रिपोर्ट:✍🏻 Z S Razzaqi | वरिष्ठ पत्रकार
नई दिल्ली, 22 अगस्त 2025 — सुप्रीम कोर्ट में आज बिहार में मतदाता सूची के स्पेशल इंटेंसिव रिविजन (SIR) को लेकर अहम सुनवाई हुई। यह मामला न केवल चुनावी पारदर्शिता और नागरिक अधिकारों से जुड़ा है, बल्कि इसमें यह आशंका भी व्यक्त की गई है कि लाखों मतदाताओं को बिना पर्याप्त सुरक्षा उपायों के सूची से हटा दिया जाएगा।
मामला क्या है?
चुनाव आयोग (ECI) ने 24 जून 2025 को बिहार की मतदाता सूची का विशेष संशोधन कराने का आदेश दिया था। आयोग का कहना है कि पिछले दो दशकों से गहन संशोधन नहीं हुआ था और शहरी पलायन व जनसांख्यिकीय बदलावों के चलते सूची को अपडेट करना जरूरी था।
लेकिन याचिकाकर्ताओं — जिनमें विपक्षी नेता, Association for Democratic Reforms (ADR), People’s Union for Civil Liberties और National Federation for Indian Women जैसे संगठन शामिल हैं — ने आरोप लगाया कि यह प्रक्रिया मनमाने तरीके से नाम हटाने का रास्ता खोलती है। इससे लाखों लोग मतदान के अधिकार से वंचित हो सकते हैं।
दस्तावेज़ों पर विवाद
सबसे बड़ा विवाद इस बात पर है कि कौन-से दस्तावेज़ मतदाता पहचान और पात्रता साबित करने के लिए मान्य होंगे।
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कोर्ट ने पहले सुझाव दिया था कि आधार, राशन कार्ड और EPIC कार्ड स्वीकार किए जाएं।
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लेकिन चुनाव आयोग ने हलफ़नामे में कहा कि आधार और राशन कार्ड मतदान पात्रता का प्रमाण नहीं हो सकते।
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याचिकाकर्ताओं ने इसे “तर्कहीन और अव्यावहारिक” बताया।
65 लाख नाम हटाने का विवाद
ADR ने हाल ही में अदालत में एक अंतरिम आवेदन देकर यह जानकारी मांगी कि बिहार की सूची से 1 अगस्त को 65 लाख नाम हटाए गए। आयोग ने जवाब में कहा कि कानूनन उसे ऐसे नाम हटाने के कारण अलग से बताने की बाध्यता नहीं है। हालांकि उसने यह आश्वासन दिया कि किसी भी नाम को बिना नोटिस और सुनवाई के नहीं हटाया जाएगा।
कोर्ट की कार्यवाही: 22 अगस्त की सुनवाई
सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कई अहम टिप्पणियां कीं:
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राजनीतिक दलों की निष्क्रियता पर नाराज़गी: अदालत ने कहा कि 1.68 लाख बूथ लेवल एजेंट्स (BLAs) नियुक्त किए गए हैं, लेकिन अब तक उन्होंने केवल दो आपत्तियां दाखिल की हैं।
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ऑनलाइन सुविधा पर जोर: अदालत ने स्पष्ट किया कि लोग ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं और केवल आधार कार्ड से भी दावे प्रस्तुत किए जा सकते हैं।
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सभी राजनीतिक दलों को ज़िम्मेदारी सौंपी: सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि सभी 12 मान्यता प्राप्त दल अपने कार्यकर्ताओं को मतदाताओं की मदद करने के निर्देश दें ताकि कोई भी नाम अन्यायपूर्ण तरीके से न हटाया जाए।
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बूथ लेवल अधिकारियों (BLOs) को निर्देश: हर आपत्ति दर्ज होने पर रसीद दी जाए, हालांकि यह अंतिम निर्णय नहीं माना जाएगा।
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पारदर्शिता की मांग: अदालत ने कहा कि 65 लाख हटाए गए नामों की सूची वेबसाइट पर अपलोड की जाए और कारण स्पष्ट किए जाएं।
याचिकाकर्ताओं की चिंताएँ
सीनियर एडवोकेट प्रशांत भूषण और वृंदा ग्रोवर ने दलील दी कि:
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बिहार में बाढ़ और पलायन की वजह से कई मजदूर राज्य से बाहर हैं, वे दावा पेश नहीं कर पाएंगे।
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आधार कार्ड के साथ अतिरिक्त दस्तावेज़ मांगना अनुचित है।
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बड़े पैमाने पर शिकायतें हैं कि फार्म 6 को आधार के साथ भी स्वीकार नहीं किया जा रहा।
चुनाव आयोग की दलील
सीनियर एडवोकेट राकेश द्विवेदी ने आयोग की ओर से कहा कि:
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प्रक्रिया पारदर्शी है और इसे पंचायतों व पुलिस थानों तक सार्वजनिक किया गया है।
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जो भी गलत तरीके से बाहर किया गया है, वह दस्तावेज़ देकर दोबारा नाम जुड़वा सकता है।
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आयोग का उद्देश्य सिर्फ सही और पात्र मतदाताओं को सूची में बनाए रखना है।
लोकतंत्र के लिए बड़ा सवाल
यह मामला सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं है। अगर बिना पर्याप्त सुरक्षा उपायों के लाखों नाम हटाए जाते हैं, तो यह मताधिकार और लोकतांत्रिक अधिकारों पर सीधा प्रहार होगा। अदालत की आज की टिप्पणियाँ स्पष्ट करती हैं कि पारदर्शिता, निष्पक्षता और तकनीकी सुविधा सुनिश्चित किए बिना मतदाता सूची में व्यापक संशोधन लोकतंत्र को कमजोर कर सकता है।
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