नई दिल्ली। 10 सितंबर 2025:✍🏻 Z S Razzaqi | वरिष्ठ पत्रकार
1. उपराष्ट्रपति चुनाव में NDA उम्मीदवार CP राधाकृष्णन की ऐतिहासिक विजय
2. सत्ता पक्ष का प्रभाव: जांच एजेंसियों के सहारे विपक्ष की मजबूरी
बीते वर्षों से भाजपा सत्ता में आते ही ED, CBI और अन्य जांच एजेंसियों का प्रभावी उपयोग विपक्ष के नेताओं पर दबाव बनाने के लिए करती रही है। ऐसे में उपराष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी सांसदों की भी मजबूरी स्पष्ट हो गई। विपक्ष ने तो दावा किया कि उसके सभी सांसद एकजुट होकर सुदर्शन रेड्डी को समर्थन देंगे, लेकिन नतीजे ने पूरी रणनीति को बेनकाब कर दिया।
केंद्रीय मंत्री किरन रिजिजू ने भी कहा कि कई विपक्षी सांसदों ने अपनी अंतरात्मा की आवाज़ से एनडीए उम्मीदवार को वोट दिया। बीजेपी सांसद संजय जायसवाल ने यह तक दावा किया कि लगभग 40 विपक्षी सांसदों ने क्रॉस-वोटिंग के माध्यम से सीपी राधाकृष्णन का समर्थन किया।
3. क्रॉस-वोटिंग का सनसनीखेज खुलासा
वोटिंग समाप्त होते ही कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने दावा किया कि विपक्ष के सभी 315 सांसद मतदान के लिए उपस्थित थे, लेकिन सुदर्शन रेड्डी को सिर्फ़ 300 वोट ही मिले।
यह स्पष्ट संकेत था कि कम से कम 15 विपक्षी सांसदों ने अवैध वोट डाला या राधाकृष्णन के पक्ष में मतदान किया।
इस रणनीतिक चाल ने विपक्ष के आत्मविश्वास को हिला दिया और यह दर्शाया कि सत्ता पक्ष किस तरह अपनी ताकत से विपक्ष को कमजोर करता है।
4. राजनीतिक रणनीति: तमिलनाडु का प्रोजेक्ट और OBC समीकरण
सीपी राधाकृष्णन तमिलनाडु के दो बार सांसद रह चुके अनुभवी नेता हैं और उनका RSS से गहरा संबंध रहा है।
विश्लेषकों के अनुसार उनकी नियुक्ति BJP के लिए एक रणनीतिक 'पाठ्यक्रम सुधार' के रूप में देखी जा रही है।
मुख्य रूप से, तमिलनाडु में अगले वर्ष विधानसभा चुनाव (2026) होने हैं, और एक उपराष्ट्रपति का होना AIADMK गठबंधन को मजबूती देता है।
राधाकृष्णन का OBC गॉउंडर जाति से संबंध, AIADMK के साथ गठबंधन को मजबूत करता है। AIADMK प्रमुख ई. पलानीस्वामी भी इसी समुदाय से हैं। इससे यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि यह कदम सिर्फ़ उपराष्ट्रपति पद के लिए नहीं बल्कि एक बड़े जातीय और राजनीतिक समीकरण के तहत उठाया गया था।
5. विपक्ष के लिए बड़ा झटका: एकजुटता की परिभाषा से विमुखता
INDIA ब्लॉक ने जोर देकर कहा कि सभी सांसद सुदर्शन रेड्डी के पक्ष में एकजुट हैं।
लेकिन परिणाम ने स्पष्ट कर दिया कि सत्ता पक्ष की दबंग रणनीति के सामने विपक्ष भी मजबूर था।
राधाकृष्णन को मिले 452 वोटों में से कम से कम 40 विपक्षी सांसदों का समर्थन शामिल बताया जा रहा है।
इस स्थिति ने विपक्ष को गहरे संकट में डाल दिया है और यह दिखा दिया कि भारतीय लोकतंत्र में भी सत्ता पक्ष द्वारा की गई राजनीतिक चालें कितनी प्रभावी होती हैं।
6. राजनीतिक संदेश: सत्ता का विस्तार और जातीय समीकरण का महत्व
आज के भारत में देश के शीर्ष तीन संवैधानिक पद – राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, और प्रधानमंत्री – आदिवासी महिला, OBC दक्षिण भारतीय, और OBC पश्चिम भारतीय के हाथ में हैं।
यह केवल संयोग नहीं, बल्कि जातीय समीकरण का राजनीतिकरण है।
विश्लेषकों का मानना है कि BJP ने यह रणनीति अपनाई ताकि Gounder समुदाय का वोट बैंक मजबूती से अपने पक्ष में किया जा सके।
यह भी ध्यान देने योग्य है कि पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की नाकामी के बाद यह कदम BJP के अंदरूनी रणनीतिक बदलाव की तरह देखा जा रहा है, ताकि पार्टी का छवि नरम, गैर-विवादात्मक और जनसंवादात्मक हो।
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