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संभल जामा मस्जिद विवाद में नई याचिका: नमाज़ पर रोक की मांग, लेकिन असली मक़सद क्या है?

 संभल (उत्तर प्रदेश) – उत्तर प्रदेश के संभल जिले में ऐतिहासिक शाही जामा मस्जिद को लेकर चल रहे विवाद में एक बार फिर से नया मोड़ आया है। इस बार सिमरन गुप्ता नाम की एक याचिकाकर्ता ने चंदौसी अदालत में याचिका दायर कर मस्जिद में नमाज़ पढ़ने पर अस्थायी रोक लगाने की मांग की है। यह याचिका ऐसे समय में आई है जब अदालत द्वारा ASI का दो बार सर्वे कराया जा चुका है और कोई ठोस प्रमाण मस्जिद के मंदिर होने के पक्ष में नहीं मिल पाया।




मामले की जड़: मंदिर-मस्जिद का नहीं, राजनीति का मुद्दा?

संभल की शाही जामा मस्जिद सैकड़ों वर्षों पुरानी एक ऐतिहासिक इमारत है, जिसके धार्मिक और स्थापत्य महत्व के कई प्रमाण मौजूद हैं। लेकिन विगत कुछ वर्षों से राजनीतिक माहौल को देखते हुए, कुछ धार्मिक उन्मादी गुट इस मस्जिद को ‘हरिहर मंदिर’ बताकर विवाद खड़ा करने में जुटे हैं। खासकर जब से उत्तर प्रदेश में भगवाधारी सत्ता मजबूत हुई है, तब से ऐसे मामलों में अचानक तेज़ी आई है।


ASI सर्वे में नहीं मिला कोई पुख़्ता मंदिर-सबूत

2023 और 2024 में अदालत के आदेश पर ASI की टीम ने दो बार सर्वेक्षण किया, लेकिन मंदिर होने के कोई विशेष अवशेष या मूर्तियाँ नहीं मिलीं। आम तौर पर ऐसे मामलों में यदि कोई ठोस सबूत सामने आता है, तो उसे मीडिया में बड़े ज़ोर-शोर से प्रचारित किया जाता है – लेकिन इस मसले में ऐसा कुछ सामने नहीं आया।


अब 'नमाज़ रोक' की याचिका: न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग?

जब भूमि विवाद में तथ्य और प्रमाण सामने नहीं आ पाए, तो अब याचिकाकर्ता ने नमाज़ जैसी धार्मिक गतिविधि पर रोक की मांग करते हुए एक नई याचिका डाल दी है। यह याचिका न सिर्फ मुस्लिम समाज की धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला है, बल्कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता) का भी उल्लंघन है।

इस याचिका के पीछे यह तर्क दिया गया है कि जब तक यह साबित नहीं हो जाता कि यह स्थान मंदिर था या मस्जिद, तब तक किसी भी धार्मिक क्रिया की इजाजत न दी जाए। लेकिन यह मांग तथ्यों के अभाव में धार्मिक भावनाओं को भड़काने वाली प्रतीत होती है।


संभल की जनता ने हमेशा अमन पसंद रवैया दिखाया है

इतिहास गवाह है कि संभल की गंगा-जमुनी तहज़ीब ने हमेशा साम्प्रदायिक तनाव को नकारा है। बीते वर्षों में कई बार विवाद पैदा करने की कोशिशें हुईं, लेकिन स्थानीय लोगों ने समझदारी और भाईचारे से उन्हें नाकाम किया। परंतु 24 नवंबर 2024 को जब दोबारा सर्वे हुआ, तो असामाजिक तत्वों द्वारा हिंसा भड़काई गई जिसमें 5 नागरिकों की मौत और 7 पुलिसकर्मी घायल हो गए। सैकड़ों लोगों पर केस दर्ज हुए, जिनमें मस्जिद कमेटी के प्रमुख, सांसद और सामाजिक कार्यकर्ता भी शामिल थे।


न्यायपालिका पर दबाव और प्रशासन की सतर्कता

अब यह मामला पुनः कोर्ट में है और 21 जुलाई 2025 को सुनवाई की तारीख तय की गई है। कोर्ट को यह तय करना है कि एक ऐसे स्थल पर, जहाँ विवाद किसी भी सशक्त ऐतिहासिक या पुरातात्विक प्रमाण पर आधारित नहीं है, वहाँ नमाज़ पर रोक लगाने की मांग संविधान-सम्मत है या नहीं।

प्रशासन पहले से ही सतर्क है और क्षेत्र में धारा 144 लागू की गई है। कई मस्जिदों और धार्मिक स्थलों के आसपास पुलिस बल तैनात किया गया है।


निष्कर्ष:-

न्याय की कसौटी पर विवेक और संवेदनशीलता की ज़रूरत

  • यदि हर ऐतिहासिक मस्जिद को बिना ठोस प्रमाण मंदिर कहकर विवाद खड़ा किया जाने लगे, तो यह समाज को गंभीर धार्मिक संघर्षों की ओर ले जाएगा।

  • शाही जामा मस्जिद न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान भी है।

  • यदि न्यायपालिका इस पर ठोस रुख नहीं अपनाती, तो यह एक खतरनाक उदाहरण बन सकता है, जिससे देशभर में सामाजिक सौहार्द खतरे में पड़ सकता है।

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