रियो डी जनेरियो | 6 जुलाई 2025: ✍🏻 Z S Razzaqi | अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार
ब्राज़ील के रियो डी जनेरियो में चल रहे BRICS शिखर सम्मेलन के पहले दिन "परिवार चित्र" (Family Photo) के रूप में जो तस्वीर सामने आई, वह जितनी कुछ चेहरों की उपस्थिति के लिए जानी जाएगी, उतनी ही उनकी अनुपस्थिति के लिए भी। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा और ब्राज़ील के राष्ट्रपति लुईज़ इनेसियो लूला दा सिल्वा मुख्य मंच पर चमकते नजर आए, लेकिन रूस, ईरान, चीन, सऊदी अरब और मिस्र जैसे बड़े देशों के प्रमुख नेताओं की अनुपस्थिति ने एक गहरी कूटनीतिक कहानी कह दी।
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Symbolic Image |
मुख्य दृश्य: केंद्र में लूला, किनारे पर रूस-ईरान
दो दिवसीय BRICS सम्मेलन में ब्राज़ील के राष्ट्रपति लूला, जो इस बार मेज़बानी कर रहे हैं, मंच के केंद्र में थे। उनके एक ओर नरेंद्र मोदी और दूसरी ओर रामाफोसा थे। तस्वीर में रूस और ईरान के प्रतिनिधियों को सबसे किनारे दिखाया गया — मानो यह संकेत हो कि इन दोनों देशों की भूमिका अब भी "मुख्यधारा" की बजाय "हाशिए पर" है।
ये स्थिति केवल मंच पर नहीं बल्कि पूरे सम्मेलन की रणनीतिक प्रकृति में भी परिलक्षित हुई। रूस और ईरान, जो वैश्विक स्तर पर अलग-थलग पड़े हुए हैं — एक यूक्रेन युद्ध और दूसरा अमेरिका-यूरोप के प्रतिबंधों के चलते — अब BRICS के मंच पर भी एक प्रकार की दूरी महसूस कर रहे हैं।
कौन रहे ग़ैरहाज़िर — और क्यों?
इस BRICS फोटो में जिन प्रमुख नेताओं की अनुपस्थिति सबसे ज़्यादा महसूस की गई, उनमें शामिल हैं:
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चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, जो BRICS के सबसे शक्तिशाली सदस्य देश का नेतृत्व करते हैं।
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रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, जिनके खिलाफ यूक्रेन युद्ध के चलते अंतरराष्ट्रीय गिरफ्तारी वारंट जारी है।
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मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सीसी, जो मध्य पूर्व संकटों में मध्यस्थता कर रहे हैं।
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ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेज़ेश्कियान, जो हाल ही में राष्ट्रपति बने हैं।
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सऊदी अरब का कोई भी शीर्ष नेता, जिन्होंने अभी तक BRICS की पूर्ण सदस्यता को स्वीकार नहीं किया है।
हालांकि चीन की ओर से प्रधानमंत्री ली च्यांग मौजूद थे और उन्हें मोदी के पास जगह दी गई — यह इस बात का संकेत है कि चीन की आर्थिक ताक़त अब भी समूह में सबसे प्रभावशाली है।
सऊदी अरब: अंधेरे में हाँ या ना?
BRICS के विस्तार के बाद जिन नए देशों को सदस्यता दी गई है, उनमें सऊदी अरब भी शामिल है। लेकिन अभी तक उसने सदस्यता को औपचारिक रूप से स्वीकार नहीं किया है। सम्मेलन में सऊदी विदेश मंत्री फैसल बिन फरहान अल सऊद ने भाग लिया, लेकिन सूत्रों के मुताबिक उन्होंने अधिकांश बैठकों में चुप्पी साधे रखी। यह स्पष्ट नहीं है कि सऊदी अरब वास्तव में BRICS का हिस्सा बनना चाहता है या नहीं।
लूला की आलोचना: पश्चिम, नाटो और युद्ध की दौड़
सम्मेलन की उद्घाटन सत्र में लूला ने अमेरिका और पश्चिमी देशों पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा:
"अंतरराष्ट्रीय कानून अब मृत हो चुका है और विवादों के शांतिपूर्ण समाधान की अवधारणा खोखली बन चुकी है।"
"NATO का हालिया निर्णय हथियारों की दौड़ को बढ़ावा देता है। देशों के लिए 5% GDP रक्षा पर खर्च करना आसान होता है, लेकिन विकास और शांति पर नहीं।"
यह बयान अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के संदर्भ में भी देखा जा रहा है, जिनकी सैन्य नीतियों और चीन विरोधी रवैये को BRICS राष्ट्र एक चुनौती के रूप में देखते हैं।
BRICS का नया समीकरण और अमेरिका-नेतृत्व वाली व्यवस्था को चुनौती
BRICS अब केवल पांच देशों का समूह नहीं रहा। इसके सदस्यों की संख्या अब दोगुनी हो चुकी है, और इसके विस्तार ने इसे वैश्विक मंच पर एक वैकल्पिक ध्रुव के रूप में स्थापित किया है। हालांकि सभी दस सदस्य देश इस बैठक में शारीरिक रूप से उपस्थित नहीं थे, फिर भी सम्मेलन की शुरुआती गतिविधियों ने अमेरिका-प्रधान वैश्विक व्यवस्था के लिए एक बड़ी चेतावनी दी है।
जहाँ भारत और ब्राज़ील जैसी लोकतांत्रिक शक्तियाँ BRICS को एक आर्थिक मंच के रूप में देख रही हैं, वहीं रूस और ईरान जैसे देश इसे पश्चिमी वर्चस्व का प्रतिरोध करने वाले "राजनीतिक मंच" के रूप में परिभाषित करना चाहते हैं। यही द्वंद्व इस समूह के भीतर लंबी बहस का कारण बन सकता है।
निष्कर्ष: BRICS का भविष्य – आशा या असहजता?
रियो सम्मेलन की यह तस्वीर केवल एक 'फैमिली फोटो' नहीं, बल्कि एक प्रतीक है — एक ऐसा समूह जो वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति मज़बूत करना चाहता है, लेकिन आंतरिक असहजताओं और राजनीतिक मतभेदों से जूझ रहा है।
रूस और ईरान की सीमित भागीदारी, चीन का आंशिक प्रतिनिधित्व, और सऊदी अरब की अनिर्णय स्थिति यह दिखाती है कि BRICS अभी उस मुकाम पर नहीं पहुंचा है जहाँ वह एक ठोस, संगठित और निर्णायक वैश्विक शक्ति बन सके।
फिर भी, जैसे-जैसे यह संगठन आगे बढ़ेगा, इसकी रणनीति, सदस्यता की स्पष्टता और वैश्विक साझेदारियों की दिशा तय करेगी कि क्या BRICS वास्तव में एक "विश्व वैकल्पिक शक्ति केंद्र" बन सकता है — या यह एक कूटनीतिक प्रयोग भर रह जाएगा।
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