✍🏻 Z S Razzaqi | अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा ब्रिक्स देशों को 10 प्रतिशत अतिरिक्त आयात शुल्क लगाने की धमकी दिए जाने के बाद चीन ने सोमवार को दो टूक शब्दों में जवाब देते हुए कहा कि ब्रिक्स गुट किसी टकराव का मंच नहीं है और व्यापार युद्धों में कोई विजेता नहीं होता।
चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने नियमित प्रेस वार्ता में कहा कि चीन का स्पष्ट मानना है कि संरक्षणवादी नीतियां, जैसे आयात शुल्क लगाना, वैश्विक व्यापार को नुकसान पहुंचाती हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि किसी भी देश के लिए टैरिफ को राजनीतिक हथियार बनाना खतरनाक प्रवृत्ति है जो अंततः अंतरराष्ट्रीय संबंधों में अस्थिरता को जन्म देती है।
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ट्रंप की धमकी और BRICS की प्रतिक्रिया
यह विवाद ब्रिक्स 2025 शिखर सम्मेलन के बाद सामने आया है, जो इस बार ब्राजील में आयोजित हुआ था। इस सम्मेलन में ब्रिक्स के 10 सदस्य देशों — ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका, ईरान, मिस्र, इथियोपिया, इंडोनेशिया और संयुक्त अरब अमीरात — ने अमेरिका और इज़राइल द्वारा ईरान के सैन्य और परमाणु ठिकानों पर किए गए हमलों की तीव्र आलोचना करते हुए उन्हें अंतरराष्ट्रीय कानून के खिलाफ बताया।
संयुक्त बयान में इन हमलों को गैरकानूनी कहा गया और अमेरिका का नाम लिए बिना यह चेतावनी दी गई कि इस प्रकार के आक्रामक सैन्य कदम वैश्विक शांति और स्थिरता को गंभीर रूप से खतरे में डाल सकते हैं। इस बयान ने ही ट्रंप को उत्तेजित किया और उन्होंने ब्रिक्स की "अमेरिका विरोधी नीतियों" का हवाला देते हुए उन देशों पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने की चेतावनी दे दी जो इस गुट के साथ खड़े होंगे।
चीन का सधा हुआ लेकिन सख्त रुख
चीनी प्रवक्ता माओ निंग ने स्पष्ट किया कि BRICS किसी सैन्य गठबंधन या रणनीतिक ब्लॉक की तरह नहीं बल्कि एक सहयोगात्मक मंच है, जिसका उद्देश्य वैश्विक दक्षिण की आवाज़ को मजबूती देना है। उन्होंने कहा कि ब्रिक्स की नीतियाँ किसी भी देश के खिलाफ नहीं हैं, बल्कि वे समावेशिता, बहुपक्षीय सहयोग और विकास की सोच पर आधारित हैं।
माओ ने यह भी दोहराया कि टैरिफ और व्यापारिक प्रतिबंधों से कोई सकारात्मक नतीजा नहीं निकलता। “ऐसे हथकंडे न तो समाधान लाते हैं और न ही विश्वास निर्माण करते हैं। इसके बजाय, ये वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को नुकसान पहुंचाते हैं और विकासशील देशों को सबसे अधिक प्रभावित करते हैं।”
वैश्विक मुद्दों पर BRICS की भूमिका
ब्रिक्स 2025 सम्मेलन में केवल ईरान ही नहीं, बल्कि गाज़ा युद्ध, आतंकवाद, सीमा-पार चरमपंथ, और आर्थिक असमानता जैसे मुद्दों पर भी व्यापक चर्चा हुई। समूह ने गाज़ा में हिंसा और एकतरफा सैन्य कार्रवाई की आलोचना करते हुए शांति और संवाद को प्राथमिकता देने का आह्वान किया।
भारत की ओर से, जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए हालिया आतंकी हमले की निंदा की गई। ब्रिक्स ने संयुक्त रूप से आतंकवाद के वित्तपोषण, प्रशिक्षण और सीमा-पार नेटवर्क पर कठोर कार्रवाई की मांग की। इन मुद्दों पर BRICS के साझा दृष्टिकोण ने यह स्पष्ट कर दिया कि यह समूह अब केवल आर्थिक मंच नहीं, बल्कि एक प्रभावशाली कूटनीतिक शक्ति के रूप में भी उभर रहा है।
ट्रंप का टैरिफ अल्टीमेटम: नया संकट?
ट्रंप ने ब्रिक्स घोषणा के तुरंत बाद घोषणा की कि उन्होंने 12 देशों को टैरिफ नोटिस भेजने के लिए दस्तावेज़ तैयार कर लिए हैं। उन्होंने कहा कि ये पत्र सोमवार दोपहर 12 बजे (अमेरिकी ईस्टर्न टाइम) पर जारी कर दिए जाएंगे।
ट्रंप की यह धमकी ऐसे समय पर आई है जब अमेरिका द्वारा घोषित टैरिफ संशोधन की अस्थायी 90 दिनों की मोहलत समाप्त होने वाली है। यह मोहलत अप्रैल में दी गई थी, जब ट्रंप प्रशासन ने सभी व्यापारिक साझेदारों पर आयात शुल्क बढ़ाने की योजना की घोषणा की थी।
यह स्पष्ट है कि अमेरिका वैश्विक व्यापार को एकतरफा शर्तों के आधार पर चलाना चाहता है और जो देश उससे असहमत होंगे, उन्हें आर्थिक दंड देने की रणनीति अपनाई जा रही है।
विश्लेषण: अमेरिका बनाम BRICS — कौन किस पर भारी?
ट्रंप की आक्रामक बयानबाज़ी बताती है कि अमेरिका अब BRICS को एक वैकल्पिक वैश्विक व्यवस्था की ओर बढ़ते हुए देख रहा है, जो पश्चिमी प्रभुत्व को चुनौती दे सकती है। वहीं चीन और अन्य BRICS देश संयमित शब्दों में लेकिन स्पष्ट संकेत दे रहे हैं कि वे अब केवल दर्शक नहीं, बल्कि वैश्विक नीति-निर्माता बनना चाहते हैं।
BRICS का वर्तमान रुख बताता है कि यह गुट अब कूटनीतिक संवाद और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के मंच के रूप में नई भूमिका निभाने को तैयार है। अमेरिका की ओर से आने वाली आर्थिक धमकियों से शायद कुछ देश झुक सकते हैं, लेकिन BRICS का सामूहिक स्वरूप उसे और अधिक आत्मनिर्भर और आत्मविश्वासी बना रहा है।
निष्कर्ष:-
यह टकराव अब केवल आयात शुल्क या व्यापार की बहस नहीं है। यह आने वाली नई वैश्विक व्यवस्था के स्वरूप को लेकर है, जहां अमेरिका का एकछत्र दबदबा खत्म हो सकता है और विकासशील देशों की आवाज़ निर्णायक बन सकती है।
चीन का करारा और रणनीतिक जवाब, ट्रंप की धमकियों को केवल नकारना ही नहीं बल्कि दुनिया को यह बताना है कि अब एक नया भू-राजनीतिक अध्याय शुरू हो चुका है — जिसमें सहयोग, संतुलन और बहुपक्षीयता ही भविष्य की कुंजी होगी।
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