कनाडा में एक बड़ा राजनीतिक बदलाव देखने को मिला है। पूर्व बैंक ऑफ कनाडा के गवर्नर और जाने-माने अर्थशास्त्री मार्क कार्नी ने जस्टिन ट्रूडो की जगह कनाडा के प्रधानमंत्री पद की कमान संभाल ली है। उनकी इस ऐतिहासिक जीत से कनाडा के राजनीतिक और आर्थिक परिदृश्य में व्यापक बदलाव की संभावना जताई जा रही है।
हालांकि, कार्नी की प्राथमिकता घरेलू मुद्दों को सुलझाने की होगी, विशेष रूप से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की व्यापार नीतियों से निपटना, जो कनाडा की अर्थव्यवस्था और रोजगार बाजार को प्रभावित कर सकती हैं। साथ ही, कनाडा में आगामी फेडरल चुनावों को देखते हुए उन्हें कंजर्वेटिव पार्टी ऑफ कनाडा के खिलाफ मजबूती से खड़ा होना होगा। लेकिन अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर, खासकर भारत-कनाडा संबंधों को लेकर, उनका रुख क्या होगा, यह एक बड़ा सवाल बना हुआ है।
क्या ट्रूडो की विदाई से सुधरेंगे भारत-कनाडा संबंध?
ट्रूडो के नेतृत्व में भारत और कनाडा के संबंधों में भारी गिरावट देखी गई थी। 2023 में, ट्रूडो ने भारत पर खालिस्तान समर्थक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में शामिल होने का आरोप लगाया, जिससे दोनों देशों के बीच कूटनीतिक तनाव चरम पर पहुंच गया। इस आरोप के बाद भारत और कनाडा दोनों ने एक-दूसरे के राजनयिकों को निष्कासित कर दिया, जिससे संबंधों में और अधिक तल्खी आ गई।
अब, जब ट्रूडो सत्ता से बाहर हो चुके हैं और कार्नी ने प्रधानमंत्री पद संभाल लिया है, तो सवाल उठता है कि क्या वे भारत-कनाडा संबंधों को सुधारने के लिए कोई ठोस कदम उठाएंगे?
खालिस्तान मुद्दे पर क्या रहेगा कार्नी का रुख?
मार्क कार्नी के नेतृत्व की सबसे बड़ी परीक्षा खालिस्तान समर्थक गतिविधियों को लेकर होगी। ट्रूडो के कार्यकाल में यह मुद्दा भारत-कनाडा संबंधों में सबसे बड़ा अवरोधक रहा है।
हालांकि, कार्नी ने अब तक इस मुद्दे पर कोई सार्वजनिक टिप्पणी नहीं की है, लेकिन राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि उनका नेतृत्व ट्रूडो से अलग होगा। वे कम राजनीतिक और अधिक व्यावहारिक दृष्टिकोण अपना सकते हैं। लेकिन लिबरल पार्टी के भीतर मौजूद खालिस्तान समर्थक गुटों से कैसे निपटेंगे, यह देखना दिलचस्प होगा।
भारत इस बात पर करीबी नजर रखेगा कि क्या कार्नी कनाडा में भारत विरोधी गतिविधियों पर कड़ा रुख अपनाते हैं या नहीं। यदि वे सुरक्षा मुद्दों पर भारत के साथ सहयोग बढ़ाने का निर्णय लेते हैं, तो निश्चित रूप से दोनों देशों के रिश्ते बेहतर हो सकते हैं।
व्यापारिक रिश्तों को नई दिशा देने का मौका
भारत और कनाडा के बीच व्यापार वार्ता 2023 से ठप पड़ी हुई है, जिसका प्रमुख कारण कूटनीतिक तनाव रहा है। लेकिन कार्नी एक अनुभवी अर्थशास्त्री हैं, न कि पारंपरिक राजनीतिज्ञ, इसलिए उनके लिए व्यापार को प्राथमिकता देना स्वाभाविक होगा।
कार्नी पहले ही भारत-कनाडा व्यापार संबंधों को दोबारा पटरी पर लाने की प्रतिबद्धता जता चुके हैं। भारत के बढ़ते वैश्विक आर्थिक प्रभाव को देखते हुए, वे व्यापार और निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए नीतिगत बदलाव कर सकते हैं।
क्या भारतीय छात्रों और प्रवासियों के लिए नीतियों में बदलाव होगा?
हाल के वर्षों में कनाडा की इमिग्रेशन और शिक्षा नीतियों में बदलाव ने हजारों भारतीय छात्रों और पेशेवरों को प्रभावित किया है। कनाडा में अंतरराष्ट्रीय छात्रों का सबसे बड़ा समूह भारतीय हैं, लेकिन वीजा और वर्क परमिट से जुड़ी नई सख्त नीतियों के कारण वे संकट में आ गए हैं।
यह देखना बाकी है कि क्या कार्नी इन नीतियों को उदार बनाएंगे और भारतीय छात्रों और कुशल पेशेवरों को आकर्षित करने के लिए नए अवसर देंगे? यदि वे इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाते हैं, तो इससे न केवल भारतीय प्रवासियों को लाभ होगा, बल्कि दोनों देशों के संबंधों को भी मजबूती मिलेगी।
नए प्रधानमंत्री के सामने बड़ी चुनौती
मार्क कार्नी के पास भारत-कनाडा संबंधों को सुधारने का एक सुनहरा अवसर है, लेकिन यह इस बात पर निर्भर करेगा कि वे खालिस्तान मुद्दे, व्यापार वार्ता, और आप्रवासन नीतियों को लेकर किस दिशा में आगे बढ़ते हैं।
ट्रूडो की विदाई के बाद भारत के साथ रिश्तों में सुधार की संभावनाएं बनी हैं, लेकिन क्या कार्नी इस मौके का सही इस्तेमाल कर पाएंगे? यह तो आने वाला समय ही बताएगा।
ये भी पढ़े