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Movie Review: 'Kingdom' (2025) | विजय देवरकोंडा की 'राजनीतिक क्रांति' और सिनेमाई पुनर्जन्म

 

प्रस्तावना: क्या ‘किंगडम’ विजय देवरकोंडा के करियर की पुनःस्थापना है?

2025 की बहुप्रतीक्षित फिल्म ‘किंगडम’ न केवल विजय देवरकोंडा की दमदार वापसी का प्रतीक है, बल्कि यह एक ऐसी कोशिश है जो सामाजिक अन्याय के खिलाफ उठती आवाज़ को एक सिनेमाई आंदोलन में बदलती है। निर्देशक गौतम तिन्ननुरी, जिन्होंने पहले ‘जर्सी’ जैसी संवेदनशील फिल्म दी थी, इस बार पूरी तरह एक राजनीतिक-भावनात्मक-एक्शन ड्रामा लेकर आए हैं।


फिल्म में जहाँ एक ओर राजनीति, अन्याय और विद्रोह की धधकती पृष्ठभूमि है, वहीं दूसरी ओर पारिवारिक रिश्तों, प्रेम और बलिदान की भावनात्मक गहराइयाँ भी हैं। ‘किंगडम’ सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि एक ‘सिनेमाई शौर्यगाथा’ है, जो तकनीकी, भावनात्मक और राजनीतिक सभी स्तरों पर दर्शक को झकझोर देती है।


कहानी की गहराई: व्यवस्था के खिलाफ एक आम आदमी की असाधारण लड़ाई

फिल्म की कथा एक ऐसे साधारण युवक की है जो उस व्यवस्था को चुनौती देता है जो वर्षों से आम जनता के अधिकारों को कुचलती आई है। विजय देवरकोंडा का किरदार ‘कंडन्ना’ कोई मसीहा बनकर पैदा नहीं होता, बल्कि परिस्थितियाँ उसे वह बनने पर मजबूर करती हैं।


यह कहानी है सत्ता की चौखट पर दस्तक देती उस आवाज़ की जो वर्षों से दबाई जाती रही है, और अब वह हथियारों, विचारों और साहस के साथ लौटती है। पहले हाफ में इस संघर्ष को बेहद प्रभावशाली ढंग से गढ़ा गया है – घटनाओं का प्रवाह, संवादों की शक्ति और दृश्यात्मक गहराई दर्शक को हिलाकर रख देती है।


कलाकारों का प्रदर्शन: विजय देवरकोंडा के अभिनय का उत्कर्ष

विजय देवरकोंडा, जो पिछली कुछ फिल्मों में आलोचना का सामना कर चुके थे, इस बार अपने करियर की सर्वश्रेष्ठ भूमिका लेकर लौटे हैं। उनकी संवेदनशीलता, क्रोध, दृढ़ता, और विकट परिस्थितियों में ठहराव को देखकर यह कहना गलत नहीं होगा कि ‘कंडन्ना’ अब उनके जीवन की सिग्नेचर भूमिका बन चुकी है।


भाग्यश्री बोरसे ने अपने डेब्यू में ही यह साबित कर दिया कि वह सिर्फ एक 'नायिका' नहीं, बल्कि कहानी का सक्रिय हिस्सा हैं। उनके भाव, आँखों की भाषा और संवाद अदायगी बेहतरीन रही।

सत्यदेव, वेंकटेश, और अन्य सहायक कलाकारों ने फिल्म में गहराई और संतुलन जोड़ा है। वेंकटेश के पात्र की भाषण वाली सीन में दर्शकों की आँखें भर आती हैं – यह पल दर्शकों के दिलों में लंबे समय तक रहेगा।


निर्देशन और पटकथा: दो भागों में बंटी एक महागाथा

निर्देशक गौतम तिन्ननुरी ने ‘किंगडम’ को न सिर्फ एक फिल्म, बल्कि एक दृश्य-नाटकीय महागाथा में ढाला है। उन्होंने हर फ्रेम में संवाद, संवेदना, और संघर्ष की लय बनाए रखी है।


हालाँकि, कई दर्शकों और समीक्षकों ने आलोचना की है कि फिल्म का दूसरा भाग अपेक्षाकृत धीमा है और यह ‘पार्ट 2’ के लिए ग्राउंड वर्क ज्यादा करता है, बजाय कि यह फिल्म स्वयं में एक संपूर्ण अनुभव हो। यहाँ दर्शकों को क्लिफहैंगर एंडिंग से कुछ निराशा हो सकती है।


