✍🏻 Z S Razzaqi | अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार
Ashura 2025 पर नाइम क़ासिम का स्पष्ट संदेश, इज़राइली हमलों, अमेरिकी दबाव और क्षेत्रीय संघर्ष पर विस्तार से विश्लेषण
प्रस्तावना: हथियार या आत्मसमर्पण नहीं – प्रतिरोध की परंपरा ज़िंदा है
मध्य पूर्व में इस्लामिक प्रतिरोध की जब भी बात होती है, तो हिज़्बुल्लाह का नाम सबसे पहले लिया जाता है। 6 जुलाई 2025 को अशूरा के मौके पर हिज़्बुल्लाह के डिप्टी चीफ़ नाइम क़ासिम ने बेयरूत के दक्षिणी उपनगरों में हज़ारों समर्थकों को संबोधित करते हुए साफ़ शब्दों में कहा कि उनकी पार्टी "कभी भी इज़राइली दबाव में हथियार नहीं छोड़ेगी, जब तक इज़राइल पूरी तरह से दक्षिण लेबनान से पीछे नहीं हटता।"
अशूरा और करबला की गूंज: प्रतिरोध की ऐतिहासिक जड़ें
अशूरा, शिया मुसलमानों के लिए केवल शोक का दिन नहीं, बल्कि प्रतिरोध और इंसाफ के लिए लड़ने का प्रतीक है। यह 680 ई. में करबला के मैदान में इमाम हुसैन की शहादत की याद दिलाता है – जिन्होंने अत्याचारी यज़ीद की बैअत से इनकार कर दिया। हिज़्बुल्लाह की विचारधारा भी उसी परंपरा से प्रेरित है – ज़ुल्म के सामने झुकना गुनाह है।
नाइम क़ासिम का वीडियो भाषण: सीधा और असंदिग्ध संदेश
बेयरूत के दक्षिणी हिस्से, जो हिज़्बुल्लाह का गढ़ माना जाता है, पीले झंडों और 'मौत बर इज़राइल' के नारों से गूंज उठा। नाइम क़ासिम के पीछे मंच पर पूर्व महासचिव हसन नसरल्लाह की तस्वीर लगी थी, जिन्हें सितंबर 2024 में इज़राइली ड्रोन हमले में शहीद कर दिया गया था। क़ासिम ने कहा:
"इज़राइल अब भी हमारी ज़मीन पर कब्ज़ा जमाए हुए है, हमारे नागरिकों को मार रहा है, और हमसे अपेक्षा कर रहा है कि हम हथियार डाल दें? यह न तो व्यावहारिक है, न ही स्वीकार्य।"
इज़राइल-लेबनान संघर्ष की पृष्ठभूमि: 2023 से 2025 तक
7 अक्टूबर 2023: संघर्ष की चिंगारी
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हमास द्वारा इज़राइल पर अभूतपूर्व हमला – 1100 से अधिक मरे, 250 से ज्यादा बंधक बनाए गए।
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इज़राइल ने तुरंत ग़ज़ा के साथ-साथ लेबनान पर भी हमले शुरू कर दिए।
2024: पूर्ण युद्ध और तबाही
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सितंबर 2024 तक यह तनाव एक पूर्ण युद्ध में बदल गया।
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आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार:
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4000 से अधिक मौतें लेबनान में
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1.4 मिलियन से अधिक विस्थापित
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हिज़्बुल्लाह की टॉप लीडरशिप का एक बड़ा हिस्सा मारा गया
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नवंबर 2024: अमेरिकी-ब्रोकर्ड सीज़फ़ायर
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संघर्ष रोकने के लिए अमेरिका की मध्यस्थता से सीज़फायर लागू हुआ।
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लेकिन इज़राइल ने अब भी दक्षिण लेबनान के पाँच रणनीतिक बिंदुओं पर कब्ज़ा बनाए रखा और हमले जारी रखे।
सीज़फ़ायर के बावजूद हमले: आंकड़ों में ज़ख़्म
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नवंबर 2024 से जुलाई 2025 तक:
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250 नागरिकों की मौत
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600 से अधिक घायल
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रोज़ाना ड्रोन और मिसाइल हमले – जिनमें से कुछ बेयरूत के रिहायशी इलाकों तक पहुंच चुके हैं
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राजनीतिक दबाव और अमेरिकी भूमिका
अमेरिकी विशेष दूत टॉम बैरक सोमवार को बेयरूत पहुंचने वाले हैं। सूत्रों के अनुसार, अमेरिका हिज़्बुल्लाह से वर्ष के अंत तक निरस्त्रीकरण (Disarmament) की स्पष्ट योजना की मांग कर रहा है।
लेबनान के राष्ट्रपति जोसेफ औन की टिप्पणी:
"यह एक अत्यंत संवेदनशील मामला है। किसी भी तरह की आंतरिक अस्थिरता का परिणाम हमारे लिए घातक हो सकता है।"
इज़राइली दृष्टिकोण: 'डिफेंस' के नाम पर विस्तारवाद?
