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आज़म ख़ान की रिहाई: राजनीति, प्रतिशोध और धर्म आधारित सियासत का एक आईना

 21 सितंबर 2025:✍🏻 Z S Razzaqi | वरिष्ठ पत्रकार   

समाजवादी पार्टी (सपा) के कद्दावर नेता और उत्तर प्रदेश के पूर्व नगर विकास मंत्री आज़म ख़ान लगभग 23 महीने बाद जेल से रिहा हो गए। उन पर बकरी, भैंस चोरी से लेकर ज़मीन हड़पने जैसे अजीबो-ग़रीब मामलों में मुक़दमे दर्ज किए गए थे। आलोचकों का कहना है कि यह मुक़दमे महज़ कानूनी प्रक्रिया नहीं बल्कि राजनीतिक प्रतिशोध और धार्मिक पूर्वाग्रह से प्रेरित थे।


Symbolic Image

जेल से बाहर आने का क्षण

सीतापुर जेल से बाहर निकलते समय आज़म ख़ान की झलक पाने के लिए समर्थकों का भारी जमावड़ा लगा।

  • सुबह 7 बजे रिहाई तय थी, लेकिन जमानती बॉन्ड पूरा न होने के कारण प्रक्रिया दोपहर 12 बजे पूरी हुई।

  • जेल गेट पर उनके दोनों बेटे—अदीब ख़ान और अब्दुल्ला आज़म ख़ान—के साथ बड़ी संख्या में सपा कार्यकर्ता मौजूद थे।

  • मुरादाबाद से सांसद रुचि वीरा भी इस मौके पर मौजूद रहीं।

आज़म ख़ान कार की फ्रंट सीट पर बैठे नज़र आए, आंखों पर काला चश्मा और चेहरे पर वही पुराना आत्मविश्वास था।


सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम

उनकी रिहाई को लेकर प्रशासन ने एहतियाती कदम उठाए।

  • सीतापुर जेल और आसपास पुलिस फोर्स की भारी तैनाती की गई।

  • ड्रोन से निगरानी की व्यवस्था भी की गई ताकि किसी अप्रिय स्थिति से बचा जा सके।

  • देर रात तक स्थानीय खुफिया इकाई (LIU) उनके घर और करीबियों की गतिविधियों पर नज़र रखती रही।


राजनीतिक हलचल और अटकलें

रिहाई के बाद सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि क्या आज़म ख़ान अब भी समाजवादी पार्टी के साथ बने रहेंगे, या फिर बहुजन समाज पार्टी (बसपा) में शामिल होकर नया राजनीतिक सफ़र शुरू करेंगे।

  • पिछले कुछ वर्षों से उनका सपा नेतृत्व से रिश्ता उतना सहज नहीं रहा।

  • मायावती और बसपा का मुस्लिम वोट बैंक पर फोकस भी इस संभावना को और मज़बूती देता है।


"काला इतिहास" और राजनीति का गिरता स्तर

आज़म ख़ान के समर्थक और राजनीतिक विश्लेषक यह मानते हैं कि जिस तरह उन्हें बकरी और भैंस चोरी जैसे मामूली और अविश्वसनीय मामलों में फंसाकर लम्बे समय तक जेल में रखा गया, वह भारतीय लोकतंत्र के काले अध्याय के तौर पर दर्ज होगा।
यह प्रकरण साफ़ तौर पर दिखाता है कि राजनीतिक प्रतिशोध और धार्मिक नफ़रत किसी भी शासन को कितना नीचे गिरा सकती है।

आज उत्तर प्रदेश की सियासत में यह सवाल गंभीरता से पूछा जा रहा है कि
👉 क्या योगी आदित्यनाथ सरकार ने अपने विरोधियों को दबाने के लिए कानून का इस्तेमाल किया?
👉 क्या यह राजनीति के "निचले स्तर" का उदाहरण नहीं है?


आगे की राह

रिहाई के बाद आज़म ख़ान सीधे रामपुर स्थित अपने घर जाएंगे। समर्थकों का काफ़िला और मीडिया उनके साथ-साथ चल रहा है।
अब नज़रें इस पर टिकी हैं कि वह राजनीतिक तौर पर किस रास्ते का चुनाव करते हैं—

  • सपा में बने रहना, जहां अखिलेश यादव के साथ उनके रिश्ते कई बार उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं।

  • या बसपा का दामन थामना, जो उन्हें मुस्लिम राजनीति का नया मंच दे सकता है।


निष्कर्ष:-

आज़म ख़ान की रिहाई सिर्फ़ एक नेता के जेल से बाहर आने की घटना नहीं है, बल्कि यह भारतीय राजनीति की उस तल्ख़ सच्चाई को सामने लाती है, जहां सत्ता विरोधियों को डराने और कमजोर करने के लिए कानूनी हथियारों का इस्तेमाल करती है।
यह मामला आने वाले वर्षों में एक राजनीतिक और न्यायिक मिसाल के रूप में याद किया जाएगा।

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