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Bihar Voter List : घोटाला! चुनाव आयोग की SIR प्रक्रिया पर उठे गंभीर सवाल, सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा मामला

   05 अक्टूबर 2025:✍🏻 Z S Razzaqi | वरिष्ठ पत्रकार   

पटना: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग द्वारा कराए जा रहे Special Intensive Revision (SIR) पर अब देशभर में राजनीतिक हलचल मच गई है। इस विशेष मतदाता सूची संशोधन अभियान में जिस तरह लाखों नामों को हटाया या जोड़ा गया है, उसने पारदर्शिता, निष्पक्षता और लोकतंत्र की नींव पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

पृष्ठभूमि: मतदाता सूची में बदलाव का विवाद

2025 के चुनावों से पहले चुनाव आयोग ने दावा किया था कि SIR प्रक्रिया के तहत राज्यभर में मतदाता सूची को “सटीक और अद्यतन” बनाया जाएगा। लेकिन विपक्षी दलों और नागरिक संगठनों का कहना है कि यह प्रक्रिया राजनीतिक दबाव और पूर्वनियोजित साज़िशों से प्रभावित थी।


चौंकाने वाली बात यह है कि इस संशोधन के दौरान करीब 65 लाख मतदाताओं के नाम सूची से हटा दिए गए, जबकि नई प्रविष्टियों में भारी संख्या में फर्जी नाम या दोहरी पहचान के मामले सामने आए हैं। सूत्रों के अनुसार, कुछ विश्लेषकों ने इसे “1 करोड़ वोटों के संभावित घोटाले की साजिश” बताया है।


SIR प्रक्रिया में क्या है गड़बड़ी?

1. फर्जी और मृतक नामों की प्रविष्टियाँ

सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में कहा गया है कि बड़ी संख्या में ऐसे लोगों के नामों पर फॉर्म भरे गए हैं जो अब जीवित ही नहीं हैं। कई मामलों में Booth Level Officers (BLOs) ने बिना सत्यापन खुद हस्ताक्षर किए और फॉर्म अपलोड किए।

2. वैध मतदाताओं को हटाना

विपक्षी दलों के अनुसार, कई वैध मतदाता — खासकर दलित, अल्पसंख्यक और प्रवासी समुदाय — सूची से हटा दिए गए। इन हटाए गए नामों का कोई कारण सार्वजनिक नहीं किया गया। चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में स्वीकार किया कि कारणों की पूरी सूची फिलहाल तैयार नहीं है, जो पारदर्शिता की गंभीर कमी को दर्शाता है।

3. “नापता” मतदाता और फर्जी एड्रेस

चुनाव आयोग के आंतरिक दस्तावेज़ों के मुताबिक, करीब 11,000 मतदाता “not traceable” पाए गए। विपक्ष का कहना है कि यह “नापता सूची” दरअसल मनमाने ढंग से बनाए गए मतदाताओं को हटाने का एक औचित्य है।

4. अमान्य दस्तावेज़ों की मांग

SIR प्रक्रिया के दौरान नागरिकों से 11 प्रकार के दस्तावेज़ मांगे गए — जिनमें पासपोर्ट, बिजली बिल या संपत्ति दस्तावेज़ जैसे कठिन प्रमाण शामिल थे। इससे गरीब, ग्रामीण और प्रवासी मतदाताओं के लिए सूची में बने रहना लगभग असंभव हो गया।

5. राजनीतिक लाभ की संभावना

RJD, कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने आरोप लगाया है कि यह पूरा अभियान “Targeted Deletion” था, जो सत्तारूढ़ दल के वोट बैंक को बढ़ाने और विपक्षी आधार को कमजोर करने के लिए रचा गया।


सुप्रीम कोर्ट की सख़्ती और चुनाव आयोग पर सवाल

सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से यह पूछा है कि जिन मतदाताओं को सूची से हटाया गया, उनके नाम, कारण और विधानसभा-वार आँकड़े सार्वजनिक किए जाएँ। कोर्ट ने कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में पारदर्शिता “वोट की पवित्रता” का आधार है।

