25 अगस्त 2025 | रिपोर्ट:✍🏻 Z S Razzaqi | अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार
जे.डी. वेंस का बयान: "रूस की आय रोकने के लिए भारत पर भी दबाव"
अमेरिकी उपराष्ट्रपति जे.डी. वेंस ने NBC News के कार्यक्रम Meet the Press में इस फैसले का बचाव करते हुए कहा कि राष्ट्रपति ट्रंप ने रूस की तेल आधारित अर्थव्यवस्था को कमजोर करने और यूक्रेन युद्ध को रोकने के लिए "आक्रामक आर्थिक leverage" का इस्तेमाल किया है।
“रूस को अमीर बनने से रोकना हमारी प्राथमिकता है। इसके लिए हमने भारत जैसे देशों पर secondary tariffs लगाए हैं, ताकि रूस अपनी तेल अर्थव्यवस्था से ज्यादा लाभ न उठा सके।”
– जे.डी. वेंस, अमेरिकी उपराष्ट्रपति
वेंस ने यह भी दावा किया कि ट्रंप प्रशासन ने कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर यह स्पष्ट कर दिया है कि यदि रूस यूक्रेन में बमबारी बंद करता है और युद्धविराम पर सहमति देता है, तो उसे वैश्विक अर्थव्यवस्था में फिर से शामिल किया जा सकता है।
भारत की कड़ी प्रतिक्रिया: "अन्यायपूर्ण और अनुचित"
भारत ने अमेरिकी फैसले पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने मॉस्को यात्रा के दौरान कहा कि अमेरिका का यह कदम पूरी तरह "अन्यायपूर्ण और अनुचित" है।
“दुनिया की ऊर्जा स्थिरता बनाए रखने के लिए खुद अमेरिका ने हमें रूस से तेल खरीदने की सलाह दी थी। अब जब हम राष्ट्रीय हित में वही कर रहे हैं, तो उस पर हमें दंडित करना दोहरे मानदंड है। यदि अमेरिका या यूरोप को समस्या है, तो हमारे उत्पाद न खरीदें। किसी ने उन्हें मजबूर नहीं किया है।”
– डॉ. एस. जयशंकर, भारत के विदेश मंत्री
दोहरे मानदंड पर उठे सवाल
भारत ने साफ तौर पर इशारा किया है कि अमेरिका का रवैया दोहरे मानदंड को दर्शाता है।
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चीन, जो रूस का सबसे बड़ा तेल आयातक है, उस पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया।
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यूरोपीय देश, जो बड़ी मात्रा में रूसी LNG खरीद रहे हैं, उन पर भी कोई कार्रवाई नहीं की गई।
भारत का तर्क है कि उसकी ऊर्जा खरीद पूरी तरह राष्ट्रीय हित और बाज़ार की ज़रूरतों के अनुसार होती है, और इसमें किसी तीसरे देश को हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है।
अमेरिका की रणनीति और रूस पर दबाव
ट्रंप प्रशासन का मानना है कि रूस को वैश्विक अर्थव्यवस्था से अलग-थलग करना ही उसे कमजोर करने का सबसे प्रभावी तरीका है। जे.डी. वेंस ने दावा किया कि हाल ही में अलास्का में ट्रंप और पुतिन की मुलाकात के बाद कुछ सकारात्मक संकेत मिले हैं, लेकिन यदि रूस युद्ध जारी रखता है तो उसे और अधिक अलगाव का सामना करना होगा।
“रूस को साफ संदेश दिया गया है – यदि वे हिंसा रोकते हैं तो उन्हें वैश्विक अर्थव्यवस्था में वापस आमंत्रित किया जा सकता है। लेकिन अगर वे युद्ध जारी रखते हैं, तो उन्हें और अलग-थलग रहना होगा।”
– जे.डी. वेंस
भारत-रूस साझेदारी पर असर?
भारत और रूस के बीच दशकों पुराने गहरे संबंध हैं। हाल ही में मॉस्को यात्रा के दौरान दोनों देशों ने ऊर्जा सहयोग और व्यापार बढ़ाने पर सहमति जताई। विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिकी दबाव के बावजूद भारत-रूस रिश्तों पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा।
राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन इसी वर्ष भारत की यात्रा पर आने वाले हैं, और संभावना है कि दोनों देशों के बीच तेल और गैस क्षेत्र में दीर्घकालिक समझौते हो सकते हैं।
वैश्विक ऊर्जा राजनीति पर असर
इस पूरे घटनाक्रम ने वैश्विक ऊर्जा राजनीति को और जटिल बना दिया है।
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अमेरिका रूस की तेल बिक्री रोकना चाहता है।
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भारत अपने ऊर्जा सुरक्षा और राष्ट्रीय हित से समझौता करने को तैयार नहीं है।
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यूरोप और चीन की चुप्पी ने अमेरिकी नीति की प्रभावशीलता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
निष्कर्ष:-
अमेरिका का यह फैसला भारत और अमेरिका के रिश्तों को नई परीक्षा में डाल रहा है। भारत जहां अपनी ऊर्जा स्वतंत्रता और राष्ट्रीय हित की रक्षा पर अडिग है, वहीं अमेरिका रूस को कमजोर करने के लिए भारत पर सीधा दबाव बना रहा है। आने वाले महीनों में यह संघर्ष न केवल भारत-अमेरिका संबंधों की दिशा तय करेगा, बल्कि वैश्विक ऊर्जा बाज़ार और भू-राजनीतिक समीकरणों पर भी गहरा असर डालेगा।
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