05 अक्टूबर 2025:✍🏻 Z S Razzaqi | अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार
पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में बीते पाँच दिनों से चल रहे हिंसक प्रदर्शनों के बाद अंततः शहबाज़ शरीफ़ सरकार को जनता के तीव्र दबाव के आगे झुकना पड़ा। प्रदर्शनकारियों के साथ सरकार ने एक व्यापक 25 सूत्रीय समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसके तहत मुआवज़ा, बुनियादी ढांचा सुधार, शिक्षा और स्वास्थ्य से जुड़ी कई बड़ी घोषणाएँ की गई हैं। सरकार ने इस समझौते को “शांति की जीत” बताया है, लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह इस्लामाबाद की प्रशासनिक असफलता और जनदबाव के आगे घुटने टेकने का स्पष्ट संकेत है।
पृष्ठभूमि: पांच दिन तक चला जनआक्रोश, 12 की मौत, सैकड़ों घायल
29 सितंबर को सरकार और जम्मू-कश्मीर संयुक्त अवामी एक्शन कमेटी (JKJAAC) के बीच वार्ता विफल होने के बाद पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में हालात बेकाबू हो गए। बिजली दरों में वृद्धि, भ्रष्टाचार, और सेना के दमन के खिलाफ हज़ारों लोग सड़कों पर उतर आए। मुज़फ़्फ़राबाद, रावलकोट और मीरपुर जैसे शहरों में जमकर हिंसा हुई। इन झड़पों में कुल 12 लोगों की मौत हुई, जिनमें तीन पुलिसकर्मी शामिल थे, जबकि सैकड़ों लोग घायल हुए।
सरकार ने स्थिति संभालने के लिए संचार सेवाएँ बंद कर दीं और अतिरिक्त पुलिस बल तैनात किया, लेकिन प्रदर्शन रुकने के बजाय और उग्र होते गए। स्थानीय लोगों का आरोप था कि इस्लामाबाद सरकार PoK के प्राकृतिक संसाधनों की खुली लूट कर रही है जबकि वहां की जनता बिजली, पानी और रोजगार जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित है।
सरकार को झुकना पड़ा, दो दिन की वार्ता के बाद समझौता
स्थिति लगातार बिगड़ती देख प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने पूर्व प्रधानमंत्री राजा परवेज़ अशरफ़ के नेतृत्व में एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल को मुज़फ़्फ़राबाद भेजा। दो दिनों तक चली बातचीत के बाद आधी रात के करीब दोनों पक्षों के बीच 25 सूत्रीय समझौते पर सहमति बनी। समझौते की घोषणा संसदीय मामलों के मंत्री तारिक फ़ज़ल चौधरी ने की। उन्होंने कहा, “एक्शन कमेटी के साथ अंतिम समझौते पर हस्ताक्षर हो गए हैं। प्रदर्शनकारी अपने घर लौट रहे हैं, सभी सड़कें खुल चुकी हैं। यह शांति की जीत है।”
समझौते के प्रमुख बिंदु
समझौते में कुल 38 में से 25 मांगों को स्वीकार किया गया है। इनमें सबसे प्रमुख हैं:
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हिंसा में मारे गए लोगों के परिवारों को मुआवज़ा प्रदान किया जाएगा।
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तोड़फोड़ और हिंसा की घटनाओं में शामिल लोगों के खिलाफ आतंकवाद के मामले दर्ज किए जाएंगे।
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मुज़फ़्फ़राबाद और पूंछ डिवीजनों में दो नए इंटरमीडिएट और सेकेंडरी एजुकेशन बोर्ड स्थापित किए जाएंगे।
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पाकिस्तान सरकार ने PoK की बिजली व्यवस्था को सुधारने के लिए 10 अरब पाकिस्तानी रुपये (PKR 10 Billion) की राशि स्वीकृत की है।
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स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार के लिए 15 दिनों के भीतर स्वास्थ्य कार्ड लागू किए जाएंगे। प्रत्येक ज़िले में चरणबद्ध रूप से MRI और CT स्कैन मशीनें लगाई जाएंगी।
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नीलम वैली रोड पर दो सुरंगों (कहोरी/कामसर – 3.7 किमी और चपलानी – 0.6 किमी) के निर्माण के लिए व्यवहार्यता अध्ययन कराया जाएगा।
