रिपोर्ट:✍🏻 Z S Razzaqi | वरिष्ठ पत्रकार
नई दिल्ली, 22 अगस्त 2025 — संसद का मानसून सत्र गुरुवार को पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार सिन-डाई स्थगित कर दिया गया। लेकिन जिस तरह यह सत्र शुरू हुआ था—लगातार हंगामे और स्थगन के साथ—उसी कड़वे माहौल में इसका समापन भी हुआ। इस पूरे महीने भर चले सत्र ने सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच गहरी खाई को और चौड़ा कर दिया है।
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विपक्ष का विरोध और सत्ता का पलटवार
सत्र के अंतिम चरण में विपक्षी दलों ने उन विधेयकों को “असंवैधानिक” और “अजीबोगरीब” करार देते हुए कड़ा विरोध किया, जिनमें यह प्रावधान किया गया था कि यदि प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री 30 दिन लगातार न्यायिक हिरासत में रहें, तो उन्हें पद से हटाया जा सकता है—भले ही अदालत ने अभी दोष सिद्ध न किया हो।
विपक्ष ने इन्हें लोकतंत्र और जनादेश पर सीधा प्रहार बताया और लोकसभा में इन विधेयकों की प्रतियां फाड़कर गृह मंत्री अमित शाह की ओर उछाल दीं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने इसे “स्पष्ट रूप से असंवैधानिक” बताते हुए कहा:
“क्या आपने कभी इससे ज्यादा हास्यास्पद कानूनी प्रस्ताव सुना है? बिना आरोप तय हुए, बिना मुकदमा चले और बिना दोष सिद्ध हुए, केवल गिरफ्तारी के आधार पर जनता के फैसले को पलट दिया जाएगा।”
SIR विवाद बना केंद्रबिंदु
बिहार में चल रही स्पेशल इंटेंसिव रिविजन (SIR) प्रक्रिया को लेकर विपक्ष ने सरकार पर चुनावी हेरफेर के आरोप लगाए और संसद की कार्यवाही को बार-बार बाधित किया। विपक्ष की मांग थी कि इस पर विस्तृत बहस कराई जाए, लेकिन सरकार ने इसे टालते हुए कई विधेयक बिना चर्चा के पारित करा लिए। इस सत्र में कुल 12 विधेयक पारित किए गए और 14 नए विधेयक पेश किए गए।
सरकार की रणनीति और विपक्ष की आशंका
आखिरी दिनों में अचानक पेश किए गए ये तीन विवादित संशोधन विधेयक सीधे तौर पर पारित करने के बजाय संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को भेज दिए गए। सत्ता पक्ष का कहना है कि यह कदम “भ्रष्टाचार-विरोधी” है, जबकि विपक्ष को लगता है कि असली मकसद विपक्ष को डराना और SIR विरोध से ध्यान भटकाना है।
हालांकि, इनमें से एक विधेयक संविधान संशोधन से जुड़ा है, जिसे पारित करने के लिए दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत जरूरी है। वर्तमान संख्याबल में यह लक्ष्य एनडीए के लिए लगभग असंभव है—लोकसभा में दो-तिहाई बहुमत के लिए 362 वोट चाहिए जबकि एनडीए के पास महज 293 सदस्य हैं।
परंपरा का बहिष्कार और बढ़ती तल्खी
सत्र के समापन पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला द्वारा आयोजित पारंपरिक चाय बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह सहित एनडीए नेता तो शामिल हुए, लेकिन पूरा विपक्ष अनुपस्थित रहा। इसे सत्ता–विपक्ष के रिश्तों में आई गहरी तल्खी का संकेत माना जा रहा है।
बैठक के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने विपक्ष के नेता राहुल गांधी पर परोक्ष टिप्पणी करते हुए कहा कि “प्रतिभाशाली युवा कांग्रेस सांसदों को बोलने का मौका नहीं दिया गया, क्योंकि एक परिवार असुरक्षित महसूस करता है।”
विपक्षी दलों का आरोप है कि अध्यक्ष बिड़ला लगातार सत्ता पक्ष को खुली छूट देते रहे और विपक्षी मुद्दों को दबाते रहे। वहीं, बिड़ला ने अपने समापन भाषण में विपक्ष पर “सुनियोजित अवरोध” का आरोप लगाते हुए कहा कि “स्लोगनबाजी और पोस्टर लहराना संसदीय मर्यादा का अपमान है।”
निष्कर्ष:-
पूरा मानसून सत्र इस बार लोकतांत्रिक संवाद से अधिक टकराव और अविश्वास का मंच बना। विपक्ष जहां विधेयकों को लोकतंत्र विरोधी बता रहा है, वहीं सरकार इसे भ्रष्टाचार विरोधी कदम साबित करने की कोशिश कर रही है। लेकिन हकीकत यह है कि लगातार हंगामे, अधूरी बहसें और असहमति ने संसद को “जनादेश के प्रतिनिधि मंच” से अधिक “राजनीतिक संघर्ष का अखाड़ा” बना दिया है।
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