सुरक्षा के नाम पर सख़्ती
प्रशासन का कहना है कि यह निर्णय अमेरिका में प्रवेश मानकों को सख़्त करने की व्यापक नीति का हिस्सा है। व्हाइट हाउस और होमलैंड सिक्योरिटी के अनुसार, हालिया सुरक्षा घटनाओं ने वीज़ा स्क्रीनिंग, दस्तावेज़ सत्यापन और यात्रा अनुमतियों की प्रक्रिया की दोबारा समीक्षा को ज़रूरी बना दिया है।
पूर्ण प्रतिबंध की सूची में पाँच नए देश
मंगलवार (16 दिसंबर, 2025) को घोषित फैसले के अनुसार, जिन देशों के नागरिकों के अमेरिका में प्रवेश पर पूरी तरह रोक लगाई गई है, वे हैं:
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बुर्किना फ़ासो
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माली
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नाइजर
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दक्षिण सूडान
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सीरिया
इन देशों को पहले से प्रतिबंधित देशों की सूची में जोड़ा गया है, जिससे कुल प्रतिबंधित देशों की संख्या 30 से अधिक हो गई है।
15 देशों पर आंशिक प्रतिबंध
इसके अलावा, आंशिक प्रतिबंध झेलने वाले देशों की सूची में 15 नए नाम शामिल किए गए हैं। इन देशों के नागरिकों पर वीज़ा की कुछ श्रेणियों में अतिरिक्त जांच, सीमित प्रवेश या विशेष शर्तें लागू होंगी:
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अंगोला
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एंटीगुआ और बारबुडा
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बेनिन
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कोटे डी’आइवोआर
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डोमिनिका
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गैबॉन
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गाम्बिया
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मलावी
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मॉरिटानिया
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नाइजीरिया
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सेनेगल
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तंज़ानिया
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टोंगा
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ज़ाम्बिया
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ज़िम्बाब्वे
फ़िलिस्तीनी ट्रैवल डॉक्यूमेंट्स पर पूरी रोक
इस फैसले का एक अहम और संवेदनशील पहलू यह भी है कि Palestinian Authority द्वारा जारी किए गए ट्रैवल डॉक्यूमेंट्स पर पूरी तरह यात्रा प्रतिबंध लगा दिया गया है। इसका मतलब है कि ऐसे दस्तावेज़ों के आधार पर अमेरिका की यात्रा अब संभव नहीं होगी।
पहले से लागू प्रतिबंध और यह नया विस्तार
गौरतलब है कि जून 2025 में ट्रंप प्रशासन ने 12 देशों पर पूर्ण प्रतिबंध और 7 देशों पर आंशिक रोक की घोषणा की थी। उस समय जिन देशों पर पूर्ण बैन था, उनमें शामिल थे:
अफ़ग़ानिस्तान, म्यांमार, चाड, कांगो गणराज्य, इक्वेटोरियल गिनी, एरिट्रिया, हैती, ईरान, लीबिया, सोमालिया, सूडान और यमन।
जबकि बुरुंडी, क्यूबा, लाओस, सिएरा लियोन, टोगो, तुर्कमेनिस्तान और वेनेज़ुएला जैसे देशों के नागरिकों पर कड़ी शर्तों के साथ आंशिक प्रतिबंध लागू थे।
नया फैसला इन्हीं नीतियों का विस्तारित और अधिक कठोर संस्करण माना जा रहा है।
राजनीतिक और मानवीय बहस तेज
ट्रैवल बैन के इस विस्तार ने अमेरिका के भीतर और अंतरराष्ट्रीय मंच पर राजनीतिक तथा मानवीय बहस को फिर तेज कर दिया है। आलोचकों का कहना है कि यह नीति सुरक्षा से अधिक सामूहिक दंड जैसी है, जो शरणार्थियों, छात्रों और वैध यात्रियों को प्रभावित करती है। वहीं समर्थकों का तर्क है कि मौजूदा वैश्विक हालात में राष्ट्रीय सुरक्षा सर्वोपरि है।
आगे क्या?
विशेषज्ञों के मुताबिक, आने वाले महीनों में इस फैसले को लेकर कानूनी चुनौतियाँ, डिप्लोमैटिक प्रतिक्रियाएँ और संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर चर्चा बढ़ सकती है। साथ ही, प्रभावित देशों के नागरिकों के लिए वैकल्पिक वीज़ा मार्ग और मानवीय अपवादों को लेकर भी दबाव बढ़ने की संभावना है।
