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सुप्रीम कोर्ट में याचिका: प्रत्येक चुनाव से पहले मतदाता सूची का विशेष पुनरीक्षण अनिवार्य करने की मांग

 ✍🏻 Z S Razzaqi | वरिष्ठ पत्रकार    

मुख्य बिंदु:
भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की।
चुनाव आयोग और केंद्र-राज्य सरकारों को निर्देश देने की मांग कि वे सभी चुनावों से पहले मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision) नियमित रूप से कराएं।
याचिका में यह तर्क दिया गया कि पारदर्शी, निष्पक्ष और विश्वसनीय चुनाव सुनिश्चित करने के लिए यह कदम आवश्यक है।


क्या है याचिका का मुख्य उद्देश्य?

भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर यह जनहित याचिका (PIL) भारत के चुनावी तंत्र की गुणवत्ता सुधारने की दिशा में एक गंभीर पहल है। याचिका में मांग की गई है कि:

  • चुनाव आयोग (ECI) हर लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनाव से पहले विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान चलाए।

  • केंद्र और सभी राज्य सरकारों को यह कानूनी रूप से बाध्य किया जाए कि वे निर्वाचक पंजीकरण नियमावली (Registration of Electors Rules) के तहत आवश्यक संशोधन करें ताकि यह पुनरीक्षण स्वतः और नियमित रूप से हो।


मतदाता सूची में गड़बड़ियों पर चिंता

उपाध्याय का दावा है कि देश के अनेक राज्यों, विशेष रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल आदि में मतदाता सूचियों में बड़ी मात्रा में डुप्लिकेट, मृत, फर्जी और अप्रवासी मतदाता दर्ज हैं। इससे न सिर्फ चुनाव की निष्पक्षता प्रभावित होती है, बल्कि:

  • जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की आत्मा को ठेस पहुंचती है।

  • लोकतंत्र की विश्वसनीयता पर जनता का विश्वास कमजोर होता है।


याचिका में यह भी मांगें की गईं:

  1. हर वर्ष 1 जनवरी को मतदाता सूची की स्थिति को अपडेट किया जाए।

  2. राज्य सरकारें, पंचायतों और नगरपालिकाओं के जरिए घर-घर जाकर सत्यापन अभियान चलाएं।

  3. सभी राज्यों में एक 統ीकृत डेटाबेस सिस्टम तैयार किया जाए जो आधार, मृत्यु प्रमाणपत्र और अन्य नागरिक डेटाबेस से जुड़ा हो।


चुनाव आयोग की भूमिका पर सवाल

इस याचिका में अप्रत्यक्ष रूप से चुनाव आयोग की निष्क्रियता पर भी सवाल उठाए गए हैं। याचिकाकर्ता के अनुसार, आयोग:

  • समय पर मतदाता सूचियों को अपडेट नहीं करता।

  • मृतकों और प्रवासियों के नाम हटाने में निष्क्रिय रहता है।

  • राजनीतिक दबाव के चलते निष्पक्षता से समझौता करता है।


संवैधानिक और लोकतांत्रिक महत्व

भारत के संविधान का अनुच्छेद 326 सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार की गारंटी देता है। लेकिन जब एक मृत व्यक्ति वोटर लिस्ट में शामिल हो और एक जीवित नागरिक बाहर रह जाए — तब संविधान का यह प्रावधान सिर्फ कागज़ पर रह जाता है।


अब आगे क्या होगा?

सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर केंद्र, चुनाव आयोग और सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया है। मामले की सुनवाई आगामी हफ्तों में शुरू होगी। यदि कोर्ट इस याचिका को स्वीकार करता है और सरकारों को निर्देश देता है, तो यह भारत के चुनावी सुधारों की दिशा में एक बड़ा कदम माना जाएगा।


                                                                     

                                                                   निष्कर्ष:-

अश्विनी उपाध्याय की याचिका केवल एक राजनीतिक या कानूनी कार्रवाई नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र के भविष्य को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाने की दिशा में एक गंभीर आह्वान है। यदि सुप्रीम कोर्ट इस याचिका के पक्ष में फैसला देता है, तो आने वाले वर्षों में चुनावी प्रक्रिया पहले से कहीं अधिक भरोसेमंद बन सकती है।

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