रिपोर्ट:✍🏻 Z S Razzaqi | अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार
नई दिल्ली, 26 अगस्त 2025 – अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर भारत-पाक संघर्ष पर अपने विवादित बयान से हलचल मचा दी है। ट्रंप ने सोमवार को दावा किया कि मई में भारत और पाकिस्तान के बीच सैन्य टकराव के दौरान सात लड़ाकू विमान मार गिराए गए थे, जबकि इससे पहले उन्होंने पाँच विमानों का ज़िक्र किया था।
ट्रंप ने व्हाइट हाउस में एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर करते हुए कहा कि उन्होंने ही इस युद्ध को रोककर “एक संभावित परमाणु युद्ध को टाल दिया।” उनकी आक्रामक भाषा और बदली हुई संख्या ने भारत की मोदी सरकार की विदेश नीति और कूटनीति पर नए सवाल खड़े कर दिए हैं।
ट्रंप का दावा: "24 घंटे में युद्ध रोका, वरना व्यापार खत्म"
डोनाल्ड ट्रंप ने अपने बयान में कहा –
“भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध अगले स्तर पर जा रहा था। वे पहले ही सात जेट गिरा चुके थे और हालात बेकाबू थे। मैंने दोनों देशों को 24 घंटे का समय दिया कि अगर वे युद्ध नहीं रोकते, तो अमेरिका उनके साथ कोई व्यापार नहीं करेगा। उसके बाद उन्होंने कहा – अब कोई युद्ध नहीं है। मैंने कई बार ऐसा किया है – व्यापार और दबाव का इस्तेमाल कर।”
ट्रंप के इस बयान में दो अहम बिंदु हैं –
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वह खुद को भारत-पाक संघर्ष का "मध्यस्थ" बताकर अपनी राजनीतिक ताकत दिखाना चाहते हैं।
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भारत सरकार की विदेश नीति पर यह सवाल उठता है कि क्या वास्तव में एक अमेरिकी राष्ट्रपति के दबाव पर ही युद्धविराम हुआ?
एयर चीफ़ मार्शल का आधिकारिक बयान बनाम ट्रंप की ज़ुबानी जंग
भारतीय वायुसेना प्रमुख, एयर चीफ़ मार्शल अमर प्रीत सिंह पहले ही साफ कर चुके हैं कि भारत ने ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान के पाँच लड़ाकू विमान गिराए थे। यह कार्रवाई S-400 एयर डिफेंस सिस्टम से की गई थी, जिसे इतिहास की सबसे बड़ी Surface-to-Air Kill माना गया।
इसके अलावा, पाकिस्तान का एक Airborne Early Warning and Control (AEW&C) विमान भी नष्ट किया गया था। यानी भारत का आधिकारिक बयान पाँच लड़ाकू विमान और एक निगरानी विमान के गिराए जाने का है, जबकि ट्रंप बार-बार संख्या बदलते रहे—पहले पाँच, अब सात।
मोदी सरकार की “मित्रता” पर उठते सवाल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर डोनाल्ड ट्रंप को अपना “सच्चा मित्र” बताते रहे हैं। “Howdy Modi” से लेकर “Namaste Trump” तक, दोनों नेताओं ने मंच साझा कर वैश्विक राजनीति में अपनी करीबी दिखाने की कोशिश की थी।
लेकिन अब जब ट्रंप खुलेआम यह दावा कर रहे हैं कि भारत-पाक युद्ध उनके दबाव पर रुका और भारत ने उनके अल्टीमेटम के आगे झुककर संघर्षविराम किया, तब सवाल यह उठता है कि मोदी सरकार इस “दोस्ती” से क्या हासिल कर पाई?
क्या यह भारत की कूटनीति की कमजोरी नहीं कि दुनिया के सामने अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति बार-बार यह बयान दें कि उन्होंने भारत को परमाणु युद्ध से बचाया और मोदी सरकार चुप्पी साधे रहे?
भारत का आधिकारिक रुख
नई दिल्ली ने बार-बार स्पष्ट किया है कि युद्धविराम द्विपक्षीय स्तर पर हुआ और इसमें किसी तीसरे देश की भूमिका नहीं थी। रक्षा मंत्रालय के अनुसार, 10 मई को पाकिस्तान के DGMO ने भारतीय DGMO को फोन कर संघर्षविराम का अनुरोध किया था, जिसके बाद शांति बहाल हुई।
भारत ने यह भी कहा है कि अमेरिका या किसी अन्य देश का इसमें कोई योगदान नहीं था। लेकिन ट्रंप के आक्रामक बयानों के बाद इस आधिकारिक लाइन पर भी सवाल उठने लगे हैं।
संघर्ष की पृष्ठभूमि
यह संघर्ष तब शुरू हुआ जब 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम आतंकी हमले में 26 निर्दोष नागरिकों की हत्या कर दी गई थी। इसके बाद भारत ने ऑपरेशन सिंदूर लॉन्च कर पाकिस्तान और PoK स्थित आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया। इस कार्रवाई में भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के लड़ाकू विमानों और निगरानी विमान को ध्वस्त कर दिया।
विश्लेषण: ट्रंप की राजनीति, मोदी की असहज चुप्पी
डोनाल्ड ट्रंप अपने चुनावी भाषणों और बयानों में अक्सर घटनाओं को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करते हैं। सात जेट गिराने का उनका नया दावा उसी शैली का हिस्सा माना जा रहा है। लेकिन इसके साथ ही यह सवाल भी ज़रूरी है कि –
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भारत की विदेश नीति इतनी कमज़ोर क्यों दिख रही है कि अमेरिकी नेता खुलेआम यह कहते रहें कि भारत उनके दबाव में झुका?
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मोदी जी, जो ट्रंप को “अपना दोस्त” बताते आए हैं, इस “दोस्त” की बयानबाज़ी पर खामोश क्यों हैं?
यह पूरा प्रकरण बताता है कि भले ही भारतीय सेना ने युद्ध के मैदान में पाकिस्तान को करारा जवाब दिया हो, लेकिन कूटनीतिक मोर्चे पर मोदी सरकार की छवि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सवालों के घेरे में है।
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