29 सितंबर 2025:✍🏻 Z S Razzaqi | वरिष्ठ पत्रकार
नई दिल्ली, 28 सितंबर 2025 – लद्दाख की ताज़ा हिंसक घटनाओं ने देश की राजनीति में हलचल मचा दी है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि “लेह की जनता पर हमला किया जा रहा है, उनकी आवाज़ दबाई जा रही है और लोकतांत्रिक अधिकारों को छीनने की कोशिश की जा रही है।”
उन्होंने सोशल मीडिया मंच X (पूर्व ट्विटर) पर लिखा – “लेह के लोग केवल अपनी आवाज़ और संवैधानिक सुरक्षा की मांग कर रहे थे। लेकिन भाजपा ने चार युवाओं की हत्या की, और प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सोनम वांगचुक को हिरासत में ले लिया। हत्या बंद करो, हिंसा बंद करो, दमन बंद करो। लेह को छठी अनुसूची का अधिकार दो।”
हिंसा की पृष्ठभूमि
लेह में पिछले कुछ दिनों से पूर्ण राज्य का दर्जा और संविधान की छठी अनुसूची के तहत विशेष सुरक्षा की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन चल रहा था।
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इन प्रदर्शनों के दौरान चार प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई।
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प्रसिद्ध पर्यावरणविद् और जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक को गिरफ़्तार कर लिया गया।
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उनके NGO का लाइसेंस भी रद्द कर दिया गया, जिस पर विपक्षी दलों ने कड़ी आपत्ति जताई।
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गृह मंत्रालय ने वांगचुक पर आरोप लगाया कि उनके भाषणों ने लोगों को भड़काया और हिंसा के लिए उकसाया।
राहुल गांधी का हमला
राहुल गांधी ने साफ कहा कि लेह में जनता केवल अपनी आवाज़ बुलंद कर रही थी, लेकिन सरकार ने उन्हें दबाने का रास्ता चुना। उन्होंने भाजपा और RSS पर निशाना साधते हुए कहा कि दोनों संगठन लद्दाख की पहचान, संस्कृति और लोकतांत्रिक अधिकारों को नष्ट करने का काम कर रहे हैं।
राहुल का यह बयान केवल राजनीतिक टिप्पणी नहीं है, बल्कि इसमें गहरी संवैधानिक मांग भी जुड़ी हुई है – छठी अनुसूची का दर्जा।
छठी अनुसूची क्यों ज़रूरी बताई जा रही है?
भारत के संविधान की छठी अनुसूची मुख्यतः उत्तर-पूर्व के आदिवासी बहुल इलाकों के लिए बनाई गई है।
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यह स्थानीय जनता को भूमि, संसाधन और संस्कृति की रक्षा के लिए स्वायत्त अधिकार देती है।
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इसके अंतर्गत स्वायत्त जिला परिषदें बनाई जाती हैं जो स्थानीय कानून, संसाधन और परंपराओं की रक्षा करती हैं।
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लेह के लोगों का कहना है कि अगर उन्हें छठी अनुसूची का संरक्षण मिलेगा, तो बाहरी दखल से उनकी संस्कृति और संसाधन सुरक्षित रहेंगे।
विपक्ष की प्रतिक्रिया
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि लद्दाख में निर्दोषों की मौत की जिम्मेदारी सीधे सरकार पर है। उन्होंने न्यायिक जांच और मृतकों के परिजनों को मुआवज़ा देने की मांग की।
अन्य विपक्षी दलों ने भी इस घटना को लेकर केंद्र पर सवाल उठाए। कई दलों ने कहा कि लद्दाख की जनता ने लोकतांत्रिक तरीके से अपनी मांग रखी थी, लेकिन सरकार ने उन्हें हिंसक दमन से जवाब दिया।
केंद्र सरकार का रुख
गृह मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि हिंसा के पीछे सोनम वांगचुक के भड़काऊ भाषण थे। मंत्रालय का दावा है कि विरोध प्रदर्शन शांतिपूर्ण नहीं रहा बल्कि हिंसा में बदल गया, जिसमें सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचा और सुरक्षा बलों पर हमला किया गया।
इसके बाद वांगचुक को लेह से बाहर राजस्थान की जेल में स्थानांतरित कर दिया गया।
राजनीतिक असर और आगे की राह
यह विवाद अब केवल लद्दाख तक सीमित नहीं रहा, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति का मुद्दा बन चुका है।
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राहुल गांधी और कांग्रेस ने इसे लोकतंत्र और संवैधानिक अधिकारों की लड़ाई बताया है।
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भाजपा का कहना है कि राहुल गांधी केवल राजनीति कर रहे हैं और सरकार कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए कदम उठा रही है।
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लद्दाख की जनता अब और मज़बूती से छठी अनुसूची की मांग उठा रही है।
विश्लेषण
लद्दाख जैसे संवेदनशील क्षेत्र में यह विवाद केवल स्थानीय आंदोलन नहीं, बल्कि भारत की लोकतांत्रिक संरचना और संघीय ढांचे से जुड़ा सवाल है।
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अगर लेह को छठी अनुसूची का दर्जा दिया जाता है तो यह देश के अन्य केंद्र शासित प्रदेशों के लिए भी एक मिसाल बन सकता है।
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वहीं, अगर सरकार इस मांग को नज़रअंदाज़ करती है तो लद्दाख में असंतोष और गहरा सकता है।
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सीमा पर चीन और पाकिस्तान जैसे बाहरी दबावों के बीच यह मुद्दा और भी संवेदनशील हो जाता है।
निष्कर्ष:-
लद्दाख की हालिया घटनाएँ देश की राजनीति, लोकतंत्र और संवैधानिक ढांचे के सामने बड़ी चुनौती बनकर उभरी हैं। राहुल गांधी के आक्रामक बयान ने विपक्ष को एकजुट कर दिया है, जबकि भाजपा सरकार इसे सुरक्षा और कानून-व्यवस्था का मुद्दा बता रही है।
आने वाले समय में यह देखना अहम होगा कि क्या केंद्र सरकार छठी अनुसूची के सवाल पर कोई सकारात्मक कदम उठाती है, या फिर यह विवाद और गहराई तक जाएगा।
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