✍🏻 Z S Razzaqi | अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार
ट्रंप ने अपनी सोशल मीडिया साइट Truth Social पर लिखा:
“इज़राइल ने 60 दिन के सीज़फायर के लिए ज़रूरी शर्तों को स्वीकार कर लिया है। इस दौरान हम युद्ध को स्थायी रूप से समाप्त करने की दिशा में काम करेंगे। मुझे आशा है कि हमास इस अंतिम प्रस्ताव को स्वीकार करेगा – क्योंकि इससे बेहतर अब कुछ नहीं मिलेगा।”
हालांकि इस दावे पर अभी तक इज़राइल या हमास की कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है।
नेतन्याहू की युद्ध नीति पर वैश्विक और घरेलू दबाव
इस प्रस्ताव की पृष्ठभूमि में इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की आक्रामक युद्ध नीति और क्षेत्रीय तनावों की तेज़ होती आग है। नेतन्याहू को वर्षों से एक आक्रामक, रणनीतिक लेकिन युद्धोन्मुख नेता माना जाता रहा है। उनके शासनकाल में इज़राइल ने कई देशों पर सैन्य कार्रवाई की है — गाज़ा, लेबनान, सीरिया, और ईरान उन प्रमुख क्षेत्रों में हैं जहाँ इज़राइल की सैन्य गतिविधियाँ भारी विवाद का कारण रही हैं।
लेकिन इस बार हालात बदले हैं। ईरान ने पहली बार नेतन्याहू को बेहद कठोर जवाब दिया है, जिससे वे बुरी तरह बौखला गए हैं। रणनीतिक जानकारों का कहना है कि अब नेतन्याहू अमेरिका और नाटो जैसे देशों को भी इस युद्ध में खींचने की कोशिश कर रहे हैं – लेकिन इसके कोई ठोस फायदे स्पष्ट नहीं हैं, सिवाय इसके कि इससे इज़राइल की भू-राजनीतिक स्थिति और बिगड़ सकती है।
⚠️ इज़राइल में नेतन्याहू के ख़िलाफ़ जनआंदोलन और गृहयुद्ध की आशंका
इज़राइल में आम जनता अब नेतन्याहू की युद्ध-नीति के खिलाफ खुलकर सामने आ रही है। महीनों से चल रहे युद्ध ने हज़ारों इज़राइली सैनिकों की जान ली है, देश की अर्थव्यवस्था चरमरा रही है और जनजीवन संकट में है। बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं और यह आशंका जताई जा रही है कि यदि यही स्थिति बनी रही तो इज़राइल में नागरिक युद्ध (Civil War) जैसे हालात उत्पन्न हो सकते हैं।
इज़राइल की संसद केनेस्सेट में भी विपक्ष लगातार सरकार से सवाल पूछ रहा है। विशेषज्ञों के मुताबिक, यह नेतन्याहू के राजनीतिक करियर का सबसे अस्थिर दौर है।
🏳️🌈 नाटो देशों की 'तटस्थ नीति' और ट्रंप की रणनीति
डोनाल्ड ट्रंप अपने आगामी राष्ट्रपति चुनाव अभियान के बीच इस शांति प्रस्ताव को एक कूटनीतिक उपलब्धि के तौर पर स्थापित करना चाहते हैं। लेकिन अमेरिका के पारंपरिक सहयोगी – जैसे जर्मनी, फ्रांस, स्पेन और नीदरलैंड्स – अब पूरी तरह तटस्थता बनाए रखने की नीति पर हैं। इन देशों में राजनीतिक नेतृत्व नहीं चाहता कि उनके देश किसी और युद्ध में उलझें।
ट्रंप हालांकि इससे उलट, इसे एक वैश्विक शांति समझौते के रूप में पेश कर रहे हैं, और उन्होंने साफ़ किया है कि वे नेतन्याहू से सख्ती से गाज़ा युद्ध रोकने की बात करेंगे। व्हाइट हाउस में सोमवार को दोनों नेताओं की मुलाकात प्रस्तावित है।
🩸 गाज़ा में भयावह मानवीय संकट और युद्ध की कीमत
इस पूरे संकट की सबसे भयावह कीमत गाज़ा की आम जनता चुका रही है। 7 अक्टूबर 2023 को हमास द्वारा इज़राइल पर हमले में 1,200 लोग मारे गए और 251 को बंधक बना लिया गया था। इसके बाद शुरू हुए इज़राइली सैन्य हमलों में अब तक:
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56,500 से अधिक फिलीस्तीनी मारे गए (ज्यादातर नागरिक)
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23 लाख की आबादी में से लगभग सभी विस्थापित हो चुके हैं
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गाज़ा के कई इलाके पूरी तरह मलबे में तब्दील हो गए हैं
हाल ही में अल-बक्का कैफ़े पर हुए इज़राइली हमले में 24 से 36 फिलीस्तीनियों की मौत हुई, जिनमें कई बच्चे भी शामिल थे।
🔚 निष्कर्ष: शांति की उम्मीद या राजनीति का खेल?
इस "अंतिम शांति प्रस्ताव" के पीछे जहां एक ओर ट्रंप की चुनावी रणनीति और नेतन्याहू की सैन्य हताशा है, वहीं दूसरी ओर एक बहुत ही भयावह मानवीय त्रासदी भी चल रही है। अगर यह प्रस्ताव स्वीकार नहीं हुआ, तो न केवल गाज़ा और इज़राइल बल्कि पूरा मध्य पूर्व एक और लम्बे युद्ध के अंधेरे में धकेला जा सकता है।
दुनिया की नज़रें अब इस बात पर टिकी हैं कि क्या हमास इस प्रस्ताव को मानेगा, और क्या नेतन्याहू अपनी नीति बदलेंगे — या फिर इतिहास एक और रक्तरंजित अध्याय लिखेगा।
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