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संभल की शाही जामा मस्जिद का कुआं विवाद में: क्या यह अगली साजिश की कड़ी है?

 संभल (उत्तर प्रदेश) — हाल ही में संभल जनपद में हुए सांप्रदायिक तनाव और उसके बाद नौ मुस्लिम युवाओं की संदिग्ध परिस्थितियों में हुई पुलिस मुठभेड़ों और हिरासत में मौतों के बाद अब एक नया विवाद जन्म ले रहा है। यह विवाद संभल की ऐतिहासिक शाही जामा मस्जिद के भीतर स्थित एक पुराने वज़ू के कुएं को लेकर है, जिसे उत्तर प्रदेश सरकार अब "सार्वजनिक" बता रही है, जबकि स्थानीय मुस्लिम समुदाय का कहना है कि यह मस्जिद परिसर का अभिन्न हिस्सा है और सदियों से वुज़ू के लिए उपयोग होता रहा है।


मस्जिद से मंदिर तक अफवाहों और दमन की श्रृंखला

हिंसा के बाद से जामा मस्जिद से लेकर दीपा सराय में स्थित एक बंद पड़े मंदिर तक तरह-तरह की झूठी अफवाहें फैलाई गईं। सोशल मीडिया पर चले भ्रामक दावों ने मुस्लिम समुदाय को निशाने पर ला खड़ा किया। इसके परिणामस्वरूप ना सिर्फ निर्दोष नौजवानों को हिरासत डाल दिया गया, बल्कि तमाम निर्दोष लोगों पर कड़े कानून भी थोपे गए।

सत्ता संरक्षित साजिशों का नया चरण

स्थानीय लोगों और सामाजिक संगठनों का मानना है कि यह सारा घटनाक्रम एक व्यापक साजिश का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य मुस्लिम समुदाय को लगातार डराना, कमजोर करना और उसकी धार्मिक पहचान को मिटाना है। अब जामा मस्जिद के कुएं को विवादित बनाना, उसी साजिश की अगली कड़ी प्रतीत होती है।

कुएं का इतिहास और धार्मिक महत्ता

जानकारों के अनुसार, भारत की अधिकांश पुरानी मस्जिदों में वज़ू के लिए कुएं बनाए जाते थे। जामा मस्जिद में स्थित यह कुआं भी उसी परंपरा का हिस्सा है। यह मस्जिद की चारदीवारी के भीतर है और वहां से बाहर कोई सार्वजनिक पहुंच नहीं है।

मस्जिद कमेटी अध्यक्ष ज़फ़र अली पर कार्रवाई, परिजनों का हौसला अडिग

मस्जिद कमेटी के अध्यक्ष  ज़फर अली को इस पूरे विवाद के बीच षड्यंत्र के तहत जेल में डाल दिया गया है। उनके परिजनों और समर्थकों का कहना है कि प्रशासन उन्हें झूठे आरोपों में फंसा रहा है क्योंकि उन्होंने हमेशा मस्जिद की रक्षा और समुदाय के अधिकारों की बात की है। फिर भी, उनका परिवार साहस और आत्मबल के साथ इस कठिन समय का सामना कर रहा है।

सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई और अगली कार्रवाई

अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है। कोर्ट ने मस्जिद कमेटी से दो सप्ताह में जवाब दाखिल करने को कहा है। राज्य सरकार की ओर से दावा किया गया है कि यह कुआं सार्वजनिक संपत्ति है, जिसे 1978 के दंगों के बाद ढक दिया गया था और अब वह एक ऐतिहासिक जलस्रोत के रूप में संरक्षित किया जा रहा है।


निष्कर्ष: क्या संस्थाएं अब भी निष्पक्ष हैं?

जब सत्ता में बैठे लोग खुद संवैधानिक मर्यादाओं और सामाजिक संतुलन को तोड़ने में संलिप्त दिखें, तब सवाल उठता है कि क्या संस्थाएं अब भी निष्पक्ष और स्वतंत्र हैं? जामा मस्जिद का कुआं न केवल एक भौतिक संरचना है, बल्कि वह उन सामाजिक और धार्मिक अधिकारों का प्रतीक है, जिन्हें आज systematically नष्ट किया जा रहा है।

अब यह देखना शेष है कि सुप्रीम कोर्ट का निर्णय सच्चाई और न्याय के पक्ष में आता है या यह विवाद भी धार्मिक ध्रुवीकरण और सत्ता की रणनीति की भेंट चढ़ता है।

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