25 अगस्त 2025 | रिपोर्ट:✍🏻 Z S Razzaqi | वरिष्ठ पत्रकार
नई दिल्ली, 25 अगस्त 2025 — दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी (AAP) के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने सोमवार को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह पर तीखा हमला बोला। यह विवाद उस वक्त और गहराया जब अमित शाह ने हाल ही में एक इंटरव्यू में 130वें संवैधानिक संशोधन विधेयक का बचाव किया, जिसके तहत उन विधायकों को अयोग्य ठहराने का प्रावधान है जिन्हें पाँच साल या उससे अधिक की सज़ा वाले मामलों में 30 दिन से अधिक जेल में रहना पड़े।
जहाँ शाह ने इसे “संवैधानिक नैतिकता” और “लोक विश्वास” बनाए रखने की दिशा में अहम कदम बताया, वहीं केजरीवाल ने सवाल उठाया कि यदि राजनीतिक दल अपराधियों को पार्टी में शामिल करके उन्हें मंत्री, उप-मुख्यमंत्री या मुख्यमंत्री जैसे पदों से नवाज़ते हैं, तो क्या यह भी उतना ही बड़ा अपराध नहीं है?
शाह का तर्क: “जेल से सरकार चलाना अस्वीकार्य”
अमित शाह ने ANI को दिए इंटरव्यू में कहा कि यह देश के लिए उचित नहीं कि मुख्यमंत्री, मंत्री या प्रधानमंत्री जेल से सरकार चलाएँ, जबकि उन पर गंभीर आरोप हों।
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा—
“संविधान निर्माताओं ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी कि कोई मुख्यमंत्री जेल से सरकार चलाएगा। यह लोकतांत्रिक मूल्यों पर गहरी चोट है।”
शाह के मुताबिक, केजरीवाल ने दिल्ली शराब नीति घोटाले में जेल जाने के बावजूद इस्तीफ़ा नहीं दिया और “नैतिकता के विपरीत” जेल से ही मुख्यमंत्री पद पर बने रहे।
केजरीवाल का पलटवार: “160 दिन की जेल सरकार बेहतर थी”
शाह के बयानों पर प्रतिक्रिया देते हुए केजरीवाल ने कहा:
“जब मुझे झूठे मामलों में फँसाकर 160 दिन जेल में रखा गया, तब भी दिल्ली की सरकार ठीक से चल रही थी। उस दौरान बिजली-पानी उपलब्ध थे, अस्पतालों और मोहल्ला क्लीनिकों में मुफ़्त दवाएँ और जाँच होती थीं, स्कूलों पर प्राइवेट मैनेजमेंट का दबाव नहीं था और बारिश के बाद शहर पंगु नहीं बनता था।”
उन्होंने तीखा सवाल दागा—
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“अगर कोई नेता अपराधियों को पार्टी में शामिल करता है और उनके मामलों को साफ़ कराने में मदद करता है, तो क्या उस नेता को भी सज़ा नहीं मिलनी चाहिए?”
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“अगर कोई मंत्री झूठा केस बनाकर किसी को जेल भेजता है और बाद में वह निर्दोष साबित होता है, तो उस मंत्री को कितनी सज़ा होनी चाहिए?”
बीजेपी का पलटवार: “वर्क फ्रॉम जेल असंभव”
भाजपा प्रवक्ता शहज़ाद पूनावाला ने केजरीवाल के बयान पर कटाक्ष किया। उन्होंने कहा:
“कोविड के दौरान लोग वर्क फ्रॉम होम करते थे, लेकिन यह पहली बार है कि कोई वर्क फ्रॉम जेल को जायज़ ठहरा रहा है। क्या मुख्यमंत्री जेल के अंदर से कैबिनेट मीटिंग करेंगे? जनता से मुलाकात कहाँ होगी—जेल की चारदीवारी में? यह न नैतिक रूप से सही है, न ही व्यावहारिक।”
130वां संशोधन बिल: क्या है प्रस्ताव?
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30 दिन से अधिक जेल में रहने वाले सांसद या विधायक अयोग्य घोषित होंगे।
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यह प्रावधान उन मामलों पर लागू होगा जिनमें पाँच साल या उससे अधिक की सज़ा हो सकती है।
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बिल को संसद की संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को भेजा गया है।
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समिति की रिपोर्ट के बाद इसे संसद में वोटिंग के लिए रखा जाएगा।
अमित शाह ने विश्वास जताया कि यह बिल पास होगा और विपक्षी दलों से भी कई सदस्य “संवैधानिक नैतिकता” का साथ देंगे।
उन्होंने कहा—
“प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद इस प्रावधान को अपने ऊपर लागू करने का साहस दिखाया है। यदि भविष्य में प्रधानमंत्री जेल जाते हैं, तो उन्हें पद छोड़ना होगा। यह ऐतिहासिक कदम है जो पहले कभी नहीं हुआ।”
राजनीतिक पृष्ठभूमि और असर
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दिल्ली राजनीति पर सीधा प्रभाव — यह बिल सीधे तौर पर अरविंद केजरीवाल जैसे नेताओं को प्रभावित कर सकता है, जिन्होंने जेल से सरकार चलाई।
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विपक्ष बनाम सत्ता — विपक्ष इसे “राजनीतिक प्रतिशोध” कह रहा है, जबकि बीजेपी इसे “संवैधानिक सुधार” बताती है।
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जनता पर असर — दिल्ली की जनता के बीच अब यह बहस तेज़ हो गई है कि क्या “जेल से सरकार चलाना” बेहतर था या “बीजेपी की दिल्ली सरकार”।
निष्कर्ष:-
130वां संवैधानिक संशोधन विधेयक भारतीय राजनीति में “नैतिकता बनाम व्यावहारिकता” की नई बहस लेकर आया है। एक ओर अमित शाह और भाजपा इसे लोकतंत्र की शुचिता का अनिवार्य कदम बता रहे हैं, वहीं अरविंद केजरीवाल इस पर सवाल उठाकर भ्रष्ट और आपराधिक नेताओं को संरक्षण देने की प्रवृत्ति को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं।
यह बिल पास होता है या नहीं, यह तो आने वाले समय में पता चलेगा, लेकिन इतना तय है कि इससे भारतीय राजनीति में “जेल, नैतिकता और सत्ता” पर नई बहस ज़रूर छिड़ गई है।
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