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बिहार में मतदाता सूची में पुनः नामांकन के लिए 33,000 से अधिक आवेदक

 रिपोर्ट:✍🏻 Z S Razzaqi |वरिष्ठ पत्रकार   

पृष्ठभूमि और प्रक्रिया

  • विशेष व्यापक संशोधन (Special Intensive Revision – SIR)
    चुनाव आयोग ने 24 जून 2025 को बिहार में मतदाता सूची का विशेष व्यापक संशोधन (SIR) आयोजित करने का निर्णय लिया, जिसका उद्देश्य संवैधानिक रूप से योग्य नागरिकों को मतदाता सूची में शामिल करना और अवैध/निष्कासित नामों को हटाना था 

  • डॉक्यूमेंटेशन की चुनौतियाँ
    इस अभ्यास के तहत केवल 11 विशिष्ट दस्तावेजों को वैध मानते हुए सामान्य पहचान पत्र जैसे — आधार, मतदाता पहचान पत्र (EPIC), राशन कार्ड को मान्यता नहीं दी गई, जिससे दस्तावेज़ उपलब्ध न होने वाले वर्ग—गरीब, प्रवासी, और मार्जिनल समूह—खासकर प्रभावित हो गए 


आवेदन की स्थिति: शामिल और बाहर किए गए

  • पुनः नामांकन के लिए आवेदन
    बिहार के ड्राफ्ट मतदाता सूची में शामिल न किए गए, ऐसे 33,000 से अधिक मतदाताओं ने पुनः नामांकन (reinclusion) के लिए आवेदन किया है

  • नाम हटाने की मांगें

  • वहीं, लगभग 2 लाख (1.97 लाख) लोगों ने केविन नाम हटाने (deletion) की मांग की है—यह संख्या चुनाव आयोग के आगामी संशोधन की समाप्ति तिथि, यानी 1 सितंबर 2025 से सिर्फ दो दिन पहले जारी की गई रिपोर्ट में सामने आई 


सुप्रीम कोर्ट में धार्मिक मुकदमा और निर्देश

  • नाम हटाने वालों की सूची सार्वजनिक करें
    सुप्रीम कोर्ट ने 14 अगस्त 2025 को चुनाव आयोग को निर्देशित किया कि वह 65 लाख से अधिक हटाए गए मतदाताओं की बूथ-स्तरीय और जिला-वार सूची, साथ ही हर एक नाम के हटने का कारण सार्वजनिक करे—वेब और BLO/पंचायत/ब्लॉक ऑफिस में प्रदर्शित करने की व्यवस्था करने को कहा गया 

  • ऑनलाइन आवेदन और पहचान दस्तावेज़ की वैधता

  • कोर्ट ने 22 अगस्त 2025 को यह निर्देश भी दिया कि जो लोग ड्राफ्ट सूची से बाहर रह गए हैं, वे या तो ऑनलाइन या ऑफलाइन आधार/EPIC/अन्य सूचीबद्ध दस्तावेजों के साथ पुनः आवेदन कर सकते हैं। साथ ही, पहचान सुनिश्चित करने में राजनीतिक दलों के बूथ-स्तरीय प्रतिनिधियों (BLAs) की सहायता कराने को कहा गया


निष्कर्ष और नज़ीर
यह पूरा संशोधन अभियान 2003 के बाद पहला विशेष व्यापक संशोधन (SIR) है, जिसका लक्ष्य वोटर सूची में "शुद्धता" सुनिश्चित करना था
हालांकि, दस्तावेज़ीरण की कठोरता और अपेक्षित पहचान पत्रों की सूची ने मतदाता भागीदारी में असंतुलन पैदा किया, खासकर प्रवासी, अल्प-साक्षर और वंचित वर्गों में
चुनाव आयोग ने इस प्रक्रिया की वैधता और पारदर्शिता का दावा किया है, वहीं विपक्ष और नागरिक समूह इसे "च्छंटनी अभियान" और संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन मान रहे हैंसुप्रीम कोर्ट के कदम ने आम मतदाताओं को संरक्षण का एक मार्ग प्रदान किया और प्रक्रिया को अधिक खुला और वैध बनाया।

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