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पूर्व मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ का सरकारी बंगले में अधिक समय तक रहना बना विवाद का विषय, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को लिखा पत्र

 ✍🏻 Z S Razzaqi |वरिष्ठ पत्रकार   

मुख्य बिंदु:

  • सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को लिखा पत्र, पूर्व CJI से बंगला खाली कराने की मांग

  • 33 कार्यरत न्यायाधीशों में 4 को अब तक सरकारी आवास नहीं मिला

  • न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ आठ महीने से Type VIII बंगले में रह रहे हैं, नियमों से बाहर

  • सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ने 1 जुलाई को भेजा औपचारिक पत्र

  • पूर्व CJI ने बताया: "व्यक्तिगत कारणों से देरी हुई, माफ़ कीजिए, विकल्प नहीं था"

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विवाद की शुरुआत: सरकारी आवास की सीमाएं और न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ का ठहराव

भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डॉ. डी.वाई. चंद्रचूड़, जो 10 नवम्बर 2024 को सेवानिवृत्त हुए थे, अब तक सरकारी आवास 5, कृष्णा मेनन मार्ग पर रह रहे हैं। यह आवास CJI के लिए तय Type VIII श्रेणी का है, जिसमें सेवानिवृत्ति के बाद अधिकतम छह महीने तक रेंट-फ्री ठहरने की इजाजत है।

लेकिन न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ इस आवास में करीब आठ महीने से रह रहे हैं, जो नियमों के विपरीत है। सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ने इस विषय को गंभीरता से लेते हुए केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय को पत्र भेजकर बंगला तुरंत खाली कराने की मांग की है।


SC के न्यायाधीशों की संकटग्रस्त आवास व्यवस्था

वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट में 33 न्यायाधीश कार्यरत हैं, जिनमें मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई भी शामिल हैं। एक पद रिक्त है (कुल स्वीकृत संख्या: 34)। हैरानी की बात यह है कि इनमें से चार न्यायाधीशों को अभी तक सरकारी आवास नहीं मिल पाया है।

  • तीन न्यायाधीश सुप्रीम कोर्ट के ट्रांजिट अपार्टमेंट्स में रह रहे हैं

  • एक न्यायाधीश राज्य अतिथि गृह (State Guest House) में रह रहे हैं

इस स्थिति में CJI के आधिकारिक बंगले की जरूरत और भी अहम हो जाती है।


सुप्रीम कोर्ट प्रशासन का पत्र: बंगला खाली कराइए

1 जुलाई 2025 को सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ने एक आधिकारिक पत्र मंत्रालय को भेजा, जिसमें लिखा गया:

“सादर निवेदन है कि कृष्णा मेनन मार्ग स्थित बंगला संख्या 5, जो माननीय डॉ. न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ के पास है, उसे अविलंब अपने कब्जे में लिया जाए, क्योंकि इसे रखने की अनुमति 31 मई 2025 को समाप्त हो चुकी है और नियम 3B के तहत 6 महीने की अधिकतम अवधि 10 मई 2025 को पूरी हो चुकी है।”


न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ का पक्ष: “मैं मजबूर था, माफ़ कीजिए”

एनडीटीवी से बात करते हुए पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि:

“मैं ठहरना नहीं चाहता था, लेकिन मेरी बेटियों को विशेष जरूरतों वाला घर चाहिए। मैंने फरवरी से कई सेवा अपार्टमेंट और होटल आजमाए, लेकिन कुछ भी काम नहीं आया।”

उन्होंने बताया कि उन्होंने 28 अप्रैल को उस समय के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना को पत्र लिखकर अनुरोध किया था कि उन्हें 30 जून तक बंगले में रुकने दिया जाए। लेकिन कोई जवाब नहीं आया। यह उनका तीसरा विस्तार का निवेदन था।

चंद्रचूड़ ने यह भी कहा कि उन्होंने वर्तमान CJI बी.आर. गवई से भी बात की है और भरोसा दिलाया है कि जैसे ही मरम्मत और अस्थायी आवास तैयार हो जाएगा, वे बंगला खाली कर देंगे।


सरकारी अनुमति और समय-सीमा: विस्तार की शृंखला

सेवानिवृत्ति के बाद:

  • उन्हें Type VII बंगला (सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के लिए) दिया गया था, लेकिन उन्होंने आग्रह किया कि वे मौजूदा बंगले (Type VIII) में ही 30 अप्रैल 2025 तक रहना चाहते हैं।

  • तत्कालीन CJI ने इस पर सहमति जताई और मंत्रालय ने ₹5430/माह लाइसेंस फीस पर 11 दिसंबर 2024 से 30 अप्रैल 2025 तक की अनुमति दी।

  • इसके बाद मौखिक अनुरोध पर 31 मई 2025 तक की एक और छूट दी गई, साफ शर्त के साथ कि अब कोई विस्तार नहीं मिलेगा।


SC का दबाव: अब और इंतज़ार नहीं

सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ने स्पष्ट कहा है कि अब कोई और देरी स्वीकार्य नहीं है, और बंगले को तुरंत खाली कराके न्यायिक व्यवस्था को सुचारु किया जाए। जिस CJI बंगले की जरूरत है, उसमें अब न कोई कानूनी छूट बची है, और न ही नैतिक विकल्प।


विश्लेषण: क्या यह सिर्फ एक ‘मानवीय त्रुटि’ है या व्यवस्था की खामी?

इस पूरे प्रकरण में दो दृष्टिकोण उभरते हैं:

  1. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ का मानवीय पक्ष – जिनकी बेटियों को विशेष देखभाल की जरूरत है और वे वास्तविक संकट से गुज़रे

  2. संस्थागत अनुशासन का प्रश्न – क्या सुप्रीम कोर्ट के प्रशासनिक निर्णय और नियम सब पर समान रूप से लागू होते हैं? अगर नहीं, तो न्यायिक संस्थाओं की पारदर्शिता और नैतिक श्रेष्ठता पर सवाल उठते हैं।


निष्कर्ष: न्यायिक मर्यादा और पारदर्शिता की परीक्षा

यह मुद्दा केवल एक बंगले का नहीं, बल्कि न्यायपालिका की नैतिक जिम्मेदारी का है। जब शीर्ष अदालत खुद व्यवस्था में अनुशासन की मांग करती है, तो उसके सबसे वरिष्ठ पदों से भी यह अपेक्षा की जाती है कि वे नियमों के अनुकरण में दूसरों के लिए उदाहरण बनें।

पूर्व मुख्य न्यायाधीश की व्यक्तिगत परिस्थिति समझी जा सकती है, लेकिन सिस्टम का लचीलापन और संवेदनशीलता भी तभी तक सही है जब तक वह संस्थागत निष्पक्षता को प्रभावित न करे।

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