✍🏻 Z S Razzaqi | अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार
नई दिल्ली | आईसीआईसीआई बैंक की पूर्व सीईओ चंदा कोचर को 64 करोड़ रुपये की रिश्वत लेने के मामले में दोषी ठहराया गया है। यह फैसला स्मगलर्स एंड फॉरेन एक्सचेंज मैनिपुलेटर्स (फॉरफेचर ऑफ प्रॉपर्टी) एक्ट – SAFEMA के तहत गठित अपीलीय ट्रिब्यूनल ने सुनाया है। यह मामला 2009 में वीडियोकॉन ग्रुप को दिए गए ₹300 करोड़ के ऋण से जुड़ा है, जिसमें चंदा कोचर पर निजी हितों को तरजीह देने और बैंक की आंतरिक नीतियों की अनदेखी करने के आरोप लगे थे।
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क्या है पूरा मामला?
2009 में, ICICI बैंक की एक समिति ने वीडियोकॉन ग्रुप को ₹300 करोड़ का ऋण मंजूर किया। इस बैठक की अध्यक्षता स्वयं चंदा कोचर ने की थी, जबकि वीडियोकॉन समूह और उनके परिवार के संबंधों की जानकारी उनके पास थी। ट्रिब्यूनल ने इसे हितों के टकराव (Conflict of Interest) का स्पष्ट मामला माना है।
ट्रिब्यूनल ने यह भी स्पष्ट किया कि ऋण जारी करने के कुछ ही समय बाद, ₹64 करोड़ रुपये की राशि न्यूपावर रिन्यूएबल्स प्राइवेट लिमिटेड (NRPL) को ट्रांसफर की गई – यह कंपनी चंदा कोचर के पति दीपक कोचर द्वारा प्रवर्तित थी।
धन की उलझी हुई लेन-देन की चेन:
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₹300 करोड़ का ऋण → दिया गया वीडियोकॉन को।
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₹64 करोड़ → ट्रांसफर हुआ सुप्रीम एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड (SEPL) के जरिए।
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SEPL → वीडियोकॉन के प्रमोटर वेणुगोपाल धूत से दीपक कोचर को हस्तांतरित।
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NRPL → दीपक कोचर द्वारा चलाया जा रहा संस्थान, जिसमें SEPL की 95% हिस्सेदारी थी।
ट्रिब्यूनल ने यह निष्कर्ष निकाला कि यह लेन-देन एक सुनियोजित योजना का हिस्सा था, जिसके तहत बैंक के ऋण का लाभ उठाकर निजी लाभ अर्जित किया गया।
पहले की 'क्लीन चिट' क्यों पलटी गई?
2020 में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने कोचर दंपत्ति की ₹78 करोड़ की संपत्तियों को जब्त किया था। हालांकि, नवंबर 2020 में पीएमएलए (PMLA) के एडजुडीकेटिंग अथॉरिटी ने इस आदेश को रद्द कर दिया था। उस समय Authority ने NDPL की शेयरधारिता संरचना पर अधिक जोर दिया, जबकि NRPL के संचालन पर दीपक कोचर का नियंत्रण नजरअंदाज कर दिया।
अब SAFEMA ट्रिब्यूनल ने इसे गंभीर त्रुटि मानते हुए ED की जब्ती को फिर से वैध ठहराया और कहा कि चंदा कोचर का दिया गया स्पष्टीकरण तर्कसंगत नहीं है। ट्रिब्यूनल ने वेणुगोपाल धूत के बयान को भी निर्णायक माना, जिसमें उन्होंने माना कि NRPL की पूरी गतिविधियों का संचालन दीपक कोचर ही कर रहे थे।
CBI जांच और कानूनी कार्यवाही की स्थिति:
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सितंबर 2020: ED ने दीपक कोचर को गिरफ्तार किया।
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दिसंबर 2022: CBI ने चंदा और दीपक कोचर को हिरासत में लिया।
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जनवरी 2023: बॉम्बे हाई कोर्ट ने अंतरिम जमानत दी।
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फरवरी 2024: हाई कोर्ट ने गिरफ्तारी को ‘अवैध’ और ‘पावर का दुरुपयोग’ करार दिया।
हालांकि हाई कोर्ट ने गिरफ्तारी को गलत ठहराया, लेकिन SAFEMA ट्रिब्यूनल का यह फैसला चंदा कोचर की नैतिक और प्रशासनिक जवाबदेही पर गंभीर सवाल खड़े करता है। अब यह मामला ट्रायल कोर्ट के समक्ष लंबित है, जहां अंतिम निर्णय होना बाकी है।
महत्वपूर्ण निष्कर्ष:
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चंदा कोचर ने वीडियोकॉन को दिए गए ऋण पर निर्णय लेते समय बैंक की आचार संहिता का उल्लंघन किया।
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ऋण जारी होते ही उसका एक हिस्सा चुपचाप उनके पति की कंपनी में ट्रांसफर हुआ।
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ट्रिब्यूनल ने पाया कि यह लेन-देन सिर्फ ‘संयोग’ नहीं बल्कि एक रणनीतिक ‘घूस’ थी।
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ट्रिब्यूनल ने SAFEMA के तहत ED की कार्रवाई को सही ठहराया और संपत्तियों की जब्ती को वैध ठहराया।
निष्कर्ष: बैंकिंग में पारदर्शिता और नैतिकता पर सवाल
चंदा कोचर देश की पहली ऐसी महिला बैंक प्रमुखों में थीं, जिन्हें कॉरपोरेट इंडिया का प्रतीक माना जाता था। उनके खिलाफ यह निर्णय न सिर्फ एक व्यक्ति विशेष की विफलता है, बल्कि कॉरपोरेट गवर्नेंस और बैंकिंग सेक्टर में नैतिक जवाबदेही की आवश्यकता को भी उजागर करता है।
यह मामला एक महत्वपूर्ण मिसाल बन सकता है कि कैसे शक्ति और पद का दुरुपयोग, चाहे जितना भी परिष्कृत तरीके से किया गया हो, अंततः कानून की पकड़ में आता है।
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