रिपोर्टिंग: कविता शर्मा | पत्रकार
रूस से कच्चे तेल की खरीद पर अमेरिका की नाराज़गी, रिलायंस पर सीधा दबाव
नई दिल्ली, 21 अगस्त 2025: अमेरिका और भारत के बीच जारी व्यापारिक तनाव ने अब एक नया मोड़ ले लिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ट्रेड रणनीति का निशाना इस बार सीधे भारत के सबसे बड़े कारोबारी घरानों पर है। इनमें सबसे आगे हैं रिलायंस इंडस्ट्रीज़ के चेयरमैन और देश के सबसे अमीर उद्योगपति मुकेश अंबानी, जो अब अमेरिका की "ट्रेड फ्यूरी" के बीच ‘कोलैटरल डैमेज’ बन गए हैं।
✦ पृष्ठभूमि: रूस से कच्चे तेल की खरीद पर विवाद
यूक्रेन युद्ध के बाद रूस पर पश्चिमी देशों ने सख़्त आर्थिक प्रतिबंध लगाए। लेकिन भारत ने सस्ती दरों पर रूसी कच्चे तेल की खरीद बढ़ा दी।
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2022 से पहले भारत रूसी तेल का बहुत कम आयात करता था।
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2025 में यह हिस्सा बढ़कर 37% तक पहुँच गया।
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सिर्फ रिलायंस इंडस्ट्रीज़ ने साल के पहले छह महीनों में लगभग 141.5 मिलियन बैरल तेल रूस से आयात किया।
रिलायंस का यह कदम कंपनी के लिए आर्थिक रूप से बेहद फ़ायदेमंद साबित हुआ। विशेषज्ञों के मुताबिक, सिर्फ इस सौदे से कंपनी ने करीब 571 मिलियन डॉलर की बचत की।
✦ ट्रंप प्रशासन की नाराज़गी
अमेरिकी अधिकारियों — राष्ट्रपति ट्रंप के व्यापार सलाहकार पीटर नवारो और अमेरिकी ट्रेज़री सेक्रेटरी स्कॉट बेसेंट — ने हाल के दिनों में भारत के बड़े ऊर्जा कारोबारियों को खुलकर निशाना बनाया।
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आरोप: ये कंपनियाँ "वार प्रॉफिटियरिंग" (युद्ध से फ़ायदा उठाने) में लगी हैं।
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बेसेंट ने रिलायंस पर 16 बिलियन डॉलर की अतिरिक्त कमाई का आरोप लगाया।
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साथ ही भारत पर दोगुना टैरिफ (50%) लगाने की घोषणा भी की।
हालाँकि, यह स्पष्ट नहीं है कि बेसेंट का आँकड़ा कितना सटीक है। फिर भी, इस बयान ने रिलायंस और अंबानी को सीधे वैश्विक विवाद के केंद्र में ला दिया।
✦ भारतीय रुख और संभावित असर
भारत सरकार ने अब तक इस मामले पर कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है। लेकिन संकेत यही हैं कि भारत अमेरिकी दबाव के आगे झुकने को तैयार नहीं है।
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भारतीय विशेषज्ञों का मानना है कि यह पूरी तरह से भू-राजनीतिक शक्ति प्रदर्शन है।
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रिलायंस के लिए यह अस्थायी झटका हो सकता है क्योंकि कंपनी अपनी खरीद का संतुलन पश्चिम अफ्रीका और खाड़ी देशों से भी बनाए रख रही है।
रिलायंस के शेयर बाज़ार पर इस विवाद का खास असर नहीं पड़ा है। नवारो और बेसेंट की टिप्पणियों के बाद भी इसका स्टॉक ऊँचाई पर ट्रेड कर रहा है।
✦ अंबानी, मोदी और अमेरिका: त्रिकोणीय समीकरण
मुकेश अंबानी केवल एक उद्योगपति नहीं, बल्कि भारत की आर्थिक नीतियों का अहम स्तंभ भी हैं।
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उन्होंने अपने पिता धीरूभाई अंबानी की विरासत को तेल, गैस, टेलीकॉम और रिटेल साम्राज्य में बदला।
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अंबानी का साम्राज्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राष्ट्र-निर्माण प्राथमिकताओं से मेल खाता है।
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अमेरिकी दबाव से रिलायंस के साथ-साथ भारत की खुदरा और ऊर्जा नीति भी प्रभावित हो सकती है।
दिलचस्प यह है कि जनवरी 2025 में अंबानी और उनकी पत्नी वॉशिंगटन में ट्रंप के प्री-इनॉगरेशन डिनर में शामिल हुए थे। ट्रंप की बेटी इवांका और दामाद जारेड कुशनर भी अंबानी परिवार की शादियों में नज़र आ चुके हैं। इसके बावजूद, आज वही ट्रंप उनके व्यापार को सबसे बड़े खतरे में डाल रहे हैं।
✦ अडानी भी अमेरिकी राडार पर
रिलायंस अकेला निशाना नहीं है। ट्रंप प्रशासन की नज़र गौतम अडानी पर भी है। नवंबर 2024 में अमेरिकी डिपार्टमेंट ऑफ जस्टिस ने अडानी ग्रुप पर रिश्वतखोरी की जाँच शुरू की थी। इसका असर मोदी सरकार की ऊर्जा और इन्फ्रास्ट्रक्चर नीतियों पर पड़ सकता है।
✦ वैश्विक अर्थव्यवस्था और भारत की चुनौती
भारत ने पिछले वर्ष अमेरिका को लगभग 87 बिलियन डॉलर का निर्यात किया। अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। ऐसे में ट्रंप की टैरिफ पॉलिसी भारत की अर्थव्यवस्था पर गहरा असर डाल सकती है।
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यदि रिलायंस या अन्य भारतीय कंपनियों पर प्रतिबंध या वित्तीय बाज़ार से कटऑफ़ का खतरा आता है, तो यह भारत के लिए बड़ा झटका होगा।
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लेकिन रूस से सस्ता तेल खरीदने के कारण भारत ने केवल 2024-25 में ही 3.8 बिलियन डॉलर की बचत की है।
✦ विशेषज्ञों की राय
वैश्विक ऊर्जा विश्लेषक वंदना हरी के मुताबिक:
“ट्रंप प्रशासन ने इसे व्यक्तिगत बना दिया है। बेसेंट और नवारो की टिप्पणियों ने भारत और अंबानी दोनों को सीधे अमेरिकी निशाने पर ला दिया है। यह केवल व्यापारिक नहीं बल्कि रणनीतिक-राजनीतिक दबाव की रणनीति है।”
