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इज़रायली हमले में पानी भरते बच्चों की हत्या: ग़ाज़ा में 59 फ़िलिस्तीनियों की मौत, मानवीय त्रासदी की पराकाष्ठा

 ✍🏻 Z S Razzaqi | अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार    

परिचय: एक गहराता नरसंहार, एक शांत होती दुनिया

ग़ाज़ा पट्टी में इज़राइल की सैन्य कार्रवाइयों ने अब उस हद को पार कर लिया है जहाँ यह केवल एक युद्ध नहीं, बल्कि सुनियोजित जनसंहार (Genocide) का रूप ले चुका है। 13 जुलाई 2025 को इज़रायली सेना ने मध्य ग़ाज़ा के नुसेरात शरणार्थी शिविर में पानी इकट्ठा कर रहे नागरिकों पर हमला किया, जिसमें कम से कम 10 लोगों की जान गई—जिनमें 6 मासूम बच्चे थे। इस दिल दहला देने वाली घटना ने एक बार फिर यह साफ़ कर दिया है कि इज़राइल का युद्ध अब नागरिकों के अस्तित्व के खिलाफ़ है।



मुख्य घटना: प्यास के बदले मौत — नुसेरात शिविर में जल वितरण केंद्र पर बमबारी

ग़ाज़ा के नुसेरात रिफ्यूजी कैंप में रविवार की सुबह लोग अपनी प्यास बुझाने और घर के लिए थोड़ा-बहुत पानी लेने इकट्ठा हुए थे। अधिकांश लोग पहले से ही जानते थे कि पानी दूषित है, पर उनकी प्यास और ज़रूरतें इतनी बड़ी थीं कि यह जोखिम उठाना अनिवार्य हो गया। तभी इज़रायली ड्रोन और हवाई हमलों ने उन्हें निशाना बना लिया। इस हमले में छह बच्चे वहीं के वहीं मारे गए, जबकि 16 अन्य घायल हो गए—कुछ की हालत नाज़ुक बनी हुई है।

अल-जज़ीरा के संवाददाता हनी महमूद ने ग़ाज़ा सिटी से बताया,

“यह कोई अलग-थलग घटना नहीं है। पिछले कुछ महीनों में ऐसे 10 से अधिक हमले हो चुके हैं, जहाँ लोगों को जानबूझकर उस वक़्त निशाना बनाया गया जब वे पानी भरने या राहत सामग्री लेने बाहर निकले थे।”


संपूर्ण ग़ाज़ा पट्टी में विनाश: एक दिन में 59 मौतें, रिहायशी इलाक़े ध्वस्त

ग़ाज़ा सिटी, शती रिफ्यूजी कैंप, हमीद स्ट्रीट, सबरा, खान यूनुस और अल-मावासी—इन सभी स्थानों को रविवार को इज़रायली वायुसेना ने लक्ष्य बनाया। ग़ाज़ा सिटी में ही 28 नागरिकों की मौत हुई, और अन्य क्षेत्रों में विस्थापन टेंट्स, घरों और रिहायशी इमारतों पर हुए हमलों में दर्जनों मारे गए। खान यूनुस के अल-मावासी क्षेत्र में विस्थापन शिविर पर हुए हमले में तीन लोगों की मौत की पुष्टि नासेर मेडिकल कॉम्प्लेक्स के डॉक्टरों ने की।


राहत केंद्र तक सुरक्षित नहीं: रफ़ा में 34 लोगों की मौत

एक दिन पहले शनिवार को, रफ़ा शहर के एक राहत वितरण केंद्र—Gaza Humanitarian Foundation (GHF)—के बाहर इज़रायली गोलाबारी में 34 लोग मारे गए। यह केंद्र अमेरिका और इज़राइल समर्थित है और मई के अंत से राहत वितरण का मुख्य स्रोत बना हुआ है। GHF के एकाधिकार के कारण संयुक्त राष्ट्र जैसी विश्वसनीय संस्थाओं को दरकिनार कर दिया गया है।

महमूद कहते हैं,

“भूख से बेहाल लोग 12 से 15 किलोमीटर की दूरी तय कर इस केंद्र तक पहुँचते हैं। कई रात में चलते हैं, बमबारी से बचे खंडहरों में सोते हैं ताकि सुबह जल्दी पहुंच सकें। लेकिन जब वे वहां पहुंचते हैं, तो उनका स्वागत होता है—ज़िंदा गोलियों से।”


भूख और कुपोषण का अंधकार: 67 बच्चों की भूख से मौत

यूएन की एजेंसी UNRWA ने शनिवार को चेतावनी दी कि ग़ाज़ा में भूख का स्तर खतरनाक हद तक पहुंच चुका है। अक्टूबर 2023 से अब तक 67 बच्चों की मौत सिर्फ भूख के कारण हो चुकी है। एजेंसी के मुताबिक, मार्च से अब तक कुपोषण के मामलों में भयानक वृद्धि हुई है और उन्हें किसी भी प्रकार की मानवीय सहायता लाने की अनुमति नहीं दी गई है।


मानवाधिकारों पर हमला: घरों को विस्फोटकों से उड़ाया गया

तुफ्फाह मोहल्ले में रविवार को इज़रायली बलों ने कई रिहायशी इमारतों को विस्फोटकों से उड़ा दिया। इन कार्रवाइयों को दुनिया देख रही है, लेकिन संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ और अमेरिका जैसे शक्तिशाली देशों की ओर से कोई ठोस हस्तक्षेप नहीं हो रहा है।


अंतरराष्ट्रीय न्यायालयों की भूमिका और आरोप

इस युद्ध के दौरान हुए मानवाधिकार उल्लंघनों को लेकर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय सक्रिय हुए हैं:

  • अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) ने नवंबर 2024 में इज़रायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और पूर्व रक्षा मंत्री योआव गैलांट के खिलाफ गिरफ़्तारी वारंट जारी किए हैं।

  • अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) में दक्षिण अफ़्रीका ने इज़राइल के विरुद्ध जनसंहार (genocide) का मुक़दमा दर्ज़ किया है।

फिर भी इज़रायल की कार्रवाइयों में कोई कमी नहीं आई है। अब तक इस 21 महीने चले युद्ध में 58,000 से अधिक फ़िलिस्तीनी मारे जा चुके हैं—जिनमें बड़ी संख्या महिलाओं और बच्चों की है।


ग़ाज़ा की आबादी पर सामूहिक सज़ा: विस्थापन की त्रासदी

ग़ाज़ा की लगभग 2.3 करोड़ की पूरी आबादी कम से कम एक बार जबरन विस्थापित हो चुकी है। इज़रायल का नया अभियान “साउथ कंसंट्रेशन ज़ोन” की ओर सभी नागरिकों को धकेलने की साज़िश की ओर इशारा करता है, जहाँ मूलभूत संसाधनों की अनुपस्थिति में लोग मौत की ओर धकेले जा रहे हैं।


निष्कर्ष: अब भी यदि दुनिया नहीं चेती...

ग़ाज़ा में हो रहा जनसंहार अब केवल एक क्षेत्रीय संकट नहीं, बल्कि वैश्विक नैतिक विफलता का प्रतीक बन गया है। जब बच्चे सिर्फ पानी लेने बाहर निकलें और उन्हें मार दिया जाए, जब राहत केंद्र तक को बख़्शा न जाए, और जब बचे हुए लोग भूख-प्यास से मरने को मजबूर हों—तो सवाल यह उठता है:
क्या दुनिया ने मानवता को स्थायी रूप से खो दिया है?

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