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UN reimposes sanctions on Iran’s:क्या ईरान-इज़राइल टकराव तय? UN के प्रतिबंधों से बढ़ा खाड़ी में तनाव

 28 सितंबर 2025:✍🏻 Z S Razzaqi | अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार   

नई दिल्ली/तेहरान, 28 सितंबर 2025 — संयुक्त राष्ट्र ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर कड़े प्रतिबंध दोबारा लागू कर दिए हैं। यह कदम यूरोपीय देशों—फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन—द्वारा उठाए गए ‘स्नैपबैक’ मैकेनिज़्म के तहत संभव हुआ, जिसमें 2015 के परमाणु समझौते की शर्तों का हवाला दिया गया।


प्रतिबंधों का दायरा और असर

इन नए प्रतिबंधों के तहत ईरान की विदेशी संपत्तियाँ फ्रीज़ कर दी जाएँगी, हथियारों की खरीद-फरोख्त पर रोक लगेगी और बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम को लेकर दंडात्मक कदम उठाए जाएँगे। यूरोपीय देशों का आरोप है कि ईरान ने अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) की मॉनिटरिंग सीमित कर दी है और उच्च स्तर पर यूरेनियम संवर्धन जारी रखा है।

ईरान का दावा है कि उसका परमाणु कार्यक्रम केवल “शांतिपूर्ण उद्देश्यों” के लिए है, लेकिन पश्चिमी देशों और IAEA का मानना है कि 2003 तक ईरान ने हथियार संबंधी गतिविधियाँ संगठित रूप से चलाई थीं। आज भी उसके पास 60% शुद्धता तक संवर्धित यूरेनियम का भंडार है, जो हथियार बनाने की क्षमता के बेहद करीब है।

आर्थिक संकट गहराया

प्रतिबंधों का सबसे बड़ा असर ईरानी अर्थव्यवस्था पर दिखाई दे रहा है। स्थानीय मुद्रा ‘रियाल’ रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुँच गई है। एक डॉलर की कीमत काले बाज़ार में 11.2 लाख रियाल तक पहुँच गई। इसकी वजह से चावल, मांस और दूध जैसे बुनियादी खाद्य पदार्थों की कीमतें आसमान छू रही हैं।

  • आधिकारिक महँगाई दर 34.5% पर है,
  • खाद्य पदार्थों की कीमतों में 50% से अधिक की बढ़ोतरी दर्ज की गई।

तेहरान की एक महिला सिमा ताघवी ने कहा, “हर दिन चीज़, दूध और मक्खन की नई कीमत देखती हूँ। इन्हें बच्चों से नहीं छीन सकती, जैसे फलों और मांस से समझौता कर लिया।” वहीं युवा पीढ़ी इसे 1980 के दशक के ईरान-इराक युद्ध से भी कठिन दौर मान रही है।

कूटनीतिक मोर्चे पर टकराव

प्रतिबंधों के चलते ईरान ने ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी से अपने राजनयिकों को वापस बुला लिया है। राष्ट्रपति मसूद पेज़ेश्कियान ने अमेरिका द्वारा दिए गए “संवर्धित यूरेनियम छोड़ने” के प्रस्ताव को ठुकरा दिया और इसे “अस्वीकार्य” बताया।

दूसरी ओर, अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने ईरान से “सकारात्मक संवाद” की अपील की। जर्मनी के विदेश मंत्री योहान वेडेफुल ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में कहा, “ईरान को परमाणु हथियार कभी नहीं मिलना चाहिए, और यही वजह है कि ये प्रतिबंध आवश्यक हैं।”

रूस ने इन प्रतिबंधों को मानने से इनकार करते हुए उन्हें “ब्लैकमेल और दबाव की राजनीति” बताया है।

युद्ध का खतरा और मानवीय संकट

मध्य-पूर्व में तनाव और अधिक बढ़ गया है। जून में हुए 12-दिन के युद्ध के दौरान नष्ट हुए मिसाइल ठिकानों को ईरान फिर से बना रहा है। इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने संकेत दिया है कि सैन्य कार्रवाई की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।

ईरान के लोग अब अपनी बचत को सोने में बदल रहे हैं। कई नागरिकों का कहना है कि उनकी जीवन-स्तर पिछले कुछ वर्षों की तुलना में बेहद नीचे आ चुका है।

मानवाधिकार संगठनों के अनुसार, 2025 में अब तक 1,000 से अधिक फाँसियों को अंजाम दिया जा चुका है—जो 1988 के बाद का सबसे बड़ा आँकड़ा है। यह दमनकारी नीतियाँ आर्थिक कठिनाइयों और राजनीतिक असंतोष को और गहरा रही हैं।

भविष्य की अनिश्चितता

संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों की वापसी ने ईरान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फिर से अलग-थलग कर दिया है। एक स्थानीय मनोवैज्ञानिक ने हमशहरी अख़बार से कहा, “यह समाज थका हुआ और निरुत्साहित है—बाहरी अलगाव और भीतर के दमन के बीच फँसा हुआ।”

अब सवाल यह है कि क्या कूटनीति ईरान को इस जटिल मोड़ से निकाल पाएगी, या फिर मध्य-पूर्व एक और बड़े संघर्ष की ओर बढ़ रहा है।

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