Type Here to Get Search Results !

ADS5

ADS2

बिहार विशेष मतदाता सूची संशोधन पर उठा भूचाल: जनता से लेकर विपक्ष तक असंतुष्ट, लेकिन चुनाव आयोग अपनी हठधर्मिता पर अड़ा; सुप्रीम कोर्ट भी सख्ती से बचता दिखा

 ✍🏻 Z S Razzaqi |वरिष्ठ पत्रकार

बिहार में चल रहे विशेष सघन मतदाता सूची पुनरीक्षण अभियान (Special Intensive Revision - SIR) को लेकर जहां चुनाव आयोग आंकड़ों और दावों के ज़रिये "सफलता की तस्वीर" पेश कर रहा है, वहीं जमीनी हकीकत, जन असंतोष और विपक्षी दलों की प्रतिक्रिया इसके एकदम विपरीत है।

राज्य की आम जनता से लेकर विपक्षी दलों के बड़े नेता तक इस पूरे अभियान को "असामयिक, अपारदर्शी और पक्षपातपूर्ण" करार दे रहे हैं। लेकिन इसके बावजूद चुनाव आयोग न केवल आलोचनाओं को दरकिनार कर रहा है, बल्कि अपनी हठधर्मी कार्यप्रणाली पर अड़ा हुआ है। चिंताजनक बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट, जो लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में चुनावी प्रक्रियाओं की निगरानी करने वाला मंच माना जाता है, इस बार अपेक्षित कठोरता नहीं दिखा सका।



🔍 जनता का असंतोष: "न प्रतिनिधियों ने पूछा, न फॉर्म सही से बांटे गए"

बिहार के कई जिलों से रिपोर्ट मिली है कि बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) या तो समय पर नहीं पहुंचे, या फिर मतदाता फॉर्म ऐसे घरों में छोड़े गए जहां कोई नहीं रहता। ग्रामीण क्षेत्रों में वरिष्ठ नागरिकों, महिला मतदाताओं और दिव्यांगों को फॉर्म भरने में गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ा।

"मुझसे कोई फॉर्म नहीं लिया गया, और अब कहा जा रहा है कि मैंने जवाब नहीं दिया," — बेगूसराय निवासी रमेश सिंह (62 वर्ष)


🗳️ विपक्ष का आरोप: "बिहार में लोकतंत्र को हाईजैक करने की तैयारी"

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने हाल ही में एक जनसभा में कहा कि बिहार में भी वही स्थिति दोहराई जा रही है जो महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन के दौरान देखी गई थी। उन्होंने सीधे चुनाव आयोग पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह पूरा अभियान जन प्रतिनिधियों की सूची में मनचाही कटौती और जोड़-तोड़ के लिए चलाया जा रहा है।

राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के वरिष्ठ नेता ने कहा:

"4 लाख वॉलंटियर और लाखों फॉर्म दिखाने से सच नहीं बदल जाएगा। ज़मीनी हकीकत है कि ECI सत्ता के इशारे पर काम कर रहा है।"


⚖️ सुप्रीम कोर्ट की भूमिका पर सवाल

सुप्रीम कोर्ट ने 11 जुलाई को सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की बात को सुना ज़रूर, लेकिन अपने आदेश में केवल "ECI को दस्तावेज़ों जैसे आधार कार्ड, राशन कार्ड, वोटर ID पर विचार करने" की सलाह दी।

लेकिन सवाल यह उठता है कि जब याचिकाओं में चुनाव आयोग की नियत और पारदर्शिता पर गंभीर आरोप लगाए गए थे, तब अदालत ने ECI से सिर्फ "कारण बताने" की अपेक्षा क्यों रखी?

"यह न्याय नहीं, सिर्फ प्रक्रियात्मक संतोष का भ्रम है।" — एक वरिष्ठ वकील, जिन्होंने याचिका दायर की थी


📊 चुनाव आयोग के आंकड़ों पर भी संदेह

चुनाव आयोग का दावा है कि अब तक 6.32 करोड़ फॉर्म, यानी 80.11% फॉर्म जमा किए जा चुके हैं। लेकिन विपक्ष और कई स्वतंत्र पर्यवेक्षक इसे आंकड़ों की बाज़ीगरी बता रहे हैं।

"आपने फॉर्म तो दिखा दिए, पर यह नहीं बताया कि कितने लोगों ने वाकई उनमें अपने विवरण की पुष्टि की?" — चुनाव विशेषज्ञ योगेंद्र मिश्रा


🧾 घोटालों और विफलताओं का रिकॉर्ड

यह पहली बार नहीं है जब चुनाव आयोग की कार्यशैली पर सवाल उठे हों। इससे पहले भी कई राज्यों में BLO द्वारा मनमानी कटौती, फर्जी नामों का जुड़ना, और भेदभावपूर्ण निष्कासन जैसे मामले उजागर हुए हैं। बावजूद इसके, ECI कभी भी अपने अधिकारियों की जवाबदेही तय करने में सफल नहीं रहा।


🔴 निष्कर्ष: सवालों के घेरे में लोकतंत्र का प्रहरी

बिहार में मतदाता सूची संशोधन के नाम पर जो प्रक्रिया चल रही है, वह विश्वास और पारदर्शिता के उन मूलभूत स्तंभों को झकझोर रही है, जिन पर भारत का लोकतंत्र टिका हुआ है। चुनाव आयोग का दावा है कि वह 25 जुलाई से पहले कार्य पूरा कर लेगा, लेकिन यदि यह कार्य जन भागीदारी और निष्पक्षता के बिना पूरा होता है, तो यह "संविधान सम्मत" ज़रूर हो सकता है, लेकिन जनतांत्रिक नहीं।

यह समय है जब सुप्रीम कोर्ट और देश के नागरिकों को, बिना किसी डर या दबाव के, सवाल पूछने चाहिए — ताकि भारत में चुनाव केवल एक प्रक्रिया न रहे, बल्कि एक सशक्त लोकतांत्रिक पर्व बना रहे।

ये भी पढ़े 

1 -हिंदी उर्दू शायरी 

2 -प्रीमियम डोमेन सेल -लिस्टिंग  


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

ADS3

ADS4