✍🏻 Z S Razzaqi | अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार
भूमिका: क्या पश्चिम एशिया एक नए युद्ध की ओर बढ़ रहा है?
22 जून, 2025 की सुबह, विश्व ने एक भयावह घोषणा सुनी — अमेरिका ने ईरान के तीन प्रमुख परमाणु ठिकानों पर बमबारी की है। यह घटनाक्रम सिर्फ एक सैन्य हमला नहीं था, बल्कि एक बड़े भूराजनीतिक भूचाल की शुरुआत है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस हमले की पुष्टि करते हुए इसे "अत्यंत सफल सैन्य अभियान" बताया। उन्होंने दावा किया कि ईरान की परमाणु संवर्द्धन क्षमता को पूरी तरह खत्म कर दिया गया है।
हमले में किन ईरानी ठिकानों को निशाना बनाया गया?
1. फोर्डो (Fordow)
क़ोम के पास स्थित यह भूमिगत संवर्धन केंद्र सैकड़ों मीटर गहराई में बना हुआ है और लगभग 2,976 सेंट्रीफ्यूज चलाने की क्षमता रखता है। इसे सबसे सुरक्षित परमाणु ठिकानों में गिना जाता है।
2. नतान्ज़ (Natanz)
ईरान का सबसे बड़ा यूरेनियम संवर्धन परिसर, जहां कई भूमिगत हॉलों में बड़ी संख्या में सेंट्रीफ्यूज लगे हुए हैं। यह पहले भी कई बार साइबर हमलों और इज़राइली हमलों का शिकार हो चुका है।
3. इस्फहान (Isfahan)
यहां यूरेनियम को संसाधित कर संवर्धन योग्य बनाने की इकाइयाँ हैं और रिएक्टर के लिए फ्यूल फैब्रिकेशन प्लांट भी स्थित हैं।
हमले में कौन से हथियार इस्तेमाल हुए?
ट्रंप ने "मासिव प्रिसीजन स्ट्राइक" की बात कही, हालांकि सटीक हथियारों की जानकारी साझा नहीं की गई। अमेरिकी मीडिया रिपोर्टों के अनुसार:
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B2 स्टील्थ बॉम्बर्स द्वारा GBU-57 “Massive Ordnance Penetrator” (MOP) बम गिराए गए।
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प्रत्येक बम का वजन लगभग 13,000 किलोग्राम (30,000 पाउंड) होता है और यह 18 मीटर तक की कंक्रीट या 61 मीटर मिट्टी को भेद सकता है।
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अमेरिकी नौसेना की पनडुब्बियों से क्रूज़ मिसाइलें भी दागी गईं।
यह पहली बार है जब अमेरिका ने इन विशाल बंकर-बस्टर बमों का युद्ध में प्रयोग किया है।
क्या ईरान को बड़ा नुकसान हुआ?
ट्रंप के दावे के अनुसार, ईरान की परमाणु संवर्धन क्षमता को "पूरी तरह से नष्ट" कर दिया गया है। लेकिन अभी तक कोई स्वतंत्र पुष्टि नहीं हुई है।
ईरान की परमाणु एजेंसी (AEOI) ने कहा कि:
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किसी प्रकार की रेडिएशन लीकेज या नागरिकों को खतरा नहीं है।
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सभी प्रभावित स्थल सुरक्षित स्थिति में हैं।
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उन्होंने आश्वासन दिया कि परमाणु कार्यक्रम किसी भी साजिश से नहीं रुकेगा।
IAEA (अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी) ने भी पुष्टि की है कि कोई रेडिएशन वृद्धि नहीं दर्ज की गई।
ईरान की प्रतिक्रिया: "संप्रभुता की रक्षा में कोई समझौता नहीं"
ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराग़ची ने अमेरिका पर संयुक्त राष्ट्र चार्टर, अंतरराष्ट्रीय कानून और परमाणु अप्रसार संधि (NPT) के गंभीर उल्लंघन का आरोप लगाया।
उन्होंने कहा:
“यह आक्रामकता अनैतिक, अवैध और वैश्विक शांति के लिए अत्यंत खतरनाक है। ईरान अपनी संप्रभुता और जनता की रक्षा के लिए हर विकल्प सुरक्षित रखता है।”
ईरान पहले ही इशारा कर चुका है कि वह NPT से बाहर निकल सकता है, जिसके तहत परमाणु हथियारों के विकास को रोका जाता है।
संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएं
UN महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा:
“यह कदम उस क्षेत्र में एक खतरनाक बढ़त है जो पहले से ही युद्ध के मुहाने पर है। इस युद्ध के नागरिकों और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर विनाशकारी प्रभाव पड़ सकते हैं।”
IAEA प्रमुख राफाएल ग्रोसी ने घोषणा की कि सोमवार को आपात बैठक बुलाई जाएगी।
ईरान की संभावित जवाबी रणनीतियाँ
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सीधा सैन्य हमला: फारस की खाड़ी में तैनात अमेरिकी बेड़े को निशाना बनाया जा सकता है।
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प्रॉक्सी हमले: इराक में मौजूद शिया मिलिशिया अमेरिकी ठिकानों को निशाना बना सकती हैं।
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आर्थिक प्रभाव: तेल और गैस आपूर्ति को बाधित कर वैश्विक बाजार पर दबाव डाला जा सकता है।
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राजनीतिक प्रतिक्रिया: NPT से बाहर निकलने की घोषणा और परमाणु कार्यक्रम को गुप्त रूप से तेज करना।
ईरान ने पहले ही इज़राइल पर मिसाइल हमला कर दिया है जिसमें उन्नत मिसाइल ‘Kheibar Shekan’ का प्रयोग किया गया।
क्या यह अमेरिका-ईरान युद्ध की शुरुआत है?
क्विंसी इंस्टीट्यूट के विशेषज्ञ एडम वाइनस्टीन ने चेतावनी दी है:
“यह हमला केवल एक बार की कार्रवाई नहीं है। अमेरिका अब उस युद्ध की तरफ बढ़ रहा है जिसे उसने खुद शुरू किया है – और इसमें फंसने का खतरा बहुत गहरा है।”
डोनाल्ड ट्रंप ने चेतावनी दी है कि अगर ईरान ने किसी भी प्रकार की जवाबी कार्रवाई की, तो अमेरिका इससे “कई गुना बड़ी ताकत से” पलटवार करेगा।
निष्कर्ष: शांति का रास्ता या विनाश का द्वार?
यह हमला सिर्फ तीन परमाणु ठिकानों पर बम गिराने की घटना नहीं है, बल्कि यह पूरी पश्चिम एशिया को युद्ध की आग में झोंकने वाला कदम साबित हो सकता है। विश्व समुदाय के लिए यह समय है, जब सिर्फ बयानबाज़ी से आगे बढ़कर सक्रिय कूटनीति की जाए।
यदि यह टकराव नहीं थमता, तो इसके प्रभाव सिर्फ तेहरान या तेल अवीव तक सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि समूचे मानव समुदाय को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है।
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