नई दिल्ली, 30 अप्रैल 2025 |
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को पेगासस जासूसी विवाद पर सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया कि यदि कोई देश अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए स्पाईवेयर रखता है और उसका प्रयोग करता है, तो इसमें कोई आपत्ति नहीं है। अदालत ने कहा कि असली सवाल यह है कि इसका उपयोग किनके विरुद्ध किया जा रहा है। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की दो सदस्यीय पीठ इस मामले में 2021 से लंबित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।
स्पाईवेयर का होना गलत नहीं, पर किस पर इस्तेमाल हुआ – यह मायने रखता है: सुप्रीम कोर्ट
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा:
“राष्ट्र की सुरक्षा से कोई समझौता नहीं किया जा सकता। अगर देश के पास स्पाईवेयर है और वह उसका प्रयोग आतंकवादियों के खिलाफ करता है, तो इसमें कोई बुराई नहीं है। समस्या तब होगी जब इसका इस्तेमाल नागरिकों पर हो।"
न्यायमूर्ति ने यह भी स्पष्ट किया कि सुरक्षा और संप्रभुता से संबंधित किसी भी रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता। हालांकि जिन व्यक्तियों को संदेह है कि उनके फोन की जासूसी हुई, उन्हें व्यक्तिगत रूप से जानकारी दी जा सकती है।
याचिकाकर्ता का पक्ष: “सरकार के पास स्पाईवेयर है या नहीं, यह मूल प्रश्न है”
वरिष्ठ अधिवक्ता दिनेश द्विवेदी, जो कुछ याचिकाकर्ताओं की ओर से उपस्थित थे, ने कहा:
“भले ही हमारे मुवक्किल का फोन हैक नहीं हुआ हो, लेकिन मूल सवाल यह है कि क्या सरकार के पास यह स्पाईवेयर है, और अगर है, तो क्या वह आज भी इसका इस्तेमाल कर रही है? इसकी जानकारी होना आवश्यक है।”
इस पर न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने प्रतिप्रश्न किया:
“अगर सरकार आतंकवादियों के खिलाफ इसका इस्तेमाल करती है तो क्या इसमें कोई गलत बात है? स्पाईवेयर रखना गलत नहीं है, उसका उपयोग कैसे और किन पर हो रहा है — वही मूल बिंदु है।”
सरकार की ओर से तर्क: “आतंकवादियों को निजता का अधिकार नहीं”
सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा:
“आतंकवादियों को निजता का कोई अधिकार नहीं है, भले ही कोई यह दावा करे कि उनके पास ऐसा अधिकार है।”
इस पर न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने स्पष्ट किया कि:
“हां, लेकिन एक निजी नागरिक को निजता का संवैधानिक अधिकार है। यदि किसी ऐसे नागरिक को लगता है कि उसकी निजता का उल्लंघन हुआ है, तो उसकी शिकायत की जांच की जा सकती है।”
कपिल सिब्बल की दलील: व्हाट्सएप और यूएस कोर्ट के फैसले का उल्लेख
याचिकाकर्ताओं की ओर से एक और वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने अमेरिकी जिला अदालत के उस फैसले का उल्लेख किया, जिसमें पेगासस स्पाईवेयर के ज़रिए व्हाट्सएप अकाउंट्स को हैक किए जाने की बात कही गई थी। उन्होंने कहा:
“व्हाट्सएप ने स्पष्ट कहा है कि भारत उन देशों में शामिल है, जहां यह हैकिंग हुई थी।”
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए इस तर्क को खारिज किया कि:
“यह तर्क तब महत्वपूर्ण होता जब केस की शुरुआत हो रही होती। हमने पहले ही इस मुद्दे की गहन जांच कर विस्तृत फैसला दिया है। समिति गठित हुई, रिपोर्ट प्राप्त हुई — अब और क्या बचा है?”
पेगासस समिति की रिपोर्ट पर क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?
जस्टिस आर वी रवींद्रन की अध्यक्षता में गठित तीन सदस्यीय समिति की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कोर्ट ने बताया कि:
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अगस्त 2022 में समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंपी थी।
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जांच के दौरान पांच मोबाइल फोन में मालवेयर अवश्य पाया गया, लेकिन यह पेगासस है, इसका कोई निर्णायक प्रमाण नहीं मिला।
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सुप्रीम कोर्ट ने यह भी दर्ज किया कि केंद्र सरकार ने समिति के साथ पूरा सहयोग नहीं किया।
निष्कर्ष:
राष्ट्रीय सुरक्षा बनाम निजता का संतुलन
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई का सार यह रहा कि स्पाईवेयर का अस्तित्व या उपयोग तब तक समस्या नहीं है जब तक उसका उपयोग आतंकवाद और राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के खिलाफ हो रहा है। लेकिन यदि आम नागरिकों की निजता पर अतिक्रमण होता है, तो संविधान के तहत उन्हें संरक्षण प्राप्त है और ऐसे मामलों की जांच की जानी चाहिए।
पेगासस विवाद एक बार फिर यह प्रश्न उठा रहा है कि तकनीक और निगरानी के इस युग में लोकतांत्रिक मूल्यों, विशेषकर निजता के अधिकार और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच किस प्रकार संतुलन कायम रखा जाए।