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राजनीतिक भूचाल: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का इस्तीफ़ा और उसके पीछे की गहराई

 नई दिल्ली, 24 जुलाई 2025 | विशेष रिपोर्ट | ✍🏻 Z S Razzaqi | वरिष्ठ पत्रकार  

भारतीय राजनीति में एक अप्रत्याशित मोड़ लेते हुए, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सोमवार शाम को स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए तत्काल प्रभाव से अपने पद से इस्तीफा दे दिया। लेकिन सूत्रों के अनुसार, यह इस्तीफा केवल स्वास्थ्य तक सीमित नहीं था, बल्कि इसके पीछे न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के महाभियोग नोटिस को स्वीकार करने से उपजा राजनीतिक टकराव छिपा है।


💥 महाभियोग नोटिस बना टकराव का कारण

धनखड़ ने राज्यसभा में मानसून सत्र के पहले दिन यह जानकारी दी कि उन्हें विपक्ष के 63 सांसदों द्वारा हस्ताक्षरित एक नोटिस प्राप्त हुआ है, जिसमें दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग की मांग की गई है। यह नोटिस भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों से जुड़ा है — मार्च 2025 में वर्मा के दिल्ली स्थित आवास से नकदी के बंडल बरामद हुए थे।

धनखड़ द्वारा इस नोटिस को स्वीकार करना केंद्र सरकार के लिए एक झटका साबित हुआ, जो चाहती थी कि यह कार्यवाही लोकसभा के जरिए की जाए। सरकार के भीतर इसे लेकर तीव्र असंतोष उत्पन्न हुआ, जिसकी परिणति धनखड़ के इस्तीफे में देखी जा रही है।


🔍 पीएम मोदी की अप्रसन्नता और मंत्रियों की बातचीत

सूत्रों के अनुसार, जब यह स्पष्ट हुआ कि उपराष्ट्रपति ने विपक्ष द्वारा प्रायोजित महाभियोग नोटिस को स्वीकार कर लिया है, तो केंद्र सरकार के दो वरिष्ठ मंत्री—स्वास्थ्य मंत्री और राज्यसभा नेता जेपी नड्डा और संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू—ने धनखड़ से व्यक्तिगत रूप से बातचीत की।

इन मंत्रियों ने संकेत दिए कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस विकासक्रम से नाखुश हैं और सरकार को लगता है कि इस प्रकार की प्रक्रिया से पहले आम सहमति बनाना आवश्यक था। लेकिन धनखड़ ने अपनी भूमिका को सदन के नियमों के अनुरूप बताते हुए कोई समझौता करने से इनकार कर दिया।


🕒 एक निर्णायक दिन: कैसे घटी घटनाएँ

  • 12:30 PM – राज्यसभा की पहली Business Advisory Committee (BAC) की बैठक में धनखड़ शामिल हुए।

  • इसके तुरंत बाद मंत्रीगण ने उन्हें मनाने का प्रयास किया।

  • 4:30 PM – दूसरी BAC बैठक को सरकार के नेताओं ने बहिष्कृत कर दिया।

  • 9:25 PM – धनखड़ ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर इस्तीफा दे दिया, जिसे उनके एक्स (पूर्व ट्विटर) हैंडल पर पोस्ट किया गया।

  • रात 12:45 AMगृह मंत्रालय ने आधिकारिक गज़ट नोटिफिकेशन जारी किया।


🗳️ उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनावी प्रक्रिया शुरू

धनखड़ के इस्तीफे के कुछ घंटों के भीतर ही चुनाव आयोग (ECI) ने उपराष्ट्रपति पद के लिए निर्वाचन की तैयारी शुरू कर दी। 782 सदस्यीय चुनावी कॉलेज में 426 सांसद NDA के हैं जबकि 312 विपक्षी INDIA गठबंधन के पास हैं।

ECI के अनुसार:

  • नामांकन के लिए 30 दिन की समय सीमा होगी।

  • कोई भी भारतीय नागरिक जिसकी उम्र 35 वर्ष से अधिक हो और जो राज्यसभा सदस्य बनने के लिए योग्य हो, वह उम्मीदवार बन सकता है।

  • नई प्रक्रिया के तहत, जल्द ही निर्वाचन की तारीखों की घोषणा की जाएगी।


🏛️ सरकार बनाम विपक्ष: रणनीतिक मोर्चेबंदी

जहाँ सरकार चाहती थी कि लोकसभा के माध्यम से महाभियोग प्रस्ताव लाया जाए, वहीं विपक्ष ने राज्यसभा के जरिए दबाव बनाकर सरकार की रणनीति को चौंका दिया। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि INDIA गठबंधन उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए संयुक्त रणनीति पर विचार कर रहा है।

वहीं, सूत्र बताते हैं कि पिछले हफ्ते खुद धनखड़ ने विपक्षी नेताओं से महाभियोग प्रस्ताव लाने को कहा था, जो अब विवाद की जड़ बन चुका है।


📜 धनखड़ का इस्तीफा पत्र: एक विनम्र विदाई

“स्वास्थ्य सेवा को प्राथमिकता देने और चिकित्सकीय सलाह का पालन करते हुए, मैं भारत के उपराष्ट्रपति पद से तत्काल प्रभाव से इस्तीफा देता हूं।”
जगदीप धनखड़, राष्ट्रपति को पत्र में

धनखड़ ने 74 वर्ष की उम्र में जिस तरह अचानक पद से इस्तीफा दिया, वह भारत के संसदीय इतिहास में दुर्लभ और अभूतपूर्व है।


⚖️ क्या न्यायमूर्ति वर्मा का महाभियोग आगे बढ़ेगा?

अब पूरा मामला इस बात पर केंद्रित है कि क्या राज्यसभा के सभापति (धनखड़) ने विपक्ष का महाभियोग नोटिस विधिवत रूप से स्वीकार किया या नहीं। यदि स्वीकार किया गया है, तो संसद को जांच समिति गठित कर आगे की प्रक्रिया अपनानी होगी।

लेकिन सरकार के उच्च पदस्थ सूत्रों ने स्पष्ट किया है कि वह इस विपक्ष समर्थित नोटिस को आगे बढ़ाने के पक्ष में नहीं है। इसके बजाय वह लोकसभा नोटिस को प्राथमिकता देना चाहती है।


🔚 निष्कर्ष: इस्तीफा या संस्थागत टकराव?

धनखड़ का इस्तीफा भारतीय संवैधानिक और संसदीय राजनीति के लिए महज स्वास्थ्य कारणों से लिया गया निर्णय नहीं दिखता, बल्कि यह कार्यपालिका और विधायिका के बीच गंभीर मतभेद का परिणाम प्रतीत होता है। विपक्ष इसे संवैधानिक गरिमा की रक्षा कह रहा है तो सरकार इसे अनौपचारिक उल्लंघन

आने वाले हफ्तों में यह स्पष्ट होगा कि क्या यह मामला संवैधानिक इतिहास में एक मील का पत्थर बनेगा या महज एक राजनीतिक प्रसंग बनकर रह जाएगा।

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