21 अक्टूबर 2025 ✍🏻 Z S Razzaqi | वरिष्ठ पत्रकार
नई दिल्ली, 21 अक्टूबर 2025 — दिवाली के ठीक अगले दिन दिल्ली की सुबह एक बार फिर जहरीली धुंध में घिरी नज़र आई। सर्वोच्च न्यायालय के ‘ग्रीन पटाखों’ के आदेश और सीमित समय की अनुमति के बावजूद, लोगों ने देर रात तक आतिशबाज़ी की, जिससे राजधानी की हवा में ज़हर घुल गया।
त्योहार के बाद ज़हरीली सुबह
सोमवार रात तक लोगों ने परंपरा और उल्लास के नाम पर खूब पटाखे फोड़े, जिसके बाद मंगलवार सुबह दिल्ली का Air Quality Index (AQI) 360 पर पहुंच गया — यानी “बहुत ख़राब” श्रेणी में। कुछ इलाकों में यह स्तर 400 के पार भी चला गया, जो “गंभीर” श्रेणी मानी जाती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, 24 घंटे के औसत में PM 2.5 का स्तर 15 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक नहीं होना चाहिए, लेकिन दिल्ली के कई इलाकों में यह मानक से 24 गुना ज़्यादा दर्ज किया गया। इसका सीधा असर सांस लेने में कठिनाई, गले में जलन, आंखों में चुभन और फेफड़ों की बीमारियों के बढ़ते ख़तरे के रूप में देखा जा रहा है।
‘ग्रीन पटाखे’ का दावा और सच्चाई
2020 से दिल्ली और एनसीआर में दिवाली के दौरान पटाखों पर रोक लगी हुई थी, लेकिन इस साल सुप्रीम कोर्ट ने “ग्रीन पटाखों” के इस्तेमाल की अनुमति दी — यह दावा किया गया कि ये 20-30% कम प्रदूषण फैलाते हैं।
हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि “ग्रीन पटाखे” भी पूरी तरह सुरक्षित नहीं हैं। इनमें मौजूद धात्विक यौगिक अब भी हवा में खतरनाक रासायनिक तत्व छोड़ते हैं, जिससे प्रदूषण का स्तर घटने के बजाय बढ़ जाता है।
बीबीसी के पत्रकारों ने त्यौहार से पहले पारंपरिक पटाखों को खुलेआम बिकते हुए देखा। कोर्ट ने इन्हें फोड़ने के लिए सुबह एक घंटे और शाम दो घंटे की सीमा तय की थी, मगर हकीकत में दिल्ली, नोएडा और गुरुग्राम के कई हिस्सों में रातभर पटाखों की आवाज़ें गूंजती रहीं।
दिल्ली का दम घुटा: ‘धुएं की परत में छिपा शहर’
नोएडा के निवासी और पत्रकार विकास पांडे बताते हैं —
“सुबह जब मैं घर से निकला तो हवा में जले हुए कोयले जैसी गंध थी। धुआं इतना घना था कि इमारतें गायब लग रही थीं। मुंह में राख का स्वाद आ रहा था।”
इस दृश्य ने एक बार फिर यह साफ़ कर दिया कि राजधानी की सर्दियों की शुरुआत जहरीले धुएं के बिना नहीं होती। कम हवा की रफ़्तार, खेतों में पराली जलाने और वाहनों के उत्सर्जन ने मिलकर स्थिति को और बिगाड़ दिया है।
सरकार के उपाय और जनता की बेबसी
दिल्ली सरकार ने ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (GRAP) का अगला चरण लागू कर दिया है। इसके तहत डीज़ल जेनरेटर के इस्तेमाल, कोयला और लकड़ी जलाने पर रोक लगाई गई है। लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि सिर्फ प्रशासनिक आदेशों से समस्या हल नहीं होगी, जब तक जनता स्वयं जिम्मेदारी नहीं निभाती।
पारिस्थितिकी विशेषज्ञ डॉ. रजनीत सिंह का कहना है —
“हर साल हम वही गलती दोहराते हैं। थोड़ी खुशी के लिए हम हवा को ज़हर बना देते हैं। ग्रीन पटाखे भी प्रदूषण से मुक्त नहीं हैं। हमें उत्सव की परंपरा और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाना होगा।”
जागरूकता पर असर और भविष्य की चिंता
पिछले कुछ वर्षों में दिल्लीवासियों में प्रदूषण के प्रति जो जागरूकता आई थी, विशेषज्ञों को डर है कि सुप्रीम कोर्ट की अनुमति और उसके बाद का दुरुपयोग उस जागरूकता को कमजोर कर सकता है।
राजधानी के निवासी पारस त्यागी कहते हैं —
“आज हालत यह है कि आप घर से बाहर निकलने की सोच भी नहीं सकते। धुंध और धुएं से सांस लेना मुश्किल है। यह सिर्फ शहर नहीं, अब गांवों तक फैल चुकी समस्या है।”
निष्कर्ष:-
दिवाली का त्योहार रोशनी, उम्मीद और खुशियों का प्रतीक है, लेकिन दिल्ली की हवा इस खुशी के बीच अंधकार का आईना बन चुकी है। अब वक्त आ गया है कि ‘प्रदूषण-मुक्त दिवाली’ केवल नारा नहीं, बल्कि व्यवहारिक संकल्प बने — वरना अगली पीढ़ी को हवा नहीं, सिर्फ धुंध ही विरासत में मिलेगी।
