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ईरान परमाणु कार्यक्रम पर अमेरिका से बातचीत से इंकार: ख़ामेनेई ने कहा ‘यह बातचीत नहीं, थोपना है’

  24 सितंबर 2025:✍🏻 Z S Razzaqi | अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार   

ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई ने एक बार फिर स्पष्ट कर दिया है कि तेहरान अपने परमाणु कार्यक्रम को लेकर अमेरिका से सीधे तौर पर कोई बातचीत नहीं करेगा। संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के मौके पर दिए गए अपने भाषण में ख़ामेनेई ने अमेरिका से संभावित वार्ता को “संपूर्ण बंद रास्ता” और “थोपे गए आदेश” करार दिया।

यूरोप के साथ ईरान की कूटनीतिक कोशिशें

यह बयान ऐसे समय आया जब ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराकची ने जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन (E3 देशों) के प्रतिनिधियों के साथ-साथ यूरोपीय संघ की विदेश नीति प्रमुख काया कालास से मुलाकात की। इन बैठकों का मक़सद उन कड़े प्रतिबंधों को रोकने की कोशिश है, जिन्हें कुछ ही दिनों में फिर से लागू किया जाना तय है।

कालास ने कहा कि ईरान को “वास्तविक कदम” उठाने होंगे ताकि प्रतिबंधों से बचा जा सके। वहीं जर्मनी के विदेश मंत्री जोहान वेडेफुल ने बैठक के बाद निराशा जताते हुए कहा कि बातचीत “विशेष रूप से सफल नहीं रही।”

अमेरिका-ईरान टकराव और ट्रम्प का बयान

संयुक्त राष्ट्र महासभा में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने दोहराया कि ईरान “कभी भी परमाणु हथियार हासिल नहीं कर सकेगा” और उसे “दुनिया का सबसे बड़ा आतंकवाद प्रायोजक” बताया।
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए ख़ामेनेई ने कहा –
“अमेरिका ने पहले ही बातचीत का नतीजा तय कर रखा है। नतीजा है हमारे परमाणु कार्यक्रम का समापन और संवर्धन पर रोक। यह कोई बातचीत नहीं, बल्कि एक तानाशाही आदेश है।”

परमाणु समझौता और बढ़ती खाई

साल 2015 में हुए संयुक्त व्यापक कार्ययोजना (JCPOA) समझौते के तहत ईरान को परमाणु कार्यक्रम पर सीमाएं मानने के बदले आर्थिक प्रतिबंधों से राहत मिली थी। लेकिन 2018 में तत्कालीन राष्ट्रपति ट्रम्प ने अमेरिका को इस समझौते से बाहर निकाल दिया और “अधिकतम दबाव” (Maximum Pressure) नीति के तहत कड़े प्रतिबंध फिर से लागू कर दिए।
राष्ट्रपति जो बाइडेन के शासन में भी इस नीति में बड़े बदलाव नहीं हुए।

यूरोपीय देशों का कहना है कि यदि ईरान अमेरिका से सीधे बातचीत के लिए राज़ी हो, UN के परमाणु निरीक्षकों को अपनी साइट्स पर जाने दे और 400 किलो से अधिक संवर्धित यूरेनियम का हिसाब दे, तो वे प्रतिबंधों की समय-सीमा बढ़ाने पर विचार कर सकते हैं।

ईरान का परमाणु सिद्धांत और तनाव

ईरान बार-बार कहता रहा है कि वह परमाणु हथियार नहीं चाहता और केवल शांतिपूर्ण परमाणु ऊर्जा का अधिकार चाहता है। ख़ामेनेई ने भी अपने संबोधन में यही दोहराया।
लेकिन हालात तब बिगड़े जब इस वर्ष जून में इज़राइल और अमेरिका ने ईरान के कई परमाणु ठिकानों पर हवाई हमले किए। यह हमला उस दिन के अगले ही दिन हुआ, जब UN की परमाणु एजेंसी IAEA ने रिपोर्ट दी थी कि ईरान अंतरराष्ट्रीय परमाणु सुरक्षा मानकों का पालन नहीं कर रहा है।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) का निर्णय

पिछले सप्ताह UNSC ने ईरान पर आर्थिक प्रतिबंधों को स्थायी रूप से हटाने से इनकार कर दिया। तेहरान ने इस निर्णय को “राजनीतिक रूप से पक्षपाती” बताया।
यदि इस सप्ताह कोई समझौता नहीं हुआ तो शनिवार शाम से सभी प्रतिबंध अपने-आप लागू हो जाएंगे। इनमें ईरानी संपत्तियों की विदेश में जब्ती, हथियारों के सौदों पर रोक और मिसाइल कार्यक्रम पर कठोर पाबंदियां शामिल होंगी।

ईरान में कड़ा रुख और परमाणु बम की मांग

प्रतिबंधों की आशंका के बीच ईरान की संसद में कठोर विचारधारा वाले नेताओं ने सरकार से “परमाणु बम बनाने” की दिशा में बढ़ने की मांग की। उनका कहना है कि इज़राइल और पश्चिमी दबाव को रोकने का एकमात्र रास्ता यही है।

IAEA का रुख और उम्मीद की किरण

हालांकि हालात तनावपूर्ण हैं, फिर भी अंतरराष्ट्रीय परमाणु एजेंसी IAEA के प्रमुख राफ़ेल ग्रॉसी ने कहा कि उनके निरीक्षकों की टीम तेहरान जाने को तैयार है। उन्होंने कहा –
“सब कुछ संभव है। अगर राजनीतिक इच्छाशक्ति हो तो रास्ता निकल सकता है।”

निष्कर्ष:-

ईरान और अमेरिका के बीच गहराता टकराव केवल परमाणु कार्यक्रम का मुद्दा नहीं, बल्कि पश्चिम एशिया की राजनीति, इज़राइल की सुरक्षा चिंताओं और वैश्विक शक्ति-संतुलन से जुड़ा है। ख़ामेनेई का अमेरिका से बातचीत को खारिज करना इस संकट को और गहरा कर सकता है। अब दुनिया की निगाहें इस सप्ताह होने वाले कूटनीतिक प्रयासों पर टिकी हैं, जो तय करेंगे कि ईरान पर प्रतिबंध फिर से लागू होंगे या बातचीत से कोई नया रास्ता निकलेगा।

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