✍🏻 Z S Razzaqi | अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार
🔴 "I heard India is no longer buying oil from Russia… If true, that’s a good step": डोनाल्ड ट्रंप
2 अगस्त 2025 को अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर भारत को लेकर एक बड़ा दावा किया। उन्होंने कहा कि "मुझे सुनने में आया है कि भारत अब रूस से तेल नहीं खरीदेगा। अगर ये सच है, तो यह एक अच्छा कदम है।" ट्रंप की यह टिप्पणी ऐसे समय पर आई जब अमेरिका ने भारत पर रूस से तेल और सैन्य उपकरण खरीदने को लेकर आर्थिक प्रतिबंध और 25% आयात शुल्क लगाने की घोषणा की थी।
हालांकि भारत सरकार के विदेश मंत्रालय (MEA) ने तुरंत इस दावे को खारिज करते हुए कहा कि उन्हें ऐसी किसी तेल खरीद में रुकावट की जानकारी नहीं है।
❗ अमेरिकी दबाव और भारतीय प्रतिक्रिया: भारत का आधिकारिक रुख
MEA के सूत्रों ने बताया कि “भारत की ऊर्जा खरीद पूरी तरह से उसके राष्ट्रीय हितों और वैश्विक बाजार की परिस्थितियों पर आधारित है। हमें ऐसी कोई जानकारी नहीं है कि भारतीय तेल कंपनियों ने रूसी तेल खरीद बंद कर दी हो।”
MEA के प्रवक्ता रंधीर जायसवाल ने शुक्रवार को अपने साप्ताहिक ब्रीफिंग में भी यही कहा था कि “हम बाजार में उपलब्धता और वैश्विक स्थिति को देखकर ऊर्जा स्रोतों का चुनाव करते हैं। रूसी तेल खरीद रोकने के बारे में हमारे पास कोई विशेष जानकारी नहीं है।”
📉 क्या वाकई भारतीय कंपनियों ने रूसी तेल खरीदना बंद किया?
रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत की चार प्रमुख सरकारी रिफाइनिंग कंपनियाँ—IOC, HPCL, BPCL और MRPL—पिछले एक सप्ताह से रूसी कच्चे तेल की खरीद नहीं कर रही हैं। वजह? रूसी तेल पर मिलने वाली छूट कम हो गई है और अमेरिका ने खुले तौर पर रूसी तेल खरीद पर चेतावनी दी है।
हालांकि यह एक स्थायी रोक नहीं है, बल्कि स्पॉट मार्केट की बदलती कीमतों और भू-राजनीतिक दबाव का तात्कालिक असर हो सकता है। इन कंपनियों ने अबू धाबी के मुरबान और पश्चिमी अफ्रीका के कच्चे तेल की ओर रुख किया है।
🛢 भारत-रूस तेल व्यापार का परिप्रेक्ष्य
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है और रूस, भारत को समुद्री मार्ग से सबसे अधिक कच्चा तेल आपूर्ति करता है। Reliance Industries और Nayara Energy निजी क्षेत्र की वे कंपनियाँ हैं जो रूस से सबसे अधिक तेल खरीदती हैं, जबकि सरकारी कंपनियाँ देश की कुल रिफाइनिंग क्षमता का 60% नियंत्रित करती हैं।
ट्रंप की 'दबाव नीति' बनाम भारत की ‘चुप्पी की रणनीति’
यह पहला मौका नहीं है जब डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर दबाव डालने के लिए रूस से तेल खरीद को मुद्दा बनाया हो। वह इससे पहले भी 30 से अधिक बार युद्धविराम रुकवाने, रूस पर दबाव बनाने और भारत की ‘मरी हुई इकॉनॉमी’ को लेकर कटाक्ष कर चुके हैं। इसके बावजूद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अब तक ट्रंप की किसी भी टिप्पणी का प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कोई जवाब नहीं दिया है।
यह हैरानी की बात है क्योंकि मोदी जी ट्रंप को “परम मित्र” कह चुके हैं और भारत में उनके लिए “Howdy Modi”, “Namaste Trump” जैसे भव्य इवेंट कर चुके हैं। यहाँ तक कि 2019 में अमेरिका जाकर उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा था — “अबकी बार, ट्रंप सरकार”, जो कि अमेरिकी राजनीतिक परंपरा के विरुद्ध था।
आज जब वही ट्रंप बार-बार भारत को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपमानित कर रहे हैं — चाहे वह आयात कर हो, तेल खरीद हो या अर्थव्यवस्था को बदनाम करने की बात — तब मोदी सरकार की चुप्पी कई सवाल खड़े करती है।
❓ चुप्पी या कूटनीति?
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क्या भारत ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति बनने की संभावना को देखते हुए टकराव से बच रहा है?
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क्या यह "वेट एंड वॉच" नीति है?
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या फिर भारत अमेरिका के साथ अपने सामरिक संबंधों की कीमत पर सार्वजनिक टकराव नहीं चाहता?
🔍 निष्कर्ष
डोनाल्ड ट्रंप का यह दावा कि भारत ने रूस से तेल खरीद बंद कर दी है, अभी तक न तो पुष्टि हुई है और न ही इसका कोई आधिकारिक समर्थन सामने आया है। भारत की ओर से “बाजार आधारित और राष्ट्रीय हित आधारित” नीति की बात दोहराई गई है। लेकिन इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री मोदी की चुप्पी, ट्रंप की बार-बार की गई अपमानजनक टिप्पणियों के बावजूद, एक बड़ा राजनीतिक और कूटनीतिक संकेत भी हो सकता है।
अमेरिका में चुनावी माहौल तेज़ हो रहा है, और ट्रंप की बयानबाज़ियाँ भारत की विदेश नीति के लिए चुनौती बनती जा रही हैं। ऐसे में यह देखना अहम होगा कि भारत अपनी संप्रभुता की रक्षा करते हुए वैश्विक दबावों से कैसे निपटता है।
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