केंद्र सरकार की ओर से अब तक आयोग ने यह तर्क दिया है कि “यह प्रक्रिया संवैधानिक और आवश्यक थी,” लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील को अपर्याप्त माना है।


राजनीतिक माहौल में तनाव

बिहार में माहौल लगातार गर्म होता जा रहा है। विपक्षी दलों ने SIR प्रक्रिया को “चुनावी साजिश” करार देते हुए चुनाव स्थगन की मांग शुरू कर दी है।

कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष का कहना है —

“यह लोकतंत्र नहीं, बल्कि चुनावी इंजीनियरिंग है। जब तक बिहार की वोटर लिस्ट सही नहीं हो जाती, चुनाव कराना जनादेश का अपमान है।”

इसी तरह RJD नेता तेजस्वी यादव ने भी आरोप लगाया कि यह अभियान “दलितों और अल्पसंख्यकों की मताधिकार समाप्त करने की गहरी साजिश” है।


1 करोड़ वोटों के घोटाले की संभावित साजिश

विश्लेषकों का मानना है कि मतदाता सूची में गड़बड़ियों की गहराई इतनी व्यापक है कि इसका असर सीधे-सीधे विधानसभा परिणामों पर पड़ सकता है। अनुमान है कि करीब 1 करोड़ वोटों की वैधता पर संदेह बना हुआ है — जिनमें से लाखों को जानबूझकर हटाया गया और उतने ही फर्जी नाम जोड़े गए।

यह भी आशंका जताई जा रही है कि कुछ जिलों में राजनीतिक प्रभाव वाले क्षेत्रों में मतदाताओं की संख्या में अचानक वृद्धि हुई, जबकि विपक्षी गढ़ों में भारी कटौती की गई।


लोकतंत्र पर असर और संभावित रास्ता

यदि इन अनियमितताओं को बिना सुधारे चुनाव होते हैं, तो बिहार का चुनाव परिणाम कानूनी चुनौती के दायरे में आ सकता है।
यह सिर्फ एक राज्य का मामला नहीं बल्कि भारत के चुनावी ढांचे की विश्वसनीयता पर सीधा प्रहार होगा।

इसलिए आवश्यक है कि —

  • सभी विपक्षी दल एक संयुक्त मंच बनाकर चुनाव स्थगन की मांग करें।

  • चुनाव आयोग को मतदाता सूची का स्वतंत्र ऑडिट कराना चाहिए।

  • जनता को हटाए गए और जोड़े गए सभी नामों की जानकारी वेबसाइट पर दी जाए।

  • सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एक स्वतंत्र जाँच आयोग गठित किया जाए।


निष्कर्ष: चुनाव स्थगन ही लोकतंत्र की रक्षा का मार्ग

बिहार में मतदाता सूची से जुड़े घोटाले, दस्तावेज़ी साज़िशें और फर्जीवाड़े के आरोप एक गहरी संवैधानिक चिंता बन चुके हैं।
जब तक यह सुनिश्चित नहीं हो जाता कि मतदाता सूची “सही, पारदर्शी और निष्पक्ष” है, तब तक चुनाव कराना लोकतंत्र के साथ अन्याय होगा।

इसलिए यह आवश्यक है कि —

“सभी विपक्षी पार्टियाँ मिलकर बिहार विधानसभा चुनाव को तब तक स्थगित करने की माँग करें, जब तक कि मतदाता सूची में किए गए जोड़-घटाव की पूरी समीक्षा, साजिशों की जाँच और 1 करोड़ संदिग्ध वोटों की सफाई पूरी न हो जाए।”

यह न सिर्फ बिहार के लोकतंत्र की गरिमा का सवाल है, बल्कि पूरे भारत की चुनावी विश्वसनीयता का भी।

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