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मीरपुर में एक अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डा बनाने की दिशा में कदम उठाने पर सहमति बनी।
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संपत्ति हस्तांतरण पर करों को पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा के बराबर किया जाएगा।
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एक मॉनिटरिंग और इम्प्लिमेंटेशन कमेटी गठित की जाएगी जो समझौते के सभी प्रावधानों के पालन पर निगरानी रखेगी।
जनता की नाराज़गी और विरोध की जड़ें
प्रदर्शनकारियों ने कुल 38 बिंदुओं की मांगें रखी थीं, जिनमें बिजली की ऊँची दरों में कमी, स्थानीय स्तर पर रोजगार, क्षेत्रीय संसाधनों की पारदर्शी खपत, और सेना के दमनकारी रवैये को समाप्त करने जैसी माँगें शामिल थीं। स्थानीय संगठनों का आरोप है कि पाकिस्तान की केंद्र सरकार PoK के संसाधनों, विशेष रूप से जलविद्युत परियोजनाओं से उत्पन्न बिजली, को पाकिस्तान के अन्य प्रांतों में भेजती है, जबकि स्थानीय लोगों को लगातार बिजली संकट झेलना पड़ता है।
इस पूरे आंदोलन ने पाकिस्तान की प्रशासनिक नीतियों, विशेष रूप से सैन्य दखल के खिलाफ व्यापक असंतोष को उजागर कर दिया है।
भारत की कड़ी प्रतिक्रिया: “यह पाकिस्तान की नीतियों का स्वाभाविक परिणाम”
भारत ने PoK में हुई हिंसा और पाकिस्तान सरकार के रवैये पर तीखी प्रतिक्रिया दी। भारत के विदेश मंत्रालय (MEA) ने कहा कि पाकिस्तान की यह स्थिति उसकी वर्षों से चली आ रही दमनकारी नीतियों और संसाधनों की लूट का स्वाभाविक परिणाम है।
MEA प्रवक्ता रंधीर जायसवाल ने कहा, “हम मानते हैं कि यह पाकिस्तान के दमनकारी रवैये और इन क्षेत्रों के संसाधनों की सुनियोजित लूट का स्वाभाविक परिणाम है। पाकिस्तान को PoK में हो रहे गंभीर मानवाधिकार उल्लंघनों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।”
भारत ने यह भी दोहराया कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है, और भविष्य में पाकिस्तान के साथ कोई भी वार्ता केवल इस क्षेत्र की वापसी पर ही केंद्रित होगी।
पाकिस्तान का जवाब: “भारत को लाभ न मिले”
इस्लामाबाद सरकार ने अपनी स्थिति का बचाव करते हुए कहा कि यह समझौता शांति और स्थिरता का प्रतीक है। वहीं, संघीय मंत्री अहसान इक़बाल ने प्रदर्शनकारियों से अपील की कि वे ऐसी आग न भड़काएं जिससे “भारत को लाभ” मिले। सरकार ने दावा किया कि अब क्षेत्र में स्थिति सामान्य हो रही है और जीवन धीरे-धीरे पटरी पर लौट रहा है।
विश्लेषण: क्या यह जनता की जीत है या इस्लामाबाद की रणनीतिक हार
राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार यह समझौता पाकिस्तान सरकार के लिए एक रणनीतिक पराजय है। शहबाज़ शरीफ़ सरकार लंबे समय से जनता की समस्याओं से नज़रें चुरा रही थी, लेकिन अब उसे मजबूरन झुकना पड़ा। यह आंदोलन PoK में लंबे समय से simmer करते असंतोष और सत्ता के केंद्रीकरण के खिलाफ आवाज़ का प्रतीक है।
विश्लेषकों का यह भी मानना है कि इस पूरे घटनाक्रम ने पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय छवि को गंभीर नुकसान पहुंचाया है। यह स्पष्ट हो गया है कि पाकिस्तान की कथित “कश्मीर नीति” न केवल अव्यवहारिक है, बल्कि उसके अपने कब्ज़े वाले क्षेत्र में भी असंतोष और विद्रोह को जन्म दे रही है।
निष्कर्ष:-
PoK में हुए पांच दिन के इस उग्र आंदोलन ने पाकिस्तान सरकार की नीतियों की नींव हिला दी है। “शांति की जीत” कहकर सरकार भले ही स्थिति को नियंत्रित दिखाने की कोशिश कर रही हो, लेकिन हकीकत यह है कि यह पाकिस्तान की आंतरिक नीतिगत असफलता का पर्दाफाश है। इस घटना ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया है कि किसी भी क्षेत्र में स्थायी शांति केवल तब संभव है जब जनता को न्याय, पारदर्शिता और समान भागीदारी मिले।
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