परिचय
अज़ीम हाशिम प्रेमजी (जन्म: 24 जुलाई 1945) भारतीय उद्योग जगत के एक ऐसे प्रेरणास्रोत हैं जिन्होंने न केवल व्यावसायिक सफलता अर्जित की, बल्कि अपने जीवन के एक बड़े हिस्से को समाज सेवा और शिक्षा के क्षेत्र में समर्पित कर दिया। उन्हें 'भारतीय आईटी उद्योग का सम्राट' कहा जाता है। वे विप्रो लिमिटेड (Wipro Limited) के संस्थापक अध्यक्ष रहे और आज भी बोर्ड के गैर-कार्यकारी सदस्य एवं संस्थापक अध्यक्ष के रूप में कार्यरत हैं। उनके नेतृत्व में विप्रो ने साधारण वनस्पति तेल कंपनी से वैश्विक सूचना प्रौद्योगिकी और परामर्श सेवा कंपनी तक का सफर तय किया।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
अज़ीम प्रेमजी का जन्म 24 जुलाई 1945 को ब्रिटिश भारत के बंबई (अब मुंबई) में एक समृद्ध इस्माइली मुस्लिम परिवार में हुआ। उनके पिता, मुहम्मद हाशिम प्रेमजी, 'बर्मा के चावल सम्राट' (Rice King of Burma) के नाम से प्रसिद्ध थे। विभाजन के समय, जब मोहम्मद अली जिन्ना ने उन्हें पाकिस्तान आने का न्यौता दिया, तो उन्होंने भारत में ही रहने का निर्णय लिया, जो प्रेमजी परिवार के भारत के प्रति गहरे समर्पण का प्रमाण है।
अज़ीम प्रेमजी ने प्रारंभिक शिक्षा बंबई में प्राप्त की और बाद में अमेरिका के प्रतिष्ठित स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्नातक (B.S.E) की डिग्री हासिल की। हालाँकि, वर्ष 1966 में अपने पिता के असामयिक निधन के कारण उन्हें पढ़ाई बीच में छोड़कर भारत लौटना पड़ा। बाद में उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली।
उनकी जीवन संगिनी यास्मीन प्रेमजी हैं, जो स्वयं एक लेखिका हैं। उनके दो पुत्र हैं – ऋषद प्रेमजी और तारिक प्रेमजी। ऋषद प्रेमजी वर्तमान में विप्रो के कार्यकारी अध्यक्ष हैं।
करियर: एक साधारण तेल कंपनी से वैश्विक सॉफ्टवेयर महाशक्ति तक
1945 में प्रेमजी के पिता ने "Western Indian Vegetable Products Ltd." की स्थापना की थी, जो मुख्यतः वनस्पति घी और साबुन का निर्माण करती थी। पिता की मृत्यु के समय अज़ीम केवल 21 वर्ष के थे, लेकिन उन्होंने साहसपूर्वक कंपनी की बागडोर संभाली।
उन्होंने पारंपरिक व्यवसाय को बरकरार रखते हुए विविधीकरण का मार्ग चुना — बेकरी वसा, सौंदर्य प्रसाधन, हेयर केयर, बेबी केयर उत्पाद, और हाइड्रोलिक सिलेंडर जैसे नए क्षेत्रों में विस्तार किया।
1980 के दशक में, जब IBM जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ भारत से निष्कासित हुईं, तब अज़ीम प्रेमजी ने मौके को पहचाना और सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में प्रवेश किया। कंपनी का नाम बदलकर Wipro कर दिया गया और अमेरिकी कंपनी Sentinel Computer Corporation के साथ साझेदारी कर मिनी कंप्यूटरों का निर्माण शुरू किया।
इसके बाद, प्रेमजी ने कंपनी को पूरी तरह से आईटी सेवाओं और सॉफ्टवेयर समाधान प्रदाता के रूप में परिवर्तित कर दिया। उनकी दूरदृष्टि के परिणामस्वरूप, विप्रो ने वैश्विक आईटी उद्योग में महत्वपूर्ण स्थान बना लिया और भारत के तकनीकी विकास में एक मील का पत्थर साबित हुई।
2006 में प्रेमजी ने अपने निजी निवेश प्रबंधन कार्यालय Premji Invest की स्थापना की, जो आज स्टार्टअप्स और विभिन्न कंपनियों में महत्वपूर्ण निवेश करता है।
नेतृत्व शैली और सिद्धांत
अज़ीम प्रेमजी की नेतृत्व शैली सादगी, दूरदृष्टि और नैतिकता पर आधारित रही है। वे अपने कर्मचारियों के बीच हमेशा विनम्र और पहुँच योग्य रहे। उनका विश्वास था कि 'ग्राहक ही सर्वोच्च है' और 'गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं होना चाहिए'।
उनकी सादगी इतनी प्रसिद्ध है कि करोड़ों की संपत्ति होने के बावजूद वे साधारण जीवन जीते हैं। यहाँ तक कि एक समय तक वे स्वयं अपनी कार चलाते थे और साधारण भोजन करते थे।
परोपकार और शिक्षा के क्षेत्र में योगदान
अज़ीम प्रेमजी का मानना है कि "समाज से जो लिया है, उसे समाज को लौटाना चाहिए।" इसी विचारधारा के तहत उन्होंने 2001 में अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन की स्थापना की, जो विशेष रूप से शिक्षा के क्षेत्र में सुधार कार्य करता है।
