संभल जनपद के पुलिस प्रशासन में बड़ा फेरबदल हुआ है। बीते कई महीनों से धार्मिक टिप्पणियों और सांप्रदायिक रुख को लेकर सुर्खियों में रहे क्षेत्राधिकारी (सीओ) अनुज चौधरी का तबादला कर दिया गया है। उन्हें संभल से हटाकर चंदौसी सर्किल की जिम्मेदारी सौंपी गई है, जबकि उनकी जगह ट्रेनी आईपीएस अधिकारी आलोक भाटी को सीओ संभल नियुक्त किया गया है। यह तबादला केवल एक प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं माना जा रहा, बल्कि इसके पीछे अनुज चौधरी की कार्यशैली, उनकी विचारधारा और उनके विवादित बयानों को लेकर उठे तीव्र विरोध की भूमिका को भी गहराई से देखा जा रहा है।
धार्मिक ध्रुवीकरण की छवि वाले पुलिस अफसर
अनुज चौधरी को संभल के स्थानीय लोगों और राजनीतिक विश्लेषकों के बीच एक 'धार्मिक रूप से पक्षपाती' पुलिस अफसर की छवि मिली हुई है। उनके कार्यकाल में यह देखा गया कि वह अक्सर धार्मिक यात्राओं में निजी रुचि लेकर शामिल होते रहे हैं। इसके अलावा, स्थानीय नागरिकों और सामाजिक संगठनों का यह भी आरोप रहा है कि अनुज चौधरी कई अवसरों पर अपने निर्णय धार्मिक नजरिए से लेते थे, न कि विधिसम्मत प्रशासनिक मूल्यों पर आधारित होकर। यह कार्यशैली एक धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था में पुलिस अधिकारी के आचरण पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगाती है।
संभल हिंसा और ‘जुमे’ के बयान से बढ़ा विवाद
पिछले वर्ष संभल में भड़की सांप्रदायिक हिंसा के बाद से अनुज चौधरी राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियों में आ गए थे। लेकिन इस हिंसा के बाद सबसे ज्यादा विवाद तब हुआ जब उन्होंने होली और जुमे की नमाज को लेकर सार्वजनिक बयान दिया। इस बयान को अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ माना गया और उनपर धार्मिक भेदभाव को बढ़ावा देने का आरोप लगाया गया। इस बयान के चलते उनके खिलाफ जांच भी शुरू हुई।
पूर्व आईपीएस अमिताभ ठाकुर ने उठाए गंभीर सवाल
पूर्व आईपीएस और आजाद अधिकार सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमिताभ ठाकुर ने अनुज चौधरी के बयान को ‘सेवा आचरण नियमावली का स्पष्ट उल्लंघन’ करार दिया था। उन्होंने 9 अप्रैल को IGRS पोर्टल पर शिकायत दर्ज कराई जिसमें कहा गया कि:
"सीओ अनुज चौधरी बिना किसी अधिकार के बयानबाजी करते हैं, अपने निर्णयों में धार्मिक भावनाओं को स्थान देते हैं और वर्दी का उपयोग एक समुदाय विशेष को टारगेट करने के लिए करते हैं। इससे न केवल प्रशासनिक निष्पक्षता पर आघात पहुंचता है बल्कि सामाजिक तानेबाने में दरार भी आती है।"
प्रशासनिक कार्रवाई और क्लीन चिट पर असहमति
इस शिकायत पर कार्रवाई करते हुए पुलिस महानिदेशक प्रशांत कुमार ने एसपी लॉ एंड ऑर्डर मनोज कुमार अवस्थी को जांच सौंपी। अवस्थी ने ASP संभल श्रीश्चंद्र के साथ मिलकर जांच की और 17 अप्रैल को रिपोर्ट गृह विभाग को सौंपी, जिसमें अनुज को क्लीन चिट दे दी गई।
इस क्लीन चिट पर भी अमिताभ ठाकुर ने सवाल उठाए। उन्होंने डीजीपी को पत्र लिखते हुए कहा कि उन्हें अपना पक्ष रखने का मौका तक नहीं दिया गया। इसके बाद एक बार फिर जांच का आदेश दिया गया और अमिताभ ठाकुर को अपने आरोपों के पक्ष में सबूत देने के लिए 3 दिन का समय दिया गया।
तबादले का समय और संकेत
आश्चर्यजनक रूप से ठीक इसी बीच अनुज चौधरी के तबादले की खबर सामने आई। इसे एक संयोग मानना कठिन है। सूत्रों का कहना है कि उनके तबादले का समय इस पूरे विवाद से जुड़ा हुआ है। हालांकि उन्हें जिले से बाहर नहीं भेजा गया, लेकिन संभल जैसे संवेदनशील और साम्प्रदायिक दृष्टि से चुनौतीपूर्ण जिले से हटाया जाना स्वयं में एक संदेश है।
अन्य तबादले और आंतरिक समीकरण
इस प्रशासनिक फेरबदल में अन्य अधिकारियों की तैनाती भी बदली गई है। बहजोई के सीओ प्रदीप कुमार सिंह को यातायात प्रभारी बनाया गया है, जबकि अब तक यह जिम्मेदारी निभा रहे संतोष कुमार को लाइन कार्यालय भेजा गया है। पूर्व चंदौसी सीओ आलोक सिद्धू को बहजोई में नई जिम्मेदारी सौंपी गई है।
विवादों के साथ जुड़ा नाम और भविष्य की चुनौती
अनुज चौधरी का नाम अब उन पुलिस अधिकारियों में शामिल हो गया है जिनकी कार्यशैली को लेकर निरंतर साम्प्रदायिक पूर्वाग्रहों के आरोप लगते रहे हैं। धार्मिक कार्यक्रमों में व्यक्तिगत रूप से शामिल होना, पुलिस की भूमिका में रहते हुए धार्मिक वक्तव्यों में सक्रियता दिखाना, और अपने आधिकारिक निर्णयों को धार्मिक व्याख्या के आधार पर लेना – ये सब बातें प्रशासनिक मर्यादा के विपरीत मानी जाती हैं।
भले ही उन्हें चंदौसी में नई जिम्मेदारी मिल गई हो, लेकिन यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या वह भविष्य में अपनी छवि को लेकर उत्पन्न विवादों से उबर सकेंगे या यह छवि उनके पूरे पुलिस करियर पर प्रभाव डालेगी।
निष्कर्ष:
यह केवल एक तबादला नहीं है
सीओ अनुज चौधरी का तबादला केवल प्रशासनिक संतुलन बनाने की कवायद नहीं है, यह उस व्यापक सवाल का भी संकेत है कि क्या हमारे सुरक्षा और कानून व्यवस्था के संरक्षक धार्मिक और वैचारिक तटस्थता को बनाए रखने में सक्षम हैं? जब पुलिस अफसर धर्म के आधार पर निर्णय लेने लगें और सार्वजनिक मंचों पर एक वर्ग विशेष के प्रति बयानबाजी करने लगें, तो यह लोकतंत्र की नींव के लिए खतरे की घंटी बन जाती है।
अब यह प्रदेश सरकार और पुलिस महकमे की जिम्मेदारी है कि ऐसे अफसरों की निगरानी और मार्गदर्शन सुनिश्चित करे, ताकि 'वर्दी' का मतलब सुरक्षा और निष्पक्षता बना रहे, न कि भय और पक्षपात।
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