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शेख हसीना भारत में निर्वासन का एक वर्ष पूरा कर चुकी हैं, बांग्लादेश 2026 के चुनाव की तैयारी में

 नई दिल्ली | 5 अगस्त 2025 | रिपोर्ट:✍🏻 Z S Razzaqi | अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार  

बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को भारत में निर्वासित जीवन बिताते हुए एक वर्ष पूरा हो चुका है। 5 अगस्त 2024 को, जब ढाका में उनके सरकारी निवास ‘गणभवन’ के बाहर छात्रों के नेतृत्व में भारी विरोध प्रदर्शन हुआ और पुलिस हालात पर काबू नहीं रख पाई, तब बांग्लादेश सेना प्रमुख जनरल वाकर-उज-जमां ने उन्हें हेलिकॉप्टर से एयरबेस तक पहुँचाया, जहाँ से वे एक सैन्य विमान C-130 हर्क्यूलिस के ज़रिए दिल्ली के समीप हिंडन एयरबेस पहुँचीं। यह यात्रा अस्थायी मानी जा रही थी, लेकिन एक साल बाद भी वे दिल्ली में ही हैं — और उनके स्वदेश लौटने की संभावना क्षीण दिख रही है।



भारत में रहन-सहन: गुप्त लेकिन संरक्षित

भारत सरकार ने शेख हसीना को नई दिल्ली के केंद्र में एक उच्च-सुरक्षा वाला निवास उपलब्ध कराया है। उनके साथ उनकी बेटी साइमा वाज़ेद भी दिल्ली में हैं, जो पूर्व में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र की क्षेत्रीय निदेशक थीं। हाल ही में बांग्लादेश में लंबित अदालती मामलों के चलते उन्हें अनिश्चितकालीन अवकाश पर भेजा गया है।

भारत सरकार, विशेष रूप से विदेश मंत्रालय (MEA), इस विषय में सार्वजनिक टिप्पणी से बच रही है। अक्टूबर 2024 में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने सिर्फ इतना कहा था कि “हसीना जी अल्पकालिक सुरक्षा कारणों से भारत आई थीं और अब भी वैसी ही परिस्थितियों में हैं।”


राजनीतिक गतिविधियाँ: नियंत्रण और हस्तक्षेप

हालांकि शेख हसीना निर्वासन में रहते हुए भी अपनी पार्टी अवामी लीग और दुनिया भर में फैले समर्थकों से लगातार संपर्क में हैं, लेकिन भारत सरकार उनकी सार्वजनिक राजनीतिक गतिविधियों को प्रोत्साहित नहीं कर रही है। 23 जुलाई 2025 को दिल्ली के प्रेस क्लब में पांच अवामी लीग मंत्रियों द्वारा आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को अंतिम समय में रद्द कर दिया गया — ऐसा माना जा रहा है कि भारत के विदेश मंत्रालय के हस्तक्षेप के बाद यह निर्णय लिया गया।

बीते एक वर्ष में शेख हसीना ने अपने समर्थकों के लिए कई ऑडियो संदेश भेजे और एक बार तो उन्होंने ढाका में एक “वर्चुअल रैली” को भी संबोधित किया। लेकिन यह रैली हिंसा में बदल गई, जब वर्तमान सरकार समर्थक छात्र संगठनों ने उनके पैतृक आवास और उनके पिता शेख मुजीबुर रहमान के धानमंडी स्थित संग्रहालय पर हमला कर दिया और उसका अधिकांश हिस्सा जला दिया। उन्होंने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए 5 फरवरी को कहा, “इमारत को गिराया जा सकता है, लेकिन इतिहास को मिटाया नहीं जा सकता।”


भारत-बांग्लादेश संबंधों पर असर

शेख हसीना की मौजूदगी भारत और बांग्लादेश के बीच द्विपक्षीय संबंधों में संवेदनशील मुद्दा बनी हुई है। जब उनके बयानों को लेकर ढाका से एक राजनयिक विरोध (demarche) भारत को सौंपा गया, तो विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया, “पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के विचार उनके निजी हैं, भारत सरकार का उनसे कोई संबंध नहीं है। उनके बयानों को भारत की नीति से जोड़ना द्विपक्षीय संबंधों में सकारात्मकता नहीं लाएगा।”

इसके बावजूद, भारत और बांग्लादेश के बीच यह स्थिति एक “कूटनीतिक असहजता” का कारण बन गई है।


वापसी की संभावना क्षीण

शेख हसीना पर अब बांग्लादेश में भ्रष्टाचार, मानवाधिकार उल्लंघन और यहाँ तक कि युद्ध अपराधों से जुड़े कई आरोप हैं, जिससे उनकी वापसी लगभग असंभव प्रतीत हो रही है। 2026 के मध्य में संभावित आम चुनावों से पहले अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस ने अवामी लीग और उसके छात्र संगठन पर पाबंदी लगा दी है, जिससे चुनावी भागीदारी असंभव हो गई है।

सूत्रों के अनुसार, शेख हसीना ने ब्रिटेन में राजनीतिक शरण के लिए भी आवेदन किया था, जैसा कि अतीत में कई बांग्लादेशी और पाकिस्तानी नेताओं को दिया गया था। लेकिन ब्रिटेन की नव-निर्वाचित लेबर सरकार, जो पहले से ही देश में हो रही नस्लीय हिंसा को लेकर आलोचनाओं में घिरी थी, ने उनका अनुरोध ठुकरा दिया।

इसके बाद भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल हिंडन एयरबेस पहुँचे और उसी रात निर्णय हुआ कि C-130 विमान को वापस ढाका भेजा जाएगा, जबकि शेख हसीना को भारत में रहने का निमंत्रण दिया गया।


इतिहास की पुनरावृत्ति

इस घटनाक्रम ने 1975 की ऐतिहासिक घटना की याद दिला दी, जब इंदिरा गांधी सरकार ने शेख हसीना और उनकी बहन को भारत में शरण दी थी। उस समय उनके पिता, माता और अधिकांश परिवार की निर्मम हत्या कर दी गई थी। वे 1981 में बांग्लादेश लौटीं और अपने पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाते हुए पाँच बार प्रधानमंत्री बनीं (1996, 2009, 2014, 2018 और 2024)।

मगर इस बार उनका लौटना न केवल कठिन प्रतीत होता है, बल्कि संभवतः असंभव भी है। उनकी राजनीतिक विरासत संकट में है, समर्थकों में भय और असमंजस व्याप्त है, और बांग्लादेश में एक नई राजनीतिक व्यवस्था आकार ले रही है — जिसमें उनके लिए शायद ही कोई स्थान बचा हो।


निष्कर्ष:-

शेख हसीना का भारत में निर्वासन केवल एक राजनीतिक शरण नहीं, बल्कि दक्षिण एशिया की राजनीति में अस्थिरता, असहमति और सत्ता हस्तांतरण के जटिल समीकरणों का प्रतीक बन गया है। भारत के लिए यह एक संवेदनशील कूटनीतिक संतुलन है, और बांग्लादेश के लिए – एक अज्ञात भविष्य की ओर बढ़ता हुआ परिवर्तन।

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