वर्ष 2010 में, प्रेमजी ने 2 अरब अमेरिकी डॉलर (लगभग ₹12,600 करोड़) की संपत्ति दान कर भारत के इतिहास में सबसे बड़ी परोपकारी दान राशि प्रदान की। इसके बाद, 2019 में उन्होंने अपनी विप्रो की 34% हिस्सेदारी भी फाउंडेशन को सौंप दी। कुल मिलाकर उनका दान $21 बिलियन (लगभग ₹1.75 लाख करोड़) से भी अधिक है।
उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में गुणवत्ता सुधार के लिए अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय (Azim Premji University) की स्थापना की, जो आज उच्च कोटि के शोध, सामाजिक कार्य और शिक्षा सुधार के लिए जाना जाता है।
कोविड-19 महामारी के दौरान, फाउंडेशन ने जैव विज्ञान केंद्रों के साथ मिलकर भारत में परीक्षण सुविधाओं को मजबूत किया, जो समाज के प्रति उनकी संवेदनशीलता का परिचायक है।
"The Giving Pledge" और वैश्विक परोपकारी पहचान
अज़ीम प्रेमजी, वॉरेन बफेट और बिल गेट्स द्वारा शुरू किए गए The Giving Pledge अभियान से जुड़ने वाले पहले भारतीय बने। इस पहल के तहत दुनिया के सबसे अमीर लोग अपनी अधिकांश संपत्ति दान करने का संकल्प लेते हैं।
प्रेमजी ने कहा था:
"धन अर्जन जीवन का उद्देश्य नहीं है। इससे मुझे कोई विशेष आनंद नहीं मिलता। वास्तविक खुशी दूसरों के जीवन को बेहतर बनाने में है।"
उनका नाम लगातार Forbes और Hurun India Philanthropy List में शीर्ष दानदाताओं में शामिल रहा है। वर्ष 2020 और 2021 में वे 'भारत के सबसे बड़े दानदाता' के रूप में सामने आए।
सम्मान और पुरस्कार
अज़ीम प्रेमजी को उनके व्यावसायिक कौशल और सामाजिक कार्यों के लिए भारत और विदेशों में कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया:
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पद्म भूषण (2005) – व्यापार और वाणिज्य क्षेत्र में योगदान के लिए।
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पद्म विभूषण (2011) – भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान।
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Chevalier de la Légion d'Honneur (2018) – फ्रांसीसी सरकार द्वारा सर्वोच्च नागरिक सम्मान।
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भारत के 50 सबसे प्रभावशाली लोगों में स्थान (India Today, 2017)।
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Forbes की विश्व के सर्वाधिक परोपकारी व्यक्तियों की सूची में स्थान (2019)।
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Business Week द्वारा "विश्व के महानतम उद्यमियों" में नामांकन।
इसके अतिरिक्त, उन्होंने मणिपाल विश्वविद्यालय, वेस्लियन विश्वविद्यालय और मैसूर विश्वविद्यालय से मानद डॉक्टरेट की उपाधियाँ प्राप्त की हैं।
व्यक्तिगत जीवन और दृष्टिकोण
अपने व्यस्त व्यावसायिक जीवन के बावजूद, अज़ीम प्रेमजी का जीवन निजी स्तर पर अत्यंत सादगीपूर्ण रहा है। वे दिखावे से दूर रहते हैं और अपने कार्यों से अधिक बोलते हैं। अपने पुत्र ऋषद प्रेमजी को भी उन्होंने इन्हीं मूल्यों की शिक्षा दी है।
उनका मानना है कि शिक्षा, समावेशी विकास और नैतिक नेतृत्व भारत को एक सशक्त राष्ट्र बना सकते हैं। उनकी दृष्टि "सशक्त समाज निर्माण" पर केंद्रित रही है।
हालिया घटनाएँ और चुनौतियाँ
हालाँकि, 2022 में एक कानूनी विवाद में अज़ीम प्रेमजी का नाम सामने आया, जिसमें उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे। हालाँकि, इन आरोपों पर अब तक कोई ठोस निष्कर्ष नहीं निकला है, और उनके जीवन भर के कार्यों को देखते हुए, अधिकांश विशेषज्ञ इन्हें अस्थायी विवाद मानते हैं।
निष्कर्ष:-
अज़ीम प्रेमजी का जीवन इस बात का प्रमाण है कि कैसे एक व्यक्ति, व्यापारिक सफलता के उच्चतम शिखर पर पहुँचकर भी अपनी जड़ों से जुड़ा रह सकता है और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को निभा सकता है।
वे न केवल भारत के कॉर्पोरेट जगत के दिग्गज हैं, बल्कि एक ऐसे पथप्रदर्शक भी हैं जिन्होंने यह सिद्ध किया कि सच्चा नेतृत्व लाभ कमाने में नहीं, बल्कि दूसरों के जीवन को बेहतर बनाने में है।
आज भी, जब दुनिया पूँजीवाद और स्वार्थ की ओर झुकी दिखती है, अज़ीम प्रेमजी जैसे व्यक्तित्व एक उज्ज्वल उदाहरण प्रस्तुत करते हैं कि कैसे व्यापार और परोपकार का संतुलन स्थापित किया जा सकता है।
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