रिपोर्ट:✍🏻 Z S Razzaqi | वरिष्ठ पत्रकार
नई दिल्ली, 23 अगस्त 2025 — देश में लोकतंत्र और संविधान पर खतरे को लेकर एक बार फिर बड़ी बहस छिड़ गई है। विपक्षी गठबंधन INDIA ब्लॉक के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस (रिटा.) बी. सुदर्शन रेड्डी ने साफ कहा है कि आज भारत में लोकतंत्र “घाटा” झेल रहा है और संविधान “चुनौती” के घेरे में है। उन्होंने ऐलान किया कि यदि मौका मिला तो वे अपने जीवन का अंतिम पड़ाव भी संविधान की रक्षा और उसकी मूल भावना को बचाने में समर्पित करेंगे।
लोकतंत्र में व्यवधान या विमर्श?
पीटीआई को दिए विशेष साक्षात्कार में जस्टिस रेड्डी ने संसद में बार-बार होने वाले व्यवधानों पर कहा कि यह लोकतंत्र का हिस्सा हैं, क्योंकि जब विपक्ष को बोलने नहीं दिया जाता तो असहमति जताने का यह एक तरीका बन जाता है। लेकिन उन्होंने चेतावनी भी दी कि “व्यवधान को लोकतांत्रिक प्रक्रिया का स्थायी हिस्सा नहीं बनना चाहिए।”
उन्होंने दिवंगत भाजपा नेता अरुण जेटली का हवाला देते हुए कहा कि जेटली स्वयं मानते थे कि व्यवधान भी लोकतांत्रिक असहमति का वैध रूप है। लेकिन इसके साथ ही उन्होंने स्पष्ट किया कि यह लोकतंत्र का स्थायी स्वरूप नहीं होना चाहिए।
"लोकतंत्र में अब है deficit"
पूर्व जज ने एक सख्त टिप्पणी करते हुए कहा,
“पहले हम deficit economy की बात करते थे, लेकिन आज हम deficit democracy का सामना कर रहे हैं। भारत अभी भी संवैधानिक लोकतंत्र है, परंतु यह दबाव और तनाव के दौर से गुजर रहा है।”
उन्होंने कहा कि पहले सत्ता पक्ष और विपक्ष कई राष्ट्रीय मुद्दों पर मिलकर काम करते थे, लेकिन आज वह संवाद पूरी तरह टूट चुका है।
RSS बनाम उदार लोकतंत्र की लड़ाई
रेड्डी ने साफ कहा कि उपराष्ट्रपति का चुनाव किसी व्यक्ति विशेष का मुकाबला नहीं है, बल्कि यह दो विचारधाराओं के बीच का टकराव है।
“यहां एक ओर हैं NDA के उम्मीदवार सी.पी. राधाकृष्णन, जो RSS की विचारधारा से आते हैं, और दूसरी ओर मैं हूं — एक उदारवादी संवैधानिक लोकतंत्रवादी। असली मुकाबला यहीं है।”
अमित शाह पर सीधा पलटवार
गृहमंत्री अमित शाह ने रेड्डी पर माओवादी समर्थक होने का आरोप लगाया था, जिस पर पूर्व जज ने कहा —
“मैंने केवल न्यायपालिका का काम किया। सलवा जुडूम मामले का फ़ैसला मेरा व्यक्तिगत निर्णय नहीं, बल्कि सुप्रीम कोर्ट का निर्णय था। काश गृहमंत्री उस 40 पन्नों के फ़ैसले को पढ़ते, तो शायद ऐसा बयान नहीं देते।”
उन्होंने जोड़ा कि राजनीति में बहस की शालीनता और मर्यादा बनी रहनी चाहिए।
संविधान की मूल आत्मा: समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता
संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों पर उठी बहस को लेकर रेड्डी ने कहा कि ये दोनों शब्द भारतीय संविधान की आत्मा में पहले से मौजूद थे।
“42वें संशोधन के दौरान आपातकाल में इन्हें जोड़ा गया, लेकिन बाद में जनसंघ (भाजपा का पूर्व रूप) ने भी इसे सर्वसम्मति से स्वीकार किया। तो अब अचानक यह बहस क्यों छेड़ी जा रही है?”
जाति-जनगणना पर समर्थन
रेड्डी ने जाति आधारित जनगणना का समर्थन करते हुए कहा कि जब तक हम यह नहीं जानेंगे कि किन वर्गों की संख्या कितनी है और कौन सबसे पिछड़ा है, तब तक उनके उत्थान की सटीक नीतियां नहीं बनाई जा सकतीं।