इज़राइल दावा करता है कि हिज़्बुल्लाह की सैन्य क्षमताओं को नष्ट करना "रक्षा की अनिवार्यता" है। परंतु, आलोचकों का मानना है कि इज़राइल की रणनीति दरअसल लेबनानी संप्रभुता को चुनौती देना है।
नॉर्मलाइजेशन की कोशिशों पर हिज़्बुल्लाह का जवाब
इज़राइली विदेश मंत्री गिदोन सार ने हाल ही में बयान दिया था कि इज़राइल लेबनान के साथ "सामान्य राजनयिक संबंध" चाहता है। नाइम क़ासिम ने इसे खारिज करते हुए कहा:
"हम कभी भी कब्ज़े को वैधता नहीं देंगे। यह सामान्यीकरण नहीं, आत्मसमर्पण होगा।"
'हथियार' और 'रक्षा नीति' – दो अलग चरण
नाइम क़ासिम ने साफ़ कहा कि हिज़्बुल्लाह के हथियार किसी भी वार्ता का हिस्सा तब तक नहीं होंगे, जब तक:
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इज़राइल दक्षिण लेबनान से पूरी तरह हट नहीं जाता
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कैदियों की रिहाई नहीं होती
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हमले बंद नहीं होते
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पुनर्निर्माण शुरू नहीं होता
"इसके बाद ही हम राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा नीति पर बातचीत के लिए तैयार होंगे।"
आंतरिक राजनीतिक समीकरण: हिज़्बुल्लाह बनाम राज्य सत्ता?
हिज़्बुल्लाह की भूमिका लेबनान में हमेशा विवादित रही है – वह एक राजनीतिक दल भी है, एक सामाजिक सेवा संगठन भी, और एक सैन्य ताक़त भी। आलोचकों का तर्क है कि यह ‘राज्य के भीतर एक समानांतर राज्य’ है।
लेकिन समर्थकों का कहना है कि अगर हिज़्बुल्लाह न होता, तो लेबनान कब का इज़राइली नियंत्रण में चला गया होता।
मीडिया, मानसिकता और मानवीय संकट
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इज़राइली हमलों ने सिर्फ सैन्य संरचनाओं को नहीं, बल्कि आम नागरिकों को भी बुरी तरह प्रभावित किया है।
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2.3 मिलियन ग़ज़ा निवासी भुखमरी और ब्लॉकेड से जूझ रहे हैं।
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लेबनान में भीतरी विस्थापन और स्वास्थ्य सेवाओं का पतन तीव्र हुआ है।
निष्कर्ष: संघर्ष का अंत हथियार से नहीं, इन्साफ से होगा
हिज़्बुल्लाह की 'हथियार छोड़ो' नीति को केवल सैन्य दृष्टि से नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक, धार्मिक और रणनीतिक परिप्रेक्ष्य से देखने की ज़रूरत है। अशूरा के मंच से दिया गया क़ासिम का संदेश सिर्फ इज़राइल के लिए नहीं, बल्कि पूरे वैश्विक समुदाय के लिए चेतावनी है – कि जब तक अन्याय रहेगा, प्रतिरोध भी रहेगा।
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