहमद सिद्दीक़ी, डॉ. फ़हीम अहमद, ताहिर सलामी, डॉ. मुहम्मद अहमद, डॉ. रियाज़ अनवर, डॉ. नवेद अहमद ख़ान और रईस अहमद अमरोहवी ने भी अपने विचार रखते हुए दोनों विद्वानों को बधाई दी।

 डॉ. किश्वर जहाँ ज़ैदी सिपास-नामा देते हुए 

कार्यक्रम की एक विशेष उपलब्धि के रूप में उर्दू विभाग की ओर से प्रोफेसर आबिद हुसैन हैदरी ने प्रोफेसर अब्बास रज़ा नय्यर को 2025 का “डॉ. सआदत अली सिद्दीक़ी तालीमी अवार्ड” प्रदान किया, जिसे उपस्थित विद्वानों ने उर्दू अकादमिक जगत के लिए एक प्रेरणादायी पहल बताया।

आयोजन और सहभागिता

मंच संचालन शफ़ीक़ उर्रहमान बरकाती ने अत्यंत सलीके और साहित्यिक गरिमा के साथ किया, जबकि डॉ. मुहम्मद इमरान ख़ान ने अंत में सभी अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापित किया। समारोह में शहर के अनेक साहित्यकार, बुद्धिजीवी, कॉलेज के शिक्षक, शोधार्थी और बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएँ उपस्थित रहे, जिससे यह आयोजन एक जीवंत साहित्यिक उत्सव में बदल गया।

निष्कर्षतः, यह पुस्तक विमोचन समारोह उर्दू साहित्य, आलोचना और शोध की परंपरा को नई दिशा देने वाला एक यादगार आयोजन सिद्ध हुआ, जिसने यह स्पष्ट कर दिया कि अकादमिक दुनिया में गंभीर, शोध-आधारित और मानवीय साहित्यिक प्रयास आज भी पूरी ऊर्जा के साथ जीवित हैं।




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