भारत-पाक तनाव एक बार फिर चरम पर है, विशेषकर पहलगाम आतंकी हमले के बाद जहाँ हिंदू यात्रियों को निशाना बनाकर बर्बरता की गई। ऐसे माहौल में एक और सनसनीखेज़ दावे ने सोशल मीडिया पर आग लगा दी है — यह दावा कि पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री और विश्व कप विजेता कप्तान इमरान ख़ान के साथ जेल में यौन शोषण हुआ।
इस दावे की जड़ है एक कथित ‘मेडिकल रिपोर्ट’ जो "पाक एमिरेट्स मिलिट्री हॉस्पिटल (PEMH)" की बताई जा रही है। रिपोर्ट में जिन शारीरिक चोटों का वर्णन किया गया है, वे यौन उत्पीड़न की ओर इशारा करती हैं — पेरिनियल क्षेत्र में चोटें, ब्लीडिंग, मांसपेशियों की कमजोरी, और एचआईवी सहित यौन रोगों की जांच की सिफारिश। सबसे चौंकाने वाली बात यह लिखी गई कि इमरान ख़ान की रिहाई पाकिस्तानी सेना प्रमुख की अनुमति पर निर्भर है।
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सोशल मीडिया पर मची सनसनी, लेकिन सामने आए गंभीर संदेह
यह दस्तावेज़ सबसे पहले X (पूर्व में ट्विटर) पर सामने आया, जिसके बाद अफ़वाहों, सियासी प्रतिक्रियाओं और गुस्से की बाढ़ आ गई। लेकिन जब तथ्यों की परतें खोली गईं, तो कई ऐसी बातें सामने आईं जो रिपोर्ट को फर्ज़ी साबित करने के लिए काफ़ी थीं:
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रिपोर्ट की तारीख 3 मई, 2025 थी, लेकिन यह सोशल मीडिया पर 2 मई से ही वायरल हो चुकी थी — यानी एक दिन पहले।
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आधिकारिक सूत्रों के अनुसार इमरान ख़ान का मेडिकल परीक्षण PEMH में नहीं बल्कि पाकिस्तान इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज़ (PIMS), इस्लामाबाद में किया गया था।
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इमरान ख़ान की क़ानूनी टीम ने यौन उत्पीड़न पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया।
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पाकिस्तानी सेना, सरकार और मीडिया — सभी ने या तो चुप्पी साध ली या रिपोर्ट की प्रामाणिकता पर सवाल उठाए।
चुप्पी की साज़िश? जब अफ़वाहें सच से ज़्यादा तेज़ दौड़ती हैं
फैक्ट-चेकिंग संगठनों ने रिपोर्ट को झूठा और गढ़ा हुआ बताया है। लेकिन विडंबना यह है कि पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान की चुप्पी, और इमरान ख़ान की टीम का कोई स्पष्ट बयान ना आना, संदेह की आग में घी डालने का काम कर रहा है।
इस पूरे विवाद के बीच, यह बात समझनी ज़रूरी है कि डिजिटल युग में झूठी ख़बरें एक हथियार बन चुकी हैं — और पाकिस्तान जैसे अर्ध-सैन्य लोकतंत्र में, जहाँ सेना की सत्ता सर्वोपरि मानी जाती है, वहाँ इस तरह की अफ़वाहें राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल की जाती हैं।
पहलगाम हमला और झूठी 'विक्टिम लिस्ट': पाकिस्तानी प्रोपेगंडा की एक और मिसाल
इसी संदर्भ में पहलगाम आतंकी हमले के बाद भी एक नकली पीड़ितों की सूची सामने आई थी जिसमें जानबूझकर 15 मुस्लिम नाम शामिल कर दिए गए थे, ताकि यह दिखाया जा सके कि आतंकियों ने धर्म नहीं देखा। जबकि ज़मीनी हकीकत यह थी कि आतंकियों ने पीड़ितों के पायजामे तक उतरवाकर "सुनिश्चित किया कि वे हिंदू हैं" और फिर बेरहमी से हत्या की।
यह उदाहरण बताता है कि कैसे पाकिस्तानी साइबर तंत्र असली खबरों को तोड़-मरोड़कर और नकली दस्तावेज़ों के ज़रिए सार्वजनिक चेतना को गुमराह करता है।
इमरान और सेना का टकराव: क्या यह बदले की कार्रवाई है?
यह कोई रहस्य नहीं कि इमरान ख़ान का पाकिस्तानी सेना के साथ खुला टकराव हो चुका है। जेल भेजे जाने के बाद सेना के खिलाफ़ उनके बयानों ने संस्थान को नाराज़ किया है। ऐसे में यह आशंका नकारा नहीं जा सकता कि सेना या उनके समर्थक तत्वों ने एक नकली रिपोर्ट गढ़कर इमरान की साख को धूमिल करने का प्रयास किया हो।
निष्कर्ष: रिपोर्ट फर्ज़ी, लेकिन सत्ता की चुप्पी एक गहरी साज़िश की ओर इशारा करती है
अब तक के सभी तथ्यों और जांच से यह लगभग साफ़ है कि इमरान ख़ान के साथ यौन उत्पीड़न की रिपोर्ट फर्ज़ी है। लेकिन जिस तरह से पाकिस्तानी सरकार, सेना और इमरान ख़ान की टीम चुप है, उससे यह शक और गहरा होता जा रहा है कि या तो कुछ और गंभीर हुआ है, या फिर यह एक और भयावह राजनीतिक षड्यंत्र है।
एक ऐसे देश में, जहाँ 'बच्चा बाज़ी' जैसी घटनाएं सामान्य और संरक्षित मानी जाती हैं, वहाँ राजनीतिक बंदियों को अपमानित करने के लिए यौन उत्पीड़न को भी हथियार बनाया जा सकता है — यह सोचना कोई अतिशयोक्ति नहीं है।
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