संगीत और तकनीकी पक्ष: अनिरुद्ध का संगीत – फिल्म की आत्मा

अनिरुद्ध रविचंदर इस फिल्म के सबसे मजबूत स्तंभ हैं। उनकी बैकग्राउंड स्कोर और गाने फिल्म की नब्ज हैं।

  • 'हृदयम लोपला' को फिल्म का प्रेम गान माना जा रहा है – इसकी धुन, बोल और भावनाएँ हृदय को छू जाती हैं।

  • 'रगिले रगिले', प्रे-क्लाइमैक्स और क्लाइमैक्स की दृश्यों में जो ऊर्जा भरती है, वह सिनेमाघरों में सीटियाँ और तालियाँ लाने के लिए काफी है।

गिरीश गंगाधरन और जोमोन टी. जॉन की सिनेमैटोग्राफी फिल्म को दृश्य वैभव और यथार्थ की कड़ी में बांधती है। चाहे वह भीड़ का उग्र प्रदर्शन हो, या पानी में फिल्माया गया बोट सीन – हर फ्रेम बोलता है।


प्रतिक्रिया और विश्लेषण: जनता की नज़रों से ‘किंगडम’

सकारात्मक प्रतिक्रियाएँ:

  • “वीजेडी बैक विद बूम!”

  • “अनिरुद्ध ने फिर से साबित किया कि वो म्यूजिक डायरेक्शन का मास्टर है।”

  • “पहला हाफ एकदम थ्रिलिंग, फर्स्ट डे फर्स्ट शो देखना सफल।”

आलोचनात्मक दृष्टिकोण:

  • “दूसरा हाफ बस तैयारी है, फिल्म अधूरी लगती है।”

  • “बहुत क्लिच हो गया है – ‘वर्ल्ड’, ‘सवियर’, ‘पार्ट टू’ टेम्पलेट।”

  • “इमोशन हिट नहीं किया।”


बॉक्स ऑफिस रिपोर्ट और व्यवसायिक दृष्टिकोण

फिल्म ने थिएट्रिकल राइट्स 54 करोड़ रुपये में बेच दिए हैं और ओपनिंग डे पर लगभग 18 करोड़ रुपये की कमाई की संभावना जताई गई है। यह विजय देवरकोंडा के करियर की सबसे बड़ी ओपनिंग बन सकती है। यदि फिल्म की पॉजिटिव माउथ-टू-माउथ बनी रही, तो यह 100 करोड़ क्लब में दूसरी बार प्रवेश दिला सकती है।


'किंगडम' क्यों देखें? (SEO-Optimized Summary for Audience)

  • Vijay Deverakonda’s best mass action comeback

  • Intense political narrative with emotional depth

  • Outstanding music by Anirudh Ravichander

  • Technically rich visuals and strong cinematography

  • Part 2 already anticipated: Cliffhanger ending

  • Ideal for action-thriller and political drama lovers

  • Strong performances by the supporting cast

  • Cultural resonance and socially aware script


निष्कर्ष: अधूरी नहीं, अगली क्रांति का बीज है ‘किंगडम’

'किंगडम' को एक अधूरी कहानी कह देना गलत होगा – यह एक आगाज़ है, समाप्ति नहीं। विजय देवरकोंडा ने न केवल एक्शन और इमोशन में संतुलन साधा है, बल्कि उन्होंने अपनी पिछली असफलताओं से सीखते हुए इस बार आत्मविश्वास, परिपक्वता और नियंत्रण के साथ परफॉर्म किया है।

फिल्म तकनीकी रूप से उत्कृष्ट, भावनात्मक रूप से सशक्त, और वैचारिक रूप से प्रासंगिक है। यदि आप सिनेमाघर में केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि कुछ सोचने, महसूस करने और लड़ने का कारण खोजने जाते हैं – तो 'किंगडम' आपके लिए है।


🌟 संपूर्ण रेटिंग: 3.5/5

👉 ज़रूर देखें, और अगली कड़ी का इंतज़ार करें — क्योंकि क्रांति अभी अधूरी है, लेकिन शुरुआत ज़रूर हो चुकी है।

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