✍🏻 Z S Razzaqi | अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार
अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट द्वारा जन्मसिद्ध नागरिकता (Birthright Citizenship) पर दिए गए हालिया फैसले ने पूरे देश में अप्रवासी समुदायों के बीच भय, भ्रम और अनिश्चितता की लहर दौड़ा दी है। ख़ासतौर पर वे गर्भवती महिलाएं जो शरणार्थी या वीज़ा धारक हैं, अब यह सोचकर घबरा रही हैं कि कहीं उनके होने वाले बच्चे की कोई नागरिकता ही न रहे।
एक मां की दहशत: "क्या मेरा बच्चा बेनागरिक हो जाएगा?"
ह्यूस्टन में रहने वाली 24 वर्षीय कोलंबियाई शरणार्थी लोरेना का मामला इस भय की प्रतीक बन चुका है। सितंबर में मां बनने जा रही लोरेना ने रॉयटर्स को बताया, “मुझे ठीक से समझ नहीं आता कि क्या हो रहा है। अगर मैं अपने बच्चे को अपनी लंबित शरण याचिका में शामिल नहीं कर सकी, तो शायद उसे कोलंबिया की नागरिकता भी न मिल पाए।” यह बयान सिर्फ एक मां की चिंता नहीं, बल्कि लाखों अप्रवासियों की पीड़ा का संकेत है।
फैसले की जड़ में क्या है?
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला 6-3 बहुमत से आया है, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि संघीय न्यायाधीश अब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उस कार्यकारी आदेश (Executive Order) को राष्ट्रव्यापी स्तर पर स्थगित नहीं कर सकते, जो गैरकानूनी प्रवासियों और अस्थायी वीज़ा धारकों के अमेरिका में जन्मे बच्चों को नागरिकता से वंचित करता है।
हालांकि, कोर्ट ने यह नहीं कहा कि ट्रंप का आदेश संवैधानिक है या नहीं। इसने केवल इतना निर्देश दिया कि अब निचली अदालतें अगले 30 दिनों के भीतर सीमित क्षेत्रीय उपायों पर विचार करें।
"30 दिन की उलटी गिनती": एक विभाजित अमेरिका की ओर?
इस 30 दिन की गिनती में, यदि निचली अदालतें कोई प्रभावी स्टे आदेश नहीं देतीं, तो ट्रंप का आदेश आंशिक रूप से लागू हो सकता है — कुछ राज्यों में नागरिकता मिलेगी, कुछ में नहीं।
उदाहरण:
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मैसाचुसेट्स (Plaintiff राज्य) में जन्म लेने वाले बच्चे को नागरिकता मिल सकती है।
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वहीं लुइसियाना (Non-plaintiff राज्य) में जन्मे बच्चे को इनकार मिल सकता है।
यह स्थिति "कानून की एकरूपता" को तोड़ती है और बच्चों की नागरिकता अस्पताल और डॉक्टरों की विवेकशीलता पर निर्भर हो सकती है। माइग्रेशन पॉलिसी इंस्टीट्यूट की विश्लेषक कैथलीन बुश-जोसफ का कहना है, “क्या अब डॉक्टर तय करेंगे कि कौन नागरिक है और कौन नहीं?”
न्यायिक लड़ाई और सामूहिक याचिकाओं की शुरुआत
फैसले के कुछ घंटों के भीतर ही अप्रवासी अधिकार समूहों ने प्रतिक्रिया दी। CASA और Asylum Seeker Advocacy Project ने मेरीलैंड में दायर अपने केस को संशोधित कर सभी बच्चों के लिए एक राष्ट्रीय वर्ग कार्रवाई (Class Action) की मांग की — जो 19 फरवरी 2025 के बाद जन्मे हैं और ट्रंप के आदेश से प्रभावित होंगे।
वकील विलियम पॉवेल ने कहा, “हम सभी को सुरक्षा दिलाने जा रहे हैं। अगर यूनिवर्सल स्टे अब मुमकिन नहीं है, तो क्लास एक्शन ही रास्ता है।”
हालाँकि इसमें भी चुनौतियाँ हैं:
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सभी अप्रवासी इन संगठनों से नहीं जुड़ सकते।
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रिपब्लिकन शासित राज्य, जैसे टेक्सास और फ्लोरिडा, आदेश को 30 दिनों के बाद लागू कर सकते हैं।
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संसाधनों की कमी और कानूनी जानकारी का अभाव भी लोगों को हाशिए पर धकेल रहा है।
राजनीतिक प्रतिक्रिया और ट्रंप का बयान
डोनाल्ड ट्रंप ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बयान दिया कि "सैकड़ों हज़ारों लोग जन्मसिद्ध नागरिकता का फायदा उठाकर घुसपैठ कर रहे हैं" — जबकि यह दावा गलत और भ्रामक बताया गया है। उनके समर्थक इस निर्णय को एक “जरूरी सुधार” मानते हैं, जबकि आलोचकों के अनुसार यह संविधान के 14वें संशोधन की मूल भावना के खिलाफ है।
इसी बीच 22 डेमोक्रेटिक अटॉर्नी जनरल ने संकेत दिया है कि वे निचली अदालतों में यह तर्क रखेंगे कि सिर्फ राष्ट्रव्यापी स्थगन आदेश (universal injunction) ही इस तरह की अराजकता को रोक सकते हैं।
ग्राउंड ज़ीरो: समुदाय की चिंता
लुइसियाना की शरणार्थी निविदा ने बताया कि उनके पास लगातार गर्भवती महिलाओं के कॉल आ रहे हैं। सवाल एक ही: “क्या मेरे बच्चे को नागरिकता मिलेगी?”
वर्जीनिया की किशोरी बेट्सी, जिनके माता-पिता अल साल्वाडोर से बिना दस्तावेज़ आए थे, ने कहा: “यह तो उन मासूम बच्चों को निशाना बना रहा है जो अभी जन्मे भी नहीं हैं।”
निष्कर्ष: क्या अमेरिका दो हिस्सों में बंट जाएगा?
यह फैसला एक कानूनी पेचीदगी भर नहीं, बल्कि अमेरिकी लोकतंत्र की आत्मा और मानवता की कसौटी है। आने वाले महीनों में जब सुप्रीम कोर्ट इस आदेश की संवैधानिकता की समीक्षा करेगा, तब तक लाखों परिवारों के मन में यही सवाल गूंजता रहेगा — “क्या मेरा बच्चा इस देश का नागरिक कहलाएगा या नहीं